गोली- बारूद के आगे अड़ गई थी MP की जनजातियां; सबसे पहले बजाया था आजादी का बिगुल
Abhinaw Tripathi
Aug 13, 2024
Independence Day 2024
पूरे देश में आजादी की तैयारियां चल रही है, आजादी की लड़ाई में जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी, तब जाकर आजादी मिली, आजादी की लड़ाई का बिगुल सबसे पहले इन जनजातियों ने फूंका था.
भारत की संस्कृति
भारत की संस्कृति, स्वाभिमान और स्वायत्तता के लिए जितना बलिदान और संघर्ष जनजातियों का है, वैसा उदाहरण संसार में कहीं नहीं मिलता.
बढ़- चढ़कर हिस्सा
आजादी की लड़ाई के लिए वनों और पर्वतों में रहने वाली जनजातियों ने स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया.
जनजातीय समूह
इनके बिगुल को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जनजातियों का दमन करने के लिए दो काम किये, पहला शिक्षा और सेवा के नाम पर परिवर्तन का अभियान चलाया और दूसरा कुछ जनजाति समूहों को अपराधी घोषित किया.
शोषण का लम्बा सिलसिला
उत्तर में विंध्याचल से लेकर दक्षिण-पश्चिम में सहयाद्रि के पश्चिमी घाट तक का अंचल भीलों का निवास स्थान था. अंग्रेजी राज के चलते भीलों पर दमन, शोषण का लम्बा सिलसिला चला.
1817 का संघर्ष
अन्तत: भीलों ने भी शांतिपूर्ण जीवन छोड़कर शस्त्र उठाए और अंग्रेजों के लिए आतंक बन गए, भीलों ने सामूहिक तरीके से संघर्ष किया और 1817 में खानदेश के भीलों का विद्रोह हुआ.
1818 का संघर्ष
अंग्रेजो ने खानदेश पर कब्जा कर लिया था. खानदेश पर अंग्रेजों का कब्जा सन् 1818 में होते ही भीलों ने पराधीनता को सिरे से नकार दिया और संघर्ष शुरू कर दिया.
1857 का संग्राम
1857 में मुक्ति संग्राम की चिंगारी जब उत्तर भारत होती हुई मध्यभारत पहुंची तो मालवा-निमाड़ के जनजाति भील-भिलाला नायकों ने मोर्चा थामा.
लड़ाई में रहे ये नायक
इन नायकों में टंटया भील, भीमा नायक, खाज्या नायक, सीतराम कंवर और रघुनाथ सिंह मंडलोई आदि ने संघर्ष का गौरवपूर्ण इतिहास रच दिया.