टोक्यो ओलंपिक से साबित हुआ: सुविधाएं मिलें तो भविष्य में कई नीरज, मीराबाई और रवि ऊंचा करेंगे भारत का सिर
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टोक्यो ओलंपिक से साबित हुआ: सुविधाएं मिलें तो भविष्य में कई नीरज, मीराबाई और रवि ऊंचा करेंगे भारत का सिर

ओलंपिक मेडल टैली के टॉप-10 देशों में शामिल होने के लिए भारत को भी 15 साल आगे की रणनीति बनाकर काम करना होगा. उन खेलों को प्राथमिकता में रखकर तैयारी करनी होगी जिनमें मेडल जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं. 

टोक्यो ओलंपिक में भारत के मेडल विनर्स.

Dileep Tiwari: खेलों के सबसे बड़े महाकुंभ ओलंपिक का बीते 7 अगस्त को समापन हो चुका है. टोक्यो में भारत ने अपने ओलंपिक इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 1 स्वर्ण, 2 रजत व 4 कांस्य पदकों के साथ कुल 7 मेडल अपने नाम किए. लेकिन 1.35 अरब की आबादी वाले देश के लिए इसे एक तरह से फीका प्रदर्शन ही कहा जाएगा, क्योंकि हमसे छोटे-छोटे देश हर ओलंपिक में पदकों का रिकॉर्ड तोड़ते हैं, नए रिकॉर्ड बनाते हैं. चीन तो फिर भी हमसे ज्यादा आबादी वाला देश है, अमेरिका की आबादी 32 करोड़ ही है.

जापान की आबादी 12.63 करोड़ तो ब्रिटेन की 6.60 करोड़ है. लेकिन ये चारों देश बीते दो दशक से आलेंपिक मेडल टैली में शीर्ष पर रहते हैं. टोक्यो ओलंपिक में अमेरिका पहले, चीन दूसरे, जापान तीसरे और ब्रिटेन चौथे स्थान पर रहा. आपके मन में भी सवाल उठता होगा कि आखिर ये देश ऐसा क्या करते हैं कि जो ओलंपिक में इनके इतने मेडल आते हैं, जबकि चीन के बाद दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत शीर्ष 40 देशों में स्थान नहीं बना पाता. 

कहां कमाल कर रहे हैं अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, जापान
ओलंपिक में इन देशों की सफलता के पीछे सबसे बड़ी वजह है दूरदर्शी खेल नीति का होना. सबसे पहले आते हैं आर्थिक पक्ष पर. अमेरिका और चीन का सालाना खेल बजट 20000 करोड़ रुपये के करीब है. वहीं ब्रिटेन और जापान का 11000 करोड़ रुपये के करीब. इन देशों में सरकार के अलावा प्राइवेट कंपनियां भी खिलाड़ियों को सपोर्ट करती हैं. डाइट से लेकर अन्य संसाधनों के लिए भरपूर आर्थिक मदद मिलती है. अमेरिका, चीन, जापान और ब्रिटेन जैसे देशों में निचले स्तर तक खेल की बेहतर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

इन देशों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के इनडोर-आउटडोर स्टेडियम्स, ट्रैक एंड टर्फ, सभी जरूरी इक्विपमेंट, हाई परफॉर्मेंस सेंटर, बायोमैकेनिक्स सेंटर स्थापित हैं. अमेरिका में 130 इंस्टीट्यूट में स्पोर्ट्स एक कोर्स के रूप में शामिल है. चीन में 100 से ज्यादा इंटरनेशनल स्टेडियम मौजूद हैं, 25 स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटीज हैं और 50 से ज्यादा इंस्टीट्यूट में स्पोर्ट्स एक कोर्स के रूप में पढ़ाया जाता है. ब्रिटेन और जापान में भी ऐसी ही सुविधाएं मौजूद हैं. इन देशों में स्पोर्ट्स रिसर्च सेंटर बनाए गए हैं, जिनमें स्पोर्ट्स साइंस को ध्यान में रखते हुए खिलाड़ियों को तैयार किया जाता है.

