भोले के इस मंदिर में 450 सालों से जल रही ज्योत, सावन के महीने में लगता है श्रद्धालुओं का तांता
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भोले के इस मंदिर में 450 सालों से जल रही ज्योत, सावन के महीने में लगता है श्रद्धालुओं का तांता

श्रावण मास यानी सावन का पवित्र महीना शिव आराधना के लिए सबसे शुभ होता है. वैसे तो भोलेनाथ हमेशा ही अपने भक्तों पर प्रसन्न रहते हैं लेकिन सावन में उनकी पूजा अर्चना और सावन के सोमवार को व्रत रखने वाले पर शिवजी की असीम कृपा होती है.

भोले के इस मंदिर में 450 सालों से जल रही ज्योत, सावन के महीने में लगता है श्रद्धालुओं का तांता

प्रदीप शर्मा/भिंड: श्रावण मास यानी सावन का पवित्र महीना शिव आराधना के लिए सबसे शुभ होता है. वैसे तो भोलेनाथ हमेशा ही अपने भक्तों पर प्रसन्न रहते हैं लेकिन सावन में उनकी पूजा अर्चना और सावन के सोमवार को व्रत रखने वाले पर शिवजी की असीम कृपा होती है. यहीं वजह है कि इन दिनों शिवालयों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं. ऐसे ऐतिहासिक भिंड ज़िले में एक प्रसिद्ध और प्राचीन शिवालय में विराजमान है गौरी सरोवर किनारे वनखंडेश्वर महादेव.

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ऐतिहासिक है, वन खंडेश्वर मंदिर,
भोलेनाथ को समर्पित एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है, जिसका निर्माण खुद पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराया था, इस मंदिर में भगवान शिव वनखंडेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं. 11वीं सदी का यह मंदिर भिंड में स्थित है, वन खंडेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग और पृथ्वीराज चौहान को लेकर एक किस्सा भी मशहूर है, दिल्ली गद्दी के राजा पृथ्वीराज चौहान महोबा के चंदेल राजा से युद्ध के लिए जा रहे थे, तो उसी समय रास्ते में पड़ाव डाला था. वह जगह बियाबान जंगल (वन) पृथ्वीराज चौहान सुबह जाकर सबसे पहले शिवजी की पूजा अर्चना करते थे. इस बियाबान बल खंड में कोई भी मंदिर ना होने के चलते उन्होंने शिव मंदिर की स्थापना कराई और पूजा कर युद्ध को निकल गए. युद्ध जीतकर जब वह वापस आए तो उन्होंने मंदिर पर घी की ज्योत जलाई, जो भी लगातार आज भी 850 सालों से जल रही है. जंगल में होने के चलते इसका नाम वनखंडेश्वर महादेव पड़ा.

पृथ्वीराज चौहान ने कराया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के महंत पंडित वीरेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने ड़ेरा डाला था उसी दौरान मंदिर का निर्माण कराया था.

सैंकड़ों सालों से प्रज्ज्वलित हैं अखंड ज्योत
वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योत जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए पुजारी वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हासिल की. उसके बाद वे भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योत जलाईं जो करीब पिछले 850 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्तियां की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी पुजारी मंदिर में जल रही दोनों ज्योति की देखरेख करते हैं. पुजारी वीरेंद्र शर्मा ने बताया की शिव जी के भक्त श्रद्धा अनुसार घी चढ़ाते हैं जिससे ज्योती में घी की कमी नहीं रहती.

सावन में पूजा का ख़ास महत्व,
वैसे तो साल में महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश और देशभर के श्रध्दालु वनखंडेश्वर के दर्शन को पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीने में भोलेनाथ की अलग ही कृपा होती है,शिव पुराण में बताया गया है की श्रावण के महीने में जो भक्त श्रावण सोमवार के दिन शिवजी का अभिषेक करेगा बेलपत्र धतूरा आदि चढ़ाएगा, पंचामृत या जल से अभिषेक करेगा वह समस्त कष्टों को छुटकारा पाता है और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. मंदिर के पुजारी बताते है. कि शिव जी आपकी श्रद्धा से खुश होते है. जरूरी नहीं कि फल फूल जैसी चीजों से उनकी सेवा करें, सावन के महीने में कांवड़िए दूर-दूर से कांवड़ भरकर लाते है. और शिवजी का अभिषेक करते है.

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सावन सोमवार पर सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम
शिवरात्रि की तरह सावन के सोमवार को भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है जिसके लिए मंदिर प्रशासन भी अलसुबह 4 बजे ही दर्शन के लिए भोलेनाथ के पट खोल देते हैं, हर सोमवार वनखंडेस्वर महादेव के दर्शन को हज़ारों की तादात में श्रध्दालु पहुंचते हैं. ऐसे में मंदिर के पर बंद होने में भी रात के 11 बजते हैं, इतना ही नहीं प्रशासन को भी इसके लिए काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ती है. सावन के हर सोमवार लगने वाली भीड़ को क़ाबू करने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल लगाया जाता है. रास्ते में लोगों को परेशानी ना जिसके लिए एक किलोमीटर दौरे के सभी रास्ते डायवर्ट कर दिए जाते है. मंदिर के आसपास सभी वहनों का प्रवेश प्रतिबंधित रहता है.

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