पंडो जनजाति की अजीब परंपरा, महिलाओं को हर महीने एक सप्ताह कोठरी में पड़ता है बिताना
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पंडो जनजाति की अजीब परंपरा, महिलाओं को हर महीने एक सप्ताह कोठरी में पड़ता है बिताना

 पीरियड के दौरान महिलाओं का घर में प्रवेश वर्जित रहता है. उन के परिवार के लोग उस दौरान उस महिला के हाथ से पानी तक नहीं पिते हैं

 महिला पुरुष में भेदभाव

ओ पी तिवारी/ सूरजपुर: हमारे रीति रिवाज हमें जोड़ने और हमारी सहूलियतों के लिए बनाए जाते हैं लेकिन कई बार समाज के कुछ लोगों द्वारा अन्धविश्वास को परंपरा का चोला पहनाकर किसी एक वर्ग का शोषण किया जाता है. आश्चर्य तो तब होता है जब खुद को समाज का बुद्धिजीवी बताने वाले लोग ऐसी कुरीतियों का विरोध करने की बजाय परंपरा की दुहाई देते हुए शोषण को रिवाज का नाम दे देते हैं.

जिस देश में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है उसी देश में एक तबका उन महिलाओं के प्रति कैसी सोच रखता है?
सूरजपुर जिले के पंडो नगर की रहने वाली इन्द्रासो बाई, जो राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कही जाने वाली पंडो जनजाति की हैं. इनके घर में दो दरवाजे हैं. एक दरवाजे की लम्बाई –चौड़ाई सामान्य घरो जैसी ही है. वही दूसरे दरवाजे की लम्बाई लगभग 3 से चार फिट और चौड़ाई लगभग दो फिट है.

पंडो महिला इन्द्रासो बाई हर महीने एक सप्ताह और बच्चे को जन्म देने के बाद लगभग एक महीना इसी कोठारीनुमा घर में रहती हैं, जहां ना तो आराम से बैठा जा सकता है और ना ही आराम से सोया जा सकता है. इन्द्रासो ही नहीं बल्कि इनकी जैसी हजारों महिलाओं की स्थिति भी ऐसी ही है. इसके पीछे की वजह सुनकर आप दंग रह जायेंगे.

दरअसल इन महिलाओं के अनुसार जब यह महिलाएं पीरियड से होती हैं या बच्चों को जन्म देती हैं तो माना जाता है कि वह अपवित्र हो जाती हैं. जिसकी वजह से वह परिवार के अन्य सदस्यों के साथ नहीं रह सकती हैं. इस दौरान वह अलग दरवाजे से घर में बनी एक कोठरी में रहती हैं. वे उस दौरान हो रही परेशानी को मानती हैं लेकिन उन्हें इस परंपरा से कोई शिकायत नहीं है.

पीरियड महिलाओं में एक प्राकृतिक प्रक्रिया है लेकिन इसको लेकर पंडो समाज के पुरुषो की सोच बिलकुल विपरीत है,उनके अनुसार, इस दौरान वे अपवित्र रहती हैं और यदि वे इस स्थिति में घर में प्रवेश करती हैं तो उनके देवी-देवता नाराज हो जायेंगे.

यही वजह है कि पीरियड के दौरान महिलाओं का घर में प्रवेश वर्जित रहता है. उन के परिवार के लोग उस दौरान उस महिला के हाथ से पानी तक नहीं पीते हैं जिस कमरे में घुसना तक संभव नहीं लगता वहां पंडो महिलायें हर महीने एक सप्ताह बिताती हैं, लेकिन स्थानीय निवासी बनारसी पंडो को इस परम्परा में कोई बुराई नहीं दिखती है. वे इस रिवाज को नहीं बदलने की पैरवी करते हैं.

शिक्षिका और समाजसेविका ज्योति कुशवाहा बताती है कि कुछ समाजसेवी महिलाओं के साथ मिलकर भी पंडो महिलाओं को इस कुरीति को लेकर जागरूक करने का प्रयास किया लेकिन वे भी सफल नहीं हो पाई. वहीं जिले के कलेक्टर गौरव कुमार सिंह भी यह मानते हैं कि यह तबका अपनी परंपराओं को लेकर काफी गंभीर रहता हैं और जल्द वे अपनी परम्परा को नहीं छोड़ते हैं. बावजूद इसके सरकार द्वारा समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है ताकि उन्हें जल्द ही इस परम्परा की खामियों के बारे में समझाया जा सके.

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