पाकिस्तान में उपद्रवियों ने फिर तोड़ी महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा, एक गिरफ्तार
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पाकिस्तान में उपद्रवियों ने फिर तोड़ी महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा, एक गिरफ्तार

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान के लाहौर में 19वीं सदी के महान शासक की मूर्ति को शुक्रवार (11 दिसंबर) को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. इस मामले में पुलिस ने एक शख्स को अरेस्ट किया है.

फाइल फोटो.

लाहौरः वीर योद्धा महाराजा रणजीत सिंह (Ranjit Singh) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. उन्होंने पंजाब को न केवल सशक्त सूबे के रूप में एकजुट किया बल्कि अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया. रणजीत सिंह की मूर्ति पाकिस्तान के लाहौर में भी स्थित है जिसे हाल में क्षतिग्रस्त कर दिया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान के लाहौर में 19वीं सदी के महान शासक की मूर्ति को शुक्रवार (11 दिसंबर) को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. इस मामले में पुलिस ने एक शख्स को अरेस्ट किया है.

कोल्ड ब्रोन्ज से बनाई गई थी सिंह की मूर्ति
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मूर्ति गिराने वाले उपद्रवियों को पाकिस्तान में कुछ कट्टरपंथियों के भाषणों से परेशानी हुई थी जिसके बाद उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है. बता दें कि महाराजा रणजीत सिंह का निधन 1839 में हुआ था. जून में उनकी 180वीं पुण्यतिथि पर 9 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया था. यह ठंडी कांसे से बनी प्रतिमा थी जिसमें वीर सम्राट घोड़े पर सवार होकर तलवार दिखाते हुए नजर आ रहे थे, इसी प्रतिमा को उपद्रवियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है. स्थानीय पुलिस ने इस मामले में एक शख्स को गिरफ्तार किया है, जिसकी पहचान पाकिस्तान के लाहौर के हरबंसपुरा निवासी जहीर के रूप में हुई है.

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रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान के कुछ लोग भारत सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर में धारा 370 को भंग करने के फैसले से नाराज हैं लिहाजा वे हिंदुस्तान से ताल्लुक रखने वाली चीजों को हानि पहुंचाते हैं. 

आज भी प्रेरित करती हैं सिंह की गाथाएं
शेर-ए-पंजाब के नाम से लोकप्रिय महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं शताब्दी के शुरुआती समय में पंजाब क्षेत्र में सिख साम्राज्य पर शासन किया था. उनकी वीर गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं. रणजीत सिंह का जन्म पंजाब के गुजरांवाला में 13 नवंबर 1780 को हुआ था, यह इलाका अब पाकिस्तान में आता है. महाराज ने महज 17 साल की उम्र में भारत पर हमला करने वाले आक्रमणकारी जमन शाह दुर्रानी को हराकर अपनी पहली जीत हासिल की. इस जीत के साथ उन्होंने लाहौर पर कब्जा कर लिया और अगले कुछ दशकों में एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना की.

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