साइक्लिंग-स्वीमिंग` ने अंग्रेजों को टॉप 5 में पहुंचाया
उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन को लेते हैं. सही मायने में साल 2000 के सिडनी ओलंपिक के बाद ब्रिटेन एक खेल महाशक्ति के रूप में उभरा है. साल 1996 के अटलांटा ओलंपिक में ब्रिटेन ने सिर्फ 1 गोल्ड मेडल जीता था. छोटी सी आबादी वाले इस देश ने उन खेलों पर फोकस किया जिसमें उसके पदक जीतने की संभावनाएं सबसे प्रबल थीं. जैसे साइक्लिंग, रोइंग, एथलेटिक्स, सेलिंग और स्वीमिंग. इन खेलों पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया, खिलाड़ी तैयार किए. नतीजा रहा कि गत 20 वर्षों के दौरान आयोजित 5 ओलंपिक्स में ब्रिटेन का प्रदर्शन लगातार सुधरा. सिडनी ओलंपिक में 11 स्वर्ण पदक, एथेंस में 9, बीजिंग में 19, लंदन में 29, रियो में 27 और टोक्यो ओलंपिक में 22 गोल्ड मेडल. सिर्फ टोक्यो ओलंपिक की तैयारी पर ब्रिटेन ने करीब 3600 करोड़ रुपए खर्च किए. जबकि भारत का कुल खेल बजट ही 2500 करोड़ है, जो 2013 तक 1200 करोड़ था.

चीन सरपट बन गया स्पोर्ट्स पावर
टोक्यो ओलंपिक में दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर ब्रिक्स के सारे देशों ने हमसे अधिक पदक जीते. एक उदाहरण से समझिए, भारत ने पहली बार साल 1900 में पेरिस में हुए ओलंपिक में भाग लिया था और दो पदक हासिल किए थे. टोक्यो ओलंपिक से पहले भारत ने अपने 121 साल के ओलंपिक इतिहास में केवल 28 पदक जीते थे, जिनमें से 9 स्वर्ण पदक रहे. इनमें से आठ अकेले हॉकी में जीते गए थे. चीन ने भारत के विपरीत दो दशक बाद ओलंपिक में भाग लेना शुरू किया और टोक्यो आने से पहले उसके खाते में 525 से अधिक पदक थे, जिनमें 217 गोल्ड मेडल थे. टोक्यो में चीन ने 38 स्वर्ण के साथ 88 पदक जीते और ब्राजील ने 7 स्वर्ण के साथ 21 पदक जीते.

हम क्यों गिरते-पड़ते बन रहे फिसड्डी?
ऐसे समय जब सारा देश जश्न मना रहा है, हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि आखिर हम उन देशों से क्यों पिछड़े हुए हैं, जिनकी आबादी हमारी आबादी के 10वें हिस्से के बराबर है? हम और महत्वाकांक्षी क्यों नहीं हो सकते? आखिर ये कैसे संभव हुआ कि 1970 के दशक में दो गरीब (चीन और भारत) देश, जो आबादी और अर्थव्यवस्था के हिसाब से लगभग सामान थे, मगर इनमें से एक खेलों में दुनिया का सिरमौर बन गया तो दूसरा फिसड्डी रह गया. चीन की इस सफलता के पीछे प्रमुख कारण है एक दूरदर्शी खेल नीति का होना जिसको सरकार का भरपूर समर्थन प्राप्त है. खेलों में यहां के लोगों की व्यापक भागीदारी, ओलंपिक के हिसाब से लक्ष्य निर्धारण, खिलाड़ियों की मॉनिटरिंग के लिए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग, छोटी उम्र में ही खेल प्रतिभाओं की खोज और प्रोत्साहन. सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच तालमेल रखते हुए खिलाड़ियों को आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराना.

