अश्विन सोलंकी/झाबुआः Chandra Shekhar Azad Birthday Special: क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad 115 Birth Anniversary) की आज 115वीं जयंती है. 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के आजाद नगर (तब भाभरा) में उनका जन्म हुआ, उनकी स्मृति में शहर का नाम 'आजाद नगर' रखा गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आज जिले के जनप्रतिनिधि और कई बड़े अधिकारी आजाद की कुटिया पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. उनसे जुड़ी प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी. 


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आजाद के क्रांतिकारी जीवन और सफलताओं के बारे ज्यादातर लोगों को जानकारी हो सकती है. लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन से जुड़े उन किस्सों के बारे में जिनकी जानकारी बहुत कम लोगों को पता होगी. 


संस्कृत पढ़ने भेजा, लेकिन मन लग गया क्रांति में
आजाद की मां उन्हें संस्कृत के विद्वान के रूप में देखना चाहती थीं, इसलिए उन्हें काशी विद्यापीठ पढ़ने के लिए भेजा. बनारस पहुंचे चंद्रशेखर 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद गुस्से से भर गए और 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए. यहीं से उन पर देश को आजाद करवाने का जुनून सवार हो गया. इस दौरान आजादी के कई आंदोलन जारी थे, लेकिन अंग्रेजों को क्रांतिकारियों से सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी. इसी कारण महज 15 साल की उम्र में असहयोग आंदोलन में शामिल होने के बाद चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर जज के सामने पेश किया गया.


यहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का 'स्वतंत्रता' और पता 'जेल' बताया. तब से देशभर में उनका नाम चंद्रशेखर तिवारी की जगह चंद्रशेखर आजाद के रूप में प्रसिद्ध हो गया.


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गांधी छोड़ बिस्मिल का हाथ थामा
1922 में चौरी-चौरा में पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोलियां चलाईं, जिसके जवाब में क्रांतिकारियों ने 22 पुलिसवालों को थाने के अंदर बंद कर जिंदा जला दिया. इससे नाराज हो महात्मा गांधी ने तुरंत प्रदर्शन बंद कर दिया. इस बात का विरोध करते हुए राम प्रसाद बिस्मिल कांग्रेस से अलग हुए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक क्रांतिकारी दल बना लिया. गांधी के फैसले से आजाद भी कुछ खास खुश नहीं हुए और उन्हीं की उम्र के मन्मनाथ गुप्त के साथ मिलकर बिस्मिल के दल में शामिल हो गए. 


कर्ज के रूप में की लूट
मन्मनाथ गुप्त ने आजाद की जीवनी लिखी, उन्हीं की किताब से एक किस्सा है, जब रिपब्लिकन आर्मी शुरू हुई और उनके सामने फंड जुटाने की चिंता खड़ी हुई. सभी ने मिलकर फैसला किया कि डकैती की जाएगी, उसका पूरा हिसाब रखेंगे और आजादी मिलने के बाद सभी को उनका धन लौटा दिया जाएगा. इस नियम का सभी ने बखूबी पालन किया, आलम तो यहां तक हुआ कि क्रांतिकारियों ने अपने घर तक से धन और जेवर चुराए. वे लोग जहां भी डकैती करते वहां एक पर्ची छोड़ जाते, जिसमें लूट की रकम दर्ज होती और लिखा रहता अंग्रेजों के जाने के बाद सभी का कर्ज चुका दिया जाएगा. इन डकैतियों में आजाद ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 


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पहली ही डकैती हो गई फेल
बिस्मिल की आर्मी ने कई डकैतियां कर धन संग्रहित किया और उसे अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया. वहीं मन्मनाथ गुप्त की किताब से मिले अंश में आर्मी की शुरुआती दो डकैतियों का जिक्र भी है. आजाद और बिस्मिल अन्य साथियों के साथ पहली डकैती करने प्रतापगढ़ स्थित गांव के मुखिया के घर पहुंचे. क्रांतिकारियों को निर्देश थे कि केवल लूट करेंगे, हत्या या महिलाओं से किसी तरह बदसलूकी नहीं होगी. 


