उज्जवला योजना के लाभार्थियों का दर्द, दोबारा सिलेंडर भरवाने के लिए 800 रुपये कहां से लाएं
Advertisement

उज्जवला योजना के लाभार्थियों का दर्द, दोबारा सिलेंडर भरवाने के लिए 800 रुपये कहां से लाएं

महिला स्वस्थ्य रहे, इसलिए उसे चूल्हे के धुएं से दूर रखना होगा, लिहाजा उसे सस्ती दर पर गैस सिलेंडर दिया जा रहा है.

आदिवासी महिलाओं का कहना है कि चूल्हा और सिलेंडर सिर्फ घर की शोभा बढ़ाने के काम आ रहा है. (फोटो साभार : IANS)

मंडला : केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीणों और आदिवासी महिलाओं के हित में चलाई जा रही उज्जवला योजना जमीनी स्तर पर लागू तो हो गई है, लेकिन असल मायने में इसका लाभ महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है. लाभ का मिलने का कारण है एलपीजी सिलेंडर के दामों में दिनों-दिन बढ़ोतरी होना. जबलपुर से मंडला की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित है आदिवासी बहुल गांव सिंघपुर. सड़क किनारे एक छोटी सी परचून की दुकान चलाने के साथ सिलाई का काम करने वाली गोमती को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर और चूल्हा तो मिल गया है, मगर सिलेंडर दोबारा भरवाने के लिए पैसे उसके पास नहीं हैं. लिहाजा, वह फिर से लकड़ी की आंच पर खाना बनाने को मजबूर है.

  1. 100 रुपये में मिलता है गरीबों को गैस और सिलेंडर
  2. गरीबों को सिलेंडर और गैस दिलाने के लिए शुरू हुई थी योजना
  3. आदिवासी वालों को नहीं मिल पा रहा है योजना का लाभ

सिलेंडर दोबारा भरवाने के लिए 800 रुपये कहां से लाएं?
गोमती (30) महज एक ऐसी महिला है, जिसने खुलकर अपनी व्यथा बताई. वह कहती है कि सरकार की योजना अच्छी है, गैस सिलेंडर और चूल्हा सौ रुपये देने पर मिल गया, मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए आठ सौ रुपये कहां से लाएं? सब्सिडी का पैसा तो बाद में आएगा. गोमती के लिए हर महीने आठ सौ रुपये ईंधन पर खर्च करना आसान नहीं है. वह मुश्किल से दिन में 100 रुपये कमाती है और तीन बच्चों का खर्च उसके सिर पर है. पति खेती करता है, और खेती का बुरा हाल है.

मुफ्त में गैस-सिलेंडर देने की अपील
उसका कहना है कि अगर वास्तव में सरकार चाहती है कि आदिवासी और गरीब महिलाओं की आंखें सुरक्षित रहें, वे स्वस्थ्य रहें तो उसे मुफ्त में गैस सिलेंडर देना होगा, तभी गरीब लोग उसका उपयोग कर पाएंगे, नहीं तो चूल्हा और सिलेंडर सिर्फ घर की शोभा बढ़ाएंगे. सिंघपुर की नजदीकी ग्राम पंचायत सिरसवाही की सुदामा बाई तो सरकारी अमले के रवैए से बेहद खफा है. उनका है कि गैस सिलेंडर के लिए उनसे कई बार आवेदन लिए जा चुके हैं, कभी कहते हैं कि आधार कार्ड की कॉपी दो, तो कभी राशनकार्ड की कॉपी मांगते हैं. कई बार दे चुके हैं, मगर सिलेंडर अब तक नहीं मिला है. 

यहां की मुन्नी बाई भी उन महिलाओं में है जो रसोई गैस सिलेंडर के लिए काफी समय से इंतजार कर रही है.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो बड़े और गरीबों के हितकारी डीम प्रोजेक्ट हैं, जिनमें एक हर घर में शौचालय और गरीबों को सस्ती दर पर गैस सिलेंडर मुहैया कराना. आदिवासी अंचल में जाकर यही लगता है कि ये दोनों योजनाएं सिर्फ कुछ इलाकों तक ही कारगर होकर रह गई होंगी, क्योंकि मध्य प्रदेश के निपट आदिवासी इलाके में लोगों को अब तक इस योजना का लाभ ही नहीं मिल पाया है.

प्रधानमंत्री मोदी लगातार इस बात का हवाला देते हुए नहीं थकते हैं कि लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिला के शरीर में हर रोज कई सौ सिगरेट के धुएं के बराबर धुआं जाता है. इससे उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. महिला स्वस्थ्य रहे, इसलिए उसे चूल्हे के धुएं से दूर रखना होगा, लिहाजा उसे सस्ती दर पर गैस सिलेंडर दिया जा रहा है. इसके बावजूद जो हकीकत है, वह गांव और जमीन पर पहुंचकर सामने आती है, आंकड़े भले ही चाहे जो गवाही दें.

(इनपुटः IANS)

Trending news