राजनीति में आने के लिए पिता दिग्विजय ने रखी थी ये अनोखी शर्त; रात एक बजे नेता प्रतिपक्ष से मिलने पहुंच गए थे जयवर्धन
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राजनीति में आने के लिए पिता दिग्विजय ने रखी थी ये अनोखी शर्त; रात एक बजे नेता प्रतिपक्ष से मिलने पहुंच गए थे जयवर्धन

राघोगढ़ का किला सिंह घराने का ही पारंपरिक गढ़ है. यहां की जनता दिग्विजय सिंह को 'बड़े राजा साहब' और जयवर्धन को 'छोटे राजा साहब' कहकर पुकारती है

राजनीति में आने के लिए पिता दिग्विजय ने रखी थी ये अनोखी शर्त; रात एक बजे नेता प्रतिपक्ष से मिलने पहुंच गए थे जयवर्धन

अश्विन सोलंकी/गुनाः Jaivardhan Singh Birthday): गुना के राघोगढ़ से दो बार विधायक और मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के दौरान मंत्री रहे जयवर्धन सिंह आज 35 साल के हो गए. कांग्रेस के उभरते युवा नेता होने के साथ ही उनका नाम इसलिए भी चर्चा में बना रहता है क्योंकि उनके पिता दिग्विजय सिंह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं. सिंधिया और सिंह घरानों के बीच वैसे तो 36 का आंकड़ा है, लेकिन जयवर्धन उन नेताओं में से हैं जिसने इन दोनों घरानों की दूरियों को कम करने के प्रयास किए. आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ किस्सों के बारे में, जिनके बारें में आपको कम ही पता होगा.

पिता ने ही कहा- 'तुम राजनीति में नहीं आओगे'
जयवर्धन सिंह का जन्म 6 जुलाई 1986 को इंदौर में हुआ, वह पूर्व CM दिग्विजय सिंह के चौथी संतान हैं. देहरादून से स्कूली शिक्षा और दिल्ली से बैचलर की डिग्री हासिल करने के बाद वह अमेरिका की कोलबिंया यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा के लिए चले गए. अमेरिका से लौटते ही 2011 में उन्होंने पिता के सामने राजनीति में काम करने की इच्छा जताई. लेकिन उनके पिता ने मना करते हुए बेटे से कहा कि तुम राजनीति में नहीं आओगे.

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विलायती रिटर्न बेटे ने की राजनीति में आने की जिद
पिता के इस फैसले से नाखुश जयवर्धन ने जिद की कि वह राजनीति में भी अच्छा करेंगे, वह सफल होकर ही दिखाएंगे. अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद लौटे बेटे को पिता राजनीति में नहीं देखना चाहते थे. गुना संसदीय क्षेत्र में आने वाला राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र, जहां से दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ते थे. पिता दिग्विजय ने बेटे के सामने राजनीति में आने के लिए राघोगढ़ से जुड़ी एक शर्त रख दी.  

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'राघोगढ़ के एक-एक परिवार से मुलाकात करें'
दिग्विजय ने अपने बेटे से कहा कि राजनीति में आने से पहले वह राघोगढ़ की जनता के साथ सात दिन गुजारें. यहां एक-एक परिवार से मिलें, उनकी बात सुनें, उन्हें समझिए. वह बोले, अगर राघोगढ़ की जनता ने तुम्हें अपना लिया तो तुम राजनीति कर सकते हो. पिता की शर्त के आगे अमेरिका में शिक्षा प्राप्त बेटा राघोगढ़ की सड़कों पर उतर गया. जनता के साथ 7 दिन गुजारने के बाद जयवर्धन अपने पिता के पास लौटे. उन्होंने पिता से कहा कि वह पिछले सात दिनों में राघोगढ़ की जनता से मिल चुके हैं. अब उन्हें राजनीति का हिस्सा बनाया जाए.