बिस्मिल पिस्टल लेकर घर के बाहर खड़े हो गए, अन्य साथी घर में घुसे और लूट करने लगे. उनके अंदर घुसते ही हल्ला मच गया, महिलाओं को जानकारी थी कि ये लोग उनसे अभद्रता नहीं करेंगे. इसी बात का फायदा उठा एक महिला ने आजाद की पिस्टल छीनकर उन्हीं पर तान दी. हंगामा सुन गांववाले इकट्ठा हो गए, लेकिन निर्देश थे कि महिलाओं से छीनाझपटी नहीं करेंगे. परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए बिस्मिल ने साथियों को पीछे हटने के निर्देश दिए और उन्हें वहां से बिना कुछ लूटे जाना पड़ा. आर्मी की पहली डकैती फेल रही ऊपर से पिस्टल भी चली गई.


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महिला की इज्जत बचाने साथी पर चला दी गोली
मन्मनाथ की किताब में दूसरी डकैती का भी जिक्र मिला. आजाद अपने साथियों को लेकर एक जमींदार के यहां पहुंचे और लूटपाट करने लगे. तभी वहां से एक लड़की गुजर रही थी, क्रांतिकारी दल के एक साथी की नजर उस पर पड़ी और वासना में होश खोकर उसने युवती से छेड़छाड़ शुरू कर दी. आजाद ने उसे ऐसा न करने की चेतावनी दी, लेकिन वह नहीं माना. साथी की हरकत से झल्लाए आजाद ने उसपर गोली चला दी. उन्होंने युवती से अभद्रता की माफी मांगी और उन्हें यहां से भी खाली हाथ लौटना पड़ा. रिपब्लिकन आर्मी की पहली दो डकैतियां असफल रहीं, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांत मजबूत रखे और इन्हें आगे भी कायम रखा. 


काकोरी कांड के बाद मिले भगत सिंह
आजाद और बिस्मिल ने पहली दो असफलताओं के बाद मिलकर कई सफल डकैतियां कीं. फिर 1923 में काकोरी में अंग्रेजों के खजाने में सेंधमारी के उद्देश्य से ट्रेन लूटी. इस लूट के बाद अंग्रेजों ने बिस्मिल, अशफाकुल्लाह और अन्य साथियों को फांसी की सजा दी. लेकिन आजाद गिरफ्तारी से बच निकले. उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई, जिन्होंने आर्मी का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया.


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कभी अंग्रेजों के हाथ न आए आजाद
27 फरवरी 1931 का वो दिन जब प्रयागराज (तब इलाहाबाद) स्थित अल्फ्रेड पार्क में आजाद अपने साथी सुखदेव से मिलने पहुंचे. किसी मुखबिर ने इस बात की जानकारी अंग्रेजों को दे दी. अंग्रेज पहुंचे और पार्क को चारों तरफ से घेर लिया, वहां गोलीबारी शुरू हो गई. आजाद के पास कोल्ट की एक पिस्टल रहती थी और एक गोली वे अलग से अपने पास रखते थे. आजाद ने पिस्टल से तीन पुलिस वालों पर गोलियां चलाईं और सुखदेव को वहां से भगा दिया. 



आजाद की गोलियां खत्म हो गईं, अंग्रेजों ने उन्हें चारों ओर से घर लिया. स्वाभिमानी आजाद मरना पसंद करते लेकिन अंग्रेजों से गिरफ्तार नहीं होते. उन्होंने उस एक गोली को निकालकर पिस्टल में डाला और फायर कर आत्महत्या कर ली. चंद्रशेखर मरते दम तक आजाद ही रहे, उनकी पिस्टल को आज भी प्रयागराज स्थित म्यूजियम में संभालकर रखा गया है. आजाद उन क्रांतिकारियों में से एक रहें, जिनके जीवन से हर जनरेशन का युवा प्रेरित होता है.


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दोस्तों से शेयर करें आजाद के क्रांतिकारी Quotes


  • अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है जो देश के काम ना आए, वो बेकार जवानी है.

  • 'यदि कोई युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता है, तो उसका जीवन व्यर्थ है.'

  • 'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.'

  • 'मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है.'

  • मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा.

  • 'दूसरों को खुद से आगे बढ़ते हुए मत देखो. प्रतिदिन अपने खुद के कीर्तिमान तोड़ो, क्योंकि सफलता आपकी अपने आप से एक लड़ाई है.'

  • 'अगर आपके लहू में रोष नहीं है, तो ये पानी है जो आपकी रगों में बह रहा है. ऐसी जवानी का क्या मतलब अगर वो मातृभूमि के काम ना आए.'

  • 'मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता समानता और भाईचारा सिखाता है.'


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