सुविधाएं न होना, इंफ्रास्ट्रक्चर का रोना
ब्रिटेन और चीन के उलट भारत में क्या स्थिति है? खेल संस्कृति का अभाव, पारिवारिक-सामाजिक भागीदारी की कमी, खेल सरकारों की प्राथमिकता में नहीं, खेल फेडेरेशनों पर सियासत हावी है. खेल इंन्फ्रास्ट्रक्चर और खिलाड़ियों की डाइट की उचित व्यवस्था नहीं होती. खेल संघों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का बोलबाला, खेल से पहले नौकरी प्राथमिकता, खेलों के लिए निचले स्तर तक इंफ्रास्ट्रक्चर का मौजूद न होना. सरकारी सहायता के अलावा प्राइवेट स्पॉन्सरशिप की कमी. केंद्र सरकार ने 2021-22 के लिए खेल और युवा कार्य मंत्रालय को 2,596.14 करोड़ का बजट दिया. भारत में कुल 8 बड़ी स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ही मौजूद हैं. मतलब अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और जापान जितना पैसा ओलंपिक की तैयारियों पर खर्च करते हैं, उसका आधा हमारा खेल बजट होता है.

पावर हाउस ऑफ रेसलिंग एंड बॉक्सिंग' हरियाणा की मिसाल
भारत को विश्वस्तरीय खिलाड़ी पैदा करने के लिए कहीं दूर देखने की जरूरत ही नहीं है. भारत के बाकी राज्य हरियाणा से सीख सकते हैं. इस राज्य की भारत की आबादी में हिस्सेदारी सिर्फ 2 प्रतिशत है, लेकिन टोक्यो ओलंपिक में जीते पदकों में हिस्सेदारी 50 फीसदी. विश्व में हरियाणा की पहचान 'पॉवर हाउस ऑफ रेसलिंग एंड बॉक्सिंग' के रूप में बनी है. यह राज्य कुश्ती, बॉक्सिंग, हॉकी व कबड्डी के बाद अब शूटिंग, टेनिस, एथलेटिक्स के खिलाड़ी भी तैयार कर रहा है. इस बार टोक्यो ओलंपिक में भारत का सबसे बड़ा 128 खिलाड़ियों का दल गया था. इनमें 31 खिलाड़ी (करीब 25 फीसदी) हरियाणा के थे.

हरियाणा में 400 से अधिक खेल नर्सरियां स्थापित हैं. इन नर्सरियों में मल्टिपल स्पोर्ट्स की सुविधाएं मिलती हैं. राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के 232 मिनी स्टेडियम और 21 जिला स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और 2 प्रदेश स्तरीय स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हैं. यहां ट्रेनिंग के लिए 350 से ज्यादा कोच हैं. भारत में खेलों की सर्वोच्च संस्था स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी साई के 22 सेंटर हरियाणा में हैं. साई नॉर्थ जोन का हेडक्वार्टर भी इसी राज्य में है. हरियाणा सरकार स्कूल स्तर तक मेडल जीतने पर इनाम देती है. राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को अच्छी इनामी राशि हरियाणा सरकार की ओर से दी जाती है. सरकारी प्लॉट, नौकरी, खेल संस्थाओं में अच्छे पद इत्यादि सुविधाएं अलग हैं.

ब्रिटेन, चीन की रणनीति दिखा सकती है रास्ता
जब ब्रिटेन 20 वर्षों में और चीन 30 वर्षों में दुनिया के अंदर खेल महाशक्ति बनकर उभर सकते हैं तो भारत क्यो नहीं. ओलंपिक मेडल टैली के टॉप-10 देशों में शामिल होने के लिए भारत को भी 15 साल आगे की रणनीति बनाकर काम करना होगा. उन खेलों को प्राथमिकता में रखकर तैयारी करनी होगी जिनमें मेडल जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं. जैसे कुश्ती, बॉक्सिंग, वेटलिफ्टिंग, तीरंदाजी, शूटिंग, हॉकी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, डिस्कस थ्रो, जेवलिन थ्रो इत्यादि. इनमें से ज्यादातर खेलों में पुरुष और महिला स्पर्धाएं होती हैं, अलग-अलग भार वर्ग होते हैं. इन खेलों में ही 200 से ज्यादा पदक दांव पर होते हैं. यानी इन 10 खेलों पर भारत ध्यान दे और निचले स्तर से प्रतिभाएं खोजकर उनको विश्वस्तरीय ट्रेनिंग देनी शुरू करे तो अगले 15 वर्षों में हमारे पास विश्वस्तरीय खिलाड़ियों की बड़ी पूल होगी और ओलंपिक में मेडल्स की संख्या भी बढ़ेगी.