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जनता से लगाव देख पिता ने सौंप दी विरासत
बताया जाता है कि जयवर्धन सिंह ने इस शर्त को पूरा करने के लिए कोलुआ गांव से पदयात्रा शुरू की थी. 6 दिनों तक चली इस पदयात्रा में दिग्विजय भी उनके साथ ही थे. जयवर्धन की इस पदयात्रा को ही उनके राजनीति करियर की शुरुआत माना गया. बेटे का जनता से लगाव देख उन्होंने जयवर्धन को 2013 में राघोगढ़ से ही चुनाव लड़ने दिया. यहां तक कि राघोगढ़ की देखरेख की जिम्मेदारी ही जयवर्धन को सौंप दी. 

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विलायत रिटर्न 'छोटे राजा साहब' को मिला जनता का साथ 
आजादी से पहले देश में राजघराने हुआ करते थे, सिंह घराना भी उन्हीं में से एक था. लेकिन आजादी के बाद सरकार ने जमींदारी प्रथा के साथ ही राजघरानों को भी खत्म कर दिया. राघोगढ़ का किला सिंह घराने का ही पारंपरिक गढ़ है. यहां की जनता दिग्विजय सिंह को 'बड़े राजा साहब' और जयवर्धन को 'छोटे राजा साहब' कहकर पुकारती है. छोटे राजा साहब के सम्मान में राघोगढ़ की जनता ने उन्हें पहली बार 2013 में 40 हजार से ज्यादा वोटों से विधायक बनाया.

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कमलनाथ सरकार में बने सबसे युवा मंत्री 
2013 में राघोगढ़ से चुनाव जीता, लेकिन सरकार बीजेपी की थी. कांग्रेस का युवा चेहरा होते हुए उन्होंने विपक्ष की जिम्मेदारी बखूबी निभाई. 2018 विधानसभा चुनाव में भी राघोगढ़ की जनता ने उनका साथ दिया और भारी मतों से विजयी बनाया. प्रदेश में कांग्रेस ने ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की अपनी सरकार बनाई. इस दौरान जयवर्धन को कैबिनेट में हिस्सा मिला, कमलनाथ सरकार ने उनके चाचा लक्षमण सिंह, जो कि पांच बार सांसद रहे, उनसे पहले जयवर्धन सिंह को प्राथमिकता दी और उन्हें नगरीय विकास एवं आवास मंत्री बनाया. जयवर्धन बहुत ही कम समय में राजनीति में तेजी से उभरे और सबसे युवा मंत्री भी बन गए. 

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रात एक बजे नेता प्रतिपक्ष से मिलने पहुंच गए मंत्री जयवर्धन
2018 में जयवर्धन को मंत्री बनाया गया, उसी दौरान बीजेपी ने गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाया. प्रदेश की सबसे पहली स्मार्ट सिटी गढ़ाकोटा से आने वाले गोपाल भार्गव देर रात एक बजे नगर पालिका में बैठे थे. इसी दौरान मंत्री जयवर्धन भी गढ़ाकोटा आने वाले थे. पार्टी ऑफिस में कई कार्यकर्ता उनके स्वागत के इंतजार में खड़े थे. रात एक बजे जयवर्धन का काफिला नगर पालिका के सामने से निकला.

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जयवर्धन ने अपने सेक्रेटरी से पूछा, यहां रात को एक बजे नगर पालिका के सामने इतनी भीड़ क्यों है. सेक्रेटरी ने बताया, यह नेता प्रतिपक्ष भार्गव का क्षेत्र है, वह खुद यहां नगर पालिका में किसी काम के लिए आए हुए हैं. विपक्षी नेता के शहर में होने के बारे में पता चलते ही उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई. जहां पार्टी के कार्यकर्ता उनके स्वागत का इंतजार कर रहे थे, वहां मंत्री जयवर्धन गाड़ी से उतरे और नेता प्रतिपक्ष से मिलने पहुंच गए. अपने से बड़े और विपक्षी नेता का सम्मान करते हुए रात को एक बजे बड़ी शालीनता से उन्होंने मुलाकात की. नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात के बाद ही वह पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिले. 

