महाराष्ट्र के इस टीचर ने पेश की मिसाल, इकलौते स्टूडेंट के लिए तय करते हैं 115 KM का सफर
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महाराष्ट्र के इस टीचर ने पेश की मिसाल, इकलौते स्टूडेंट के लिए तय करते हैं 115 KM का सफर

महाराष्ट्र में एक शिक्षक दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणा का जरिया बन गया है. नागपुर निवासी शिक्षक रजनीकांत मेंढे रोज पुणे से भी 100 किलोमीटर दूर स्थित भोर के गांव चंदर में आठ साल के बच्चे को पढ़ाने जाते हैं.

गांव तक पहुंचने के लिए शिक्षक को कच्चे रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है (फोटो- Video grab)

 नई दिल्ली (अरुण मेहेत्रे) : महाराष्ट्र में एक शिक्षक दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणा का जरिया बन गया है. नागपुर निवासी शिक्षक रजनीकांत मेंढे रोज पुणे से भी 100 किलोमीटर दूर स्थित भोर के गांव चंदर में आठ साल के बच्चे को पढ़ाने जाते हैं. उनके घर से गांव में स्थित स्कूल की कुल दूरी करीब 115 किलोमीटर है. इस दौरान मिट्टी का कच्चा रास्ता भी आता है, जिसे पार करने में काफी समय लग जाता है. बावजूद इन सभी परेशानियों के रजनीकांत रोज अपने इकलौते छात्र को पढ़ाने के लिए यहां आते हैं.

  1. महाराष्ट्र के नागपुर निवासी शिक्षक ने पेश की मिसाल
  2. इकलौते छात्र के लिए तय करते हैं 115 KM का सफर
  3. बाइक से तय करते हैं 115 किलोमीटर का कठिन सफर

युवराज है इकलौता छात्र
चंदर गांव में 15 झोपड़ियां हैं जिसमें 60 लोग रहते हैं. दो सालों से सिर्फ आठ साल का युवराज ही रजनीकांत का इकलौता छात्र है. वे बताते हैं कि गांव में और भी बच्चे हैं लेकिन वे पढ़ने नहीं आते. युवराज को भी उन्हें कभी-कभी ढूंढ कर लाना पड़ता है. वो कभी पेड़ तो कभी अपने घर में ही छुप जाता है. रजनीकांत कहते हैं कि अकेले स्कूल आना और वहां पढ़ना किसी भी बच्चे के लिए बोझ सा है. लेकिन वे अपने स्टूडेंट को पढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं.

गरीबी के कारण ग्रामीणों ने बच्चों को रोजगार पर लगाया
रजनीकांत बताते हैं कि वे यहां पिछले आठ सालों से लगातार पढ़ाने आ रहे हैं. शुरुआत में उनके पास करीब 15-20 छात्र थे. लेकिन अब सिर्फ युवराज ही बचा है. गरीबी के कारण कई माता-पिता अपने बच्चों को किसी न किसी काम में लगा चुके हैं. घर की लड़कियों को भी काम के लिए कई लोगों ने गुजरात भेज दिया है, जहां वे मजदूरी करती हैं. उन्होंने बताया कि पिछले आठ सालों में यहां के हालात ज्यादा नहीं बदले हैं. करीब 12 किलोमीटर का रास्ता पहाड़ी पर है, जिस पर सड़क आज तक नहीं बनी. वे इसे पार करके ही गांव तक पहुंच सकते हैं. ऐसे में वे रोज 115 किलोमीटर का रास्ता और कच्चे मार्ग से गुजरते हुए अपने स्टूडेंट तक पहुंचते हैं.

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साल बीते, नहीं बदले हालात
चंदर गांव में साल 1985 में यह स्कूल बना था. यहां शुरुआत में सिर्फ चार दीवारें थी और छत नहीं थी. ऐसे में बारिश होने पर पानी स्कूल में भर जाता था. कुछ समय पहले यहां टीन की छत लगवाई गई, लेकिन बारिश होने पर इसमें से पानी रिसता है. वे बताते हैं कि उनके घरवालों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वे इतनी दूर और इतने कठिन रास्तों से होते हुए आते हैं. उन्होंने कहां कि घरवालों को पता चला तो वे चिंता करेंगे, इसलिए उन्हें अभी तक इस बारे में नहीं बताया है.

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गांव के हालातों के बारे में रजनीकांत ने बताया कि चांदर गांव में आज भी बिजली नहीं है. रोजगार के नाम पर लोग पत्थर तोड़ने का काम करते हैं. यