'कारवां गुजर गया'...पढ़िए गोपाल दास नीरज के ये चुनिंदा शेर

Harsh Katare
Dec 08, 2024

मेरे होंटों पे दुआ उस की ज़बां पे गाली जिस के अंदर जो छुपा था वही बाहर निकला

उस को क्या ख़ाक शराबों में मज़ा आएगा जिस ने इक बार भी वो शोख़ नज़र देखी है

ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की खिड़की खुली है फिर कोई उन के मकान की

छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो आंख से आंसू नहीं शोला निकलना चाहिए

ओढ़कर कफन, पड़े मजार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा

जिस्म दो हो के भी दिल एक हों अपने ऐसे मेरा आंसू तेरी पलकों से उठाया जाए

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा

अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए

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