600 साल पुरानी अनूठी परंपरा- ढाई महीनों तक मनाते हैं दशहरा, डेरी गड़ाई रस्म के साथ शुरू हुआ
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600 साल पुरानी अनूठी परंपरा- ढाई महीनों तक मनाते हैं दशहरा, डेरी गड़ाई रस्म के साथ शुरू हुआ

 बस्तर दशहरा की तीसरी महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी पूजा विधान 6 अक्टूबर की शाम भंगाराम चौक पथरागुड़ा में संपन्न होगी.

600 साल पुरानी अनूठी परंपरा- ढाई महीनों तक मनाते हैं दशहरा, डेरी गड़ाई रस्म के साथ शुरू हुआ

बस्तर: बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दशहरे को देशभर में उत्साह के साथ मनाया जाता है. लेकिन भारत में एक जगह ऐसी है जहां 75 दिनों तक दशहरा मनाया जाता है लेकिन रावण नहीं जलाया जाता है. यह अनूठा दशहरा छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके बस्तर में मनाया जाता है और 'बस्तर दशहरा' के नाम से चर्चित है. आज विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गढ़ाई रविवार सुबह सिरहासार में हर्ष और उल्लास के साथ पूरी हुई. इस मौके पर मेंबरों ने हल्दी खेलकर खुशी व्यक्त की. बस्तर दशहरा की तीसरी महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी पूजा विधान 6 अक्टूबर की शाम भंगाराम चौक पथरागुड़ा में संपन्न होगी.

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बस्तर दशहरा महोत्सव के तहत 14 महत्वपूर्ण पूजा विधान संपन्न होते हैं. इसी क्रम में रविवार पूर्वान्ह 11 बजे सिरहा सार भवन में डेयरी गणेश पूजा विधान संपन्न हुआ. इस मौके पर विरल पाल जंगल से लाए गए साल की दो बल्लियों को स्थापित किया गया. बल्लियों को खड़ा करने खोदे गए गड्ढे में मांगुर मछली और चना लाई अर्पित किया गया. पूजा विधान पश्चात बल्लियों  को नियत स्थान पर खड़ा किया गया. पूजा विधान के दौरान दशहरा उत्सव से पारंपरिक रूप से जुड़े मेंबर और मेंबरिनों ने अनुष्ठान में शामिल लोगों को हल्दी लगाकर खुशी व्यक्त की.

कोरोना गाइडलाइन के तहत मनेगा दशहरा
 इस मौके पर बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 की तीसरी लहर की संभावना को देखते केंद्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार बस्तर दशहरा मनाया जाएगा. विभिन्न गांवों से देवी-देवताओं की डोली और छत्र लेकर आने वाले पुजारियों और सेवादारों से अपील की गई है कि अनावश्यक भीड़ लेकर न लाएं.  वहीं दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि बस्तर दशहरा परंपरानुसार मनाया जाएगा. इसके पूजा विधान में कोई कटौती नहीं की जा रही है.

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75 तक मनाया जाता है त्योहार
दरअसल बस्तर दशहरे की शुरुआत श्रावण (सावन) के महीने में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से होती है. इस दिन रथ बनाने के लिए जंगल से पहली लकड़ी लाई जाती है. इस रस्म को पाट जात्रा कहा जाता है. यह त्योहार दशहरा के बाद तक चलता है और मुरिया दरबार की रस्म के साथ समाप्त होता है. इस रस्म में बस्तर के महाराज दरबार लगाकार जनता की समस्याएं सुनते हैं. यह त्योहार देश का सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है.

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