14 गोल्ड, 5 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मुफलिसी का जीवन जीने को हुई मजबूर, टूट रहा ओलम्पिक का सपना
जुनून हो तो ऐसा खेल के मैदान में गरीबी को किया ध्वस्त लेकिन अब गरीबी के आगे खिलाड़ी के ओलम्पिक में जाने का सपना चकनाचूर होता नजर आ रहा है
हितेश शर्मा/ दुर्ग: हौसला और जुनून हो तो खेल के मैदान में गरीबी को परास्त किया जा सकता है. इसका उदाहरण पेश किया है कि दुर्ग के कुम्हारी की रहने वाली शिवानी वैष्णव ने जिसने ताइक्वांडो में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले है. राज्य और देश के लिए 1 या 2 नहीं पूरे 15 गोल्ड मेडल जीते है लेकिन अब ये अंतरराष्ट्रीय खिलाडी मुफलिसी का जीवन जी रही है. जिसके कारण इसका ओलम्पिक में जाने का सपना चकनाचूर होता नजर आ रहा है.
अपना लोहा मनवाया
छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला जहां एशिया का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना है. इसी दुर्ग जिले ने पूरे देश को एक ओर लोहा और इस्पात दिया तो वही इसी जिले के खिलाड़ियों ने प्रदेश और देश मे भी अपना लोहा मनवाया. जिनकी चमक से राज्य का नाम भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रोशन हुआ है. लेकिन दुर्भाग्य है कि मेडल लाने वाले ये प्लेयर्स किस्मत और कठिनाइयों के आगे हार जाते हैं.
2 बार खेल चुकी है इंटरनेशनल
जिले की ऐसी ही एक खिलाड़ी हैं शिवानी वैष्णव शिवानी ताइक्वांडो और कराटे में महज 17 साल की उम्र में ही ब्लैक बेल्ट है तो वही 15 गोल्ड मेडल भी जीत चुकी है. 2 बार इंटरनेशनल खेल चुकी शिवानी ओलम्पिक खेलना चाहती है. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से उनका खेल का करियर खत्म करने की कगार पर पहुंच गया है. शिवानी ने ताइक्वांडो का सफर भी शानदार उपलब्धि भरा रहा है.
कई मैडल जीते
साल 2017-18 में बलौदाबाजार में स्टेट लेवल में स्वर्ण पदक पाया था. इसके बाद 2018 में नेशनल कराटे में सिल्वर मेडल जीता. इसी तरह दिल्ली में 2019-20 में नेशनल कॉम्पटिशन में शिवानी ने गोल्ड मेडल जीता है. साल 2019 में इंटरनेशनल ताइक्वांडो में कुर्की-वन में कोलकाता में हुई स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता. वहीं इस खिलाड़ी ने अब तक स्टेट लेवल में 14 गोल्ड, 5 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल जीते है. इतना ही नहीं शिवानी महज 17 साल की उम्र में ताइक्वांडो की स्टेट रेफरी भी रह चुकी है लेकिन परिस्थतियों ने कम उम्र में ही उसके कांधे पर एक बड़ा बोझ लाद दिया है पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद से परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है.
मां लकड़ी टाल में काम करने को मजबूर है. लेकिन मां जितना पैसा कमाती हैं वो पिता के इलाज में चला जाता है. पिता की हालत और घर की जिम्मेदारी को देखते हुए शिवानी ने बच्चों को ताइक्वांडो की कोचिंग देनी शुरू की.
विश्वव्यापी महामारी कोरोना की वजह से शिवानी की कोचिंग बंद हो गई. हालांकि इस दौरान शिवानी कुछ बच्चों के घरों में जाकर ट्रेनिंग दे रही हैं लेकिन जब इससे भी खर्चे पूरे नहीं हुए उसे अपने डाइट के लिए और पैसों की जरूरत पड़ी फिर भी उसने हार नहीं मानी तो भी सिलाई मशीन उसका सहारा बनी.
लॉकडाउन ने रोज़गार छीना
शिवानी ने पुराने कपड़े सिलना शुरू किया उससे भी बात नहीं बनी तो अब मोहल्ले के लोगों के पुराने कपड़े सिलकर उससे कुछ पैसे कमा रही है शिवानी अपने घर में ही एक छोटी सी दुकान भी चलाती हैं उसी दुकान में वह सिलाई का भी काम करती हैं लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से ना तो दुकान ठीक से संचालित हो सकी और ना ही सिलाई का काम बेहतर हो सका.
ज्यादातर खिलाड़ी आर्थिक तंगी से गुजर रहे
लॉकडाउन में मां का काम भी बंद हो गया आर्थिक हालत खराब होने के चलते वो ठीक से प्रैक्टिस नहीं कर पा रही है क्योंकि ज्यादातर ध्यान घर चलाने को लेकर है प्रदेश में कई युवा खिलाड़ी हैं लेकिन ज्यादातर खिलाड़ी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं जिसका असर उनके प्रदर्शन पर पड़ता है और इसकी वजह से कई खिलाड़ी अपना खेल छोड़ देते हैं.
सपना टूटता दिख रहा
शिवानी ने zee मीडिया से बात करते हुए बताया कि जितने भी खिलाड़ी है सभी की इच्छा ओलंपिक खेलने की होती है लेकिन आर्थिक तंगी के चलते ना उन्हें बेहतर प्रैक्टिस मिल पाती है और ना ही उन्हें अच्छी डाइट मिलती है. ऐसी हालत में शिवानी का ओलम्पिक खेलने का सपना टूटता दिख रहा है.
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