'मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी'...पढ़िए कलीम आजिज़ ये बेहतरीन शायरियां

Harsh Katare
Dec 06, 2024

इश्क़ में मौत का नाम है ज़िंदगी जिस को जीना हो मरना गवारा करे

वो कहते हैं हर चोट पर मुस्कुराओ वफ़ा याद रक्खो सितम भूल जाओ

क्या सितम है कि वो ज़ालिम भी है महबूब भी है याद करते न बने और भुलाए न बने

तुम्हें याद ही न आऊँ ये है और बात वर्ना मैं नहीं हूँ दूर इतना कि सलाम तक न पहुँचे

करे है अदावत भी वो इस अदा से लगे है कि जैसे मोहब्बत करे हैं

रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो

दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़ तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो

न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहाँ मिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहे

ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी

दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है

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