महाराष्ट्र: एक साल में 30 मराठी स्कूल बंद, नहीं रुक रहा छात्रों के पलायन का सिलसिला
देश की सबसे धनी मुंबई महानगर पालिका के अधीन आने वाले वाले मराठी स्कूलों का कड़वा सच सामने आया है. एक साल में 30 मराठी स्कूल बंद हो गए.
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मुंबई: देश की सबसे धनी मुंबई महानगर पालिका के अधीन आने वाले वाले मराठी स्कूलों का कड़वा सच सामने आया है. एक साल में 30 मराठी स्कूल बंद हो गए. ये तब हुए जब पिछले साले की अपेक्षा इस साल मराठी स्कूलों में भाषा और दूसरे शिक्षा से संबंधित विषय में बजट राशि में तीन गुना बढ़ोतरी की. सालाना बजट शिक्षा पर 2733.77 करोड़ रुपए का रखा गया है जिसमें प्राथमिक शिक्षा पर बजट के रूप में तकरीबन 82.78 करोड़ रुपए रखे गए हैं.
मराठी भाषा और शिक्षा का प्रसार करने का झंडा उठाने वाली शिव सेना दशकों से महानगर पालिका की सत्ता पर काबिज है. लेकिन इसमें प्रसार करने के बजाए इसके सही रहा पर नहीं ले जा पा रही है. योजनाएं खूब बनाई गईं लेकिन नतीजा सिफर रहा. बीएसी के जीर्ण शीर्ण स्कूलों को दुरुस्त करने के लिए तकरीबन 201.73 करोड़ रुपए रखे गए है. लेकिन ना तो स्कूलों की मरम्मत ही हो पा रही है, ना ही स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ पा रही है. उल्टे महज एक साल में 30 मराठी स्कूलों को बंद कर दिया गया.
प्रति छात्र खर्च बढ़ा
बीएमसी मराठी शिक्षा के स्कूल सहित अपने अंतर्गत आने वाले स्कूलों में छात्रों को सहलियत के लिए 27 जरूरी सामान, मसलन बैग, वाटर बॉटल, किताब और दूसरी अत्यावश्यक चीजों को मुफ्त में बांटती है. प्रशासन की तरफ से समानों के वितरण से पहले छात्र तो अधिकतम संख्या में रहते ही हैं लेकिन इस वितरण के बाद ही छात्रों का पलायन शुरू हो जाता है. इस साल के अंत आने से पहले तकरीबन 23 प्रतिशत छात्र स्कूल छोड़ चुके हैं. इन बंद होते मराछी स्कूलों में छात्रों को लाने के लिए और शारीरिक रूप से अक्षम होने वाले छात्रों के स्कूल तक आने के लिए 16.78 करोड़ रुपए रिजर्व रखे गए हैं. लेकिन छात्र तो दूर की बात अध्यापक भी शिक्षा देने के लिए मौजूद नहीं है. बीएमसी के जरिए छात्रों पर खर्च पिछले तीन सालों में 39790 से बढ़ाकर 47890 के करीब पहुंच गए हैं. अगामी सालों में ये योजना तकरीबन 60 हजार के आसपास पहुंचने की है.
मराठी स्कूलों को बचाने के लिए संघर्ष करने वाली संघर्ष समिति का मानना है कि मुफ्त में सामान देने की प्रथा ही गलत बनाई गई है. इससे महज उसी समय तक छात्र आते हैं. शेष समय यानि पढ़ाई के समय नदारत रहते हैं. आनंद भंडारे के मुताबिक, 'मराठी शिक्षा के शिक्षकों पर पढ़ाई को छोड़कर सरकार के कई काम करने का दबाव है. शिक्षा देना शायद सरकार की प्रथमिकता नहीं है, सरकारी काम की देखरेख करना शायद ज्यादा जरूरी जान पड़ता है. बिल्डिंग की कीमत भी बेहद मूल्यवान होने की वजह से इसे प्राइवेट बिल्डर को भी देने की साजिश प्रशासन की रही है. जो स्कूलों के बंद होने का कारण है.
विरोधी पक्ष नेता रवि राजा का इस बावत कहना है कि शिक्षा कमेटी के जरिये इस मसले पर कोई गंभीर निर्णय नहीं लिया गया. पूरे इस मामले में कई जगहों पर भ्रष्टाचार के संकेत मिल रहे हैं. इसकी जांच गंभीर तरीके से होनी चाहिए.
भले ही एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहें लेकिन जिस तरह के आकड़े सामने आए हैं. इससे मराठी भाषा और शिक्षा की दुहाई देने वाली शिवसेना की कथनी और करनी में साफ अंतर दिख रहा है. करोड़ों खर्च तो किए जा रहे हैं लेकिन नतीजा शुन्य ही दिख रहा है.