`मंजिल-वंजिल सब बकवास!` इंडस्ट्री के `चाचा चौधरी` से जानें एक्टर बनने के गुण, बताया- आदमी कैसे होता है कामयाब
कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते, जिसे करने पर उन्हें बाद में पछतावा हो. उनका मानना है कि जो काम उन्हें ही पसंद नहीं आ रहा वो दर्शक को कैसे पसंद आएगा.
जबलपुरः 'चाचा चौधरी का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है.' इस डायलॉग को पढ़ते ही अगर आपको अपने पुराने दिन याद आ रहे हैं. तो इसका श्रेय रघुबीर यादव को जाता है. 'चाचा चौधरी' के नाम से मशहूर पीपली लाइव, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, मुल्ला नसीरुद्दीन जैसी कई प्रसिद्ध धारावाहिकों में मुख्य किरदार निभाने वाले रघुबीर यादव आज 64 साल के हो गए. वो मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के निवासी हैं. बचपन में संगीत का शौक रखने वाले कलाकार ने 1985 में आई फिल्म 'मैसी साहब' से पदार्पण किया. रघुबीर यादव फिल्म इंडस्ट्री के उन कलाकारों में से एक हैं जिनकी अब तक कुल आठ फिल्में ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुकी हैं. प्रदेश के इस कलाकार ने एक इंटरव्यू में बताया कि फिल्मों में आने के लिए आपको किन चीजों की जरूरत होती है. उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें जो उनके करियर को दर्शाती हैं.
'महंगाई डायन खाय जात है'
साल 2010 में आई 'पीपली लाइव' ने ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच अंतर को फिल्म के माध्यम से बखूबी दर्शाया. इस फिल्म का गीत 'महंगाई डायन खाय जात है' इस दौरान खूब प्रसिद्ध हुआ. जिसे गाकर रघुबीर सिंह ने अपनी खूबसूरत गायकी का उदाहरण पेश किया. न्यूटन, भौरी, लगान जैसी फिल्मों में अपने एक्ट से दर्शकों का दिल जीतने वाले रघुबीर यादव इन दिनों अपनी अगली फिल्म 'द ब्रेव चाइल्ड' की शूटिंग के लिए उत्तराखंड गए हुए हैं.
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मंजिल-वंजिल सब बकवास!
एक इंटरव्यू के दौरान रिपोर्टर ने सवाल किया कि अपने करियर में आप किसे मील का पत्थर मानते हैं. इस पर उन्होंने कहा कि जिंदगी के अनुभव से उन्हें पता चला कि मंजिल-वंजिल सब बकवास है. आप अपना रास्ता बनाओ और काम करते रहो. आदमी कभी कामयाब नहीं होता, उन्हें लगता है कि आदमी कामयाब तब होगा जब वह संतुष्ट होगा. लेकिन हमे संतुष्टि कभी नहीं मिलती तो ऐसे में आदमी कामयाब कैसे होगा.
फिल्मों में आने के लिए क्या करें?
NSD (National School of Drama) में एक्टिंग सीखने की वजह से सिनेमा ने उन्हें अलग सम्मान दिया. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि रंगमंच कलाकार की गहराई का दूर से ही अंदाजा लग जाता है. लेकिन उनका मानना है कि इंडस्ट्री के कई कलाकार ऐसे भी हैं, जिन्होंने कभी थिएटर में काम नहीं किया, फिर भी वो कामयाब हैं. उनका मानना है कि थिएटर के बिना कई लोग संघर्ष करते रहते हैं, ऐसे लोग जहां से शुरू करते हैं वहीं पर खत्म भी कर देते हैं. उनका मानना है कि थिएटर ने उन्हें लाइफ में भी बहुत कुछ सिखाया है. ऐसे में थिएटर करना फिल्मों के साथ ही जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है.
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आठ फिल्में हुईं ऑस्कर के लिए नॉमिनेट
कैरेक्टर सेलेक्शन के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि वो कैरेक्टर को लेकर काफी चुनिंदा हैं. वो कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते, जिसे करने पर उन्हें बाद में पछतावा हो. उनका मानना है कि जो काम उन्हें ही पसंद नहीं आ रहा वो दर्शक को कैसे पसंद आएगा. इसके अलावा उनसे रिलेटेड एक खास बात यह है कि अब तक ऐसी आठ फिल्में जिनमें उन्होंने काम किया, वो ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुकी हैं. जिनमें बैंडिट क्वीन, वाटर, पीपली लाइव, लगान, सलाम बॉम्बे, भौरी, रूदाली और न्यूटन शामिल हैं.
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