जिला स्तर पर हो खेल अधिकारियों की नियुक्ति
खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए हमारा प्रति व्यक्ति बजट ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करने वाले देशों की तुलना में बहुत कम है. भारतीय उद्योग जगत भी खेलों को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. यदि देश के बड़े औद्योगिक घराने एक-एक खेल की जिम्मेदारी उठा लें तो इन खेलों के खिलाड़ियों की आर्थिक दिक्कतें दूर हो जाएंगी. उन्हें बेहतर सुविधाएं और ट्रेनिंग मिल सकेगी. कम उम्र में प्रतिभाशाली और उभरते खिलाड़ियों की पहचान करना और उन्हें संवारकर भविष्य के चैंपियन तैयार करना होगा. इसके लिए जिला स्तर पर एक खेल अधिकारी की नियुक्ति कर सकें तो जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं की पहचान काफी आसान हो जाएगी. अंतरजिला और अंतरराज्यीय स्पर्धाओं का गंभीरता के साथ आयोजन होना चाहिए, ताकि श्रेष्ठ प्रतिभाएं बाहर आ सकें. 

खेलों को सीएसआर के दायरे में लाना चाहिए
एक नई परंपरा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ओलंपिक में पदक जीतने वाले और भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों से फोन पर बात की, देश लौटने पर उनसे मुलाकात की. इससे खिलाड़ियों में यह संदेश जाएगा कि देश के लिए वे महत्वपूर्ण हैं और उन पर देशवासियों को गर्व है. भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल मंत्रालय ने ओलंपियंस के सम्मान में स्वागत समारोह आयोजित करना शुरू किया है जो एक सराहनीय कदम है. इससे उभरते हुए खिलाड़ी भविष्य में और अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित होंगे. खेलों को सीएसआर के दायरे में तत्काल प्रभाव से लाया जाना चाहिए. देश में खेल संगठनों और प्राधिकरणों के संचालन की जिम्मेदारी सिर्फ खिलाड़ियों को दी जानी चाहिए. राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठन बनाना चाहिए, जिसमें ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ी शामिल हों. इस संगठन का काम खेलों के प्रोत्साहन के संबंध में नीतियां बनाएं और सरकार को सलाह दें.

हालांकि भारत ने भी कस ली है कमर
केंद्र सरकार ने बीते वर्षों में भारत की खेल नीति में बड़े स्तर सुधार करने शुरू किए हैं. नेशनल स्कूल गेम्स, खेलो इंडिया के साथ जिला स्तर तक स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने और खेल प्रतिभाओं को खोजकर उन्हें ट्रेनिंग देने पर जोर देना शुरू किया गया है. नेशनल स्कूल गेम्स के जरिए छोटी उम्र में खेल प्रतिभाओं की पहचान कर उन्हें खेलो इंडिया में परफॉर्म करने का मौका मिलता है. यहां प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहने वाली खेल प्रतिभाओं को आगे उच्च स्तरीय ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयनित किया जाता है.

तो फिर टारगेट ओलंपिक पोडियम
फिर टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम यानी टॉप्स के जरिए खिलाड़ियों की आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्हें विश्वस्तरीय ट्रेनिंग फैसिलिटी उपलब्ध कराई जाती है. भारत को खेल प्रतिस्पर्धाओं में अग्रणी देश बनाने की दिशा में  यह बेहद सकारात्मक शुरुआत है. हरियाणा के बाद पंजाब, ओडिशा, उत्तर पूर्व के राज्यों के साथ अन्य प्रांतों ने भी अपनी खेल नीति में सुधार करना शुरू किया है. केंद्र सरकार के अंतर्गत आनी वाली खेल संस्थाओं ने अभी से 2024 और 2028 ओलंपिक के लिए लक्ष्य निर्धारित कर तैयारी शुरू कर दी है. पूरी उम्मीद है कि आने वाले 10 वर्षों में इसके बेहतर परिणाम दिखने लगेंगे और भारत विश्वस्तर पर खेलों में अनेक पदक जीतेगा.

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