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राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का दिल खोलकर करते हैं स्वागत
जयवर्धन के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक विरासत उन्हें अपने पिता से ही मिली. लेकिन कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जयवर्धन इस विरासत को और भी आगे लेकर जाएंगे. दिग्विजय एक ओर जहां विपक्षी नेताओं से मिलना तक पसंद नहीं करते. वहीं जयवर्धन के बारे में कहा जाता है कि राजनीति से इतर वह विपक्षी नेताओं का भी पूरा सम्मान करते हैं.  

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राजघरानों की दूरियां मिटाने का उठाया जिम्मा
सिंधिया और सिंह परिवार में खटास आजादी के पहले से चली आ रही है. बताया जाता है कि राघोगढ़ के किले के लिए सिंधिया और सिंह घरानों में युद्ध हुआ था, जिसे सिंधिया ने जीता और सिंह घराने को किला संभालने की जिम्मेदारी दी. आजादी के बाद घरानों को तो खत्म कर दिया गया, लेकिन दिग्विजय सिंह के मन में सिंधिया परिवार के लिए खटास अब भी जिंदा रही. राजनीतिक मंच पर दिग्विजय तो सिंधिया को नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ते.

वहीं जयवर्धन इस मामले में पिता से इतर नजर आते हैं. जयवर्धन जब नए-नए राजनीति में आए थे, सिंधिया उस दौरान कांग्रेस पार्टी का ही हिस्सा थे. उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पहली बार राघोगढ़ के किले में आने का न्योता दिया. सिंधिया इससे पहले कभी भी राघोगढ़ के किले में नहीं आए थे. महाराजा सिंधिया और छोटे राजा साहब को एक साथ राघोगढ़ में देखने के लिए हजारों की संख्या में जनता उमड़ पड़ी. एक ओर जहां पिता के मन में अब भी सिंधिया परिवार के खिलाफ खटास भरी है, वहीं बेटा उन दूरियों को मिटाने में जुटा हुआ है.

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जब विधायकों को जोड़ने पहुंचे युवा नेता जयवर्धन
2020 में जब कांग्रेस के 20 से ज्यादा विधायक कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने पहुंच गए. कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने की स्थिति उत्पन्न हो गई. उस दौरान कांग्रेस के दो युवा नेता जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह विधायकों को जोड़ने के लिए बैंगलोर पहुंच गए. जहां बागी विधायकों को रखा गया था. सिंधिया का प्रभाव इतना तेज था कि विधायक नहीं माने, लेकिन इस पहल ने जयवर्धन को युवा कांग्रेस नेता के रूप में नई पहचान दी. कहा जाता है कि इसी दौरान जयवर्धन ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिलने भी पहुंचे थे, लेकिन बात नहीं बन सकी.

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जन्मदिन पर बन गए MP के 'भावी मुख्यमंत्री'!
किस्सा जयवर्धन सिंह के पिछले जन्मदिन का ही है. जब राघोगढ़ में जन्मदिन की बधाइयों के पोस्टर छपे थे. उन्हीं में से एक पोस्टर पर लिखा था, 'MP के भावी मुख्यमंत्री को जन्मदिन की बधाइयां.' पोस्टर में जयवर्धन सिंह के साथ दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के चेहरे भी मौजूद थे. इस पर सफाई देते हुए जयवर्धन ने कहा था कि यह काम बीजेपी ने किया है.  

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हो सकते हैं सिंधिया का रिप्लेसमेंट 
युवा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान भी विक्रांत भूरिया के साथ जयवर्धन सिंह का नाम भी चर्चाओं में था. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद जीतू पटवारी के साथ जयवर्धन सिंह को ही उनके रिप्लेसमेंट के रूप में देखा जा रहा है. प्रदेश में एक अलग ही युवा नेता के रूप में उनकी छवि बनती जा रही है. उन्हें भावी नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी देखा जा रहा है. 

इनपुटः अर्पित पांडे; भूपेंद्र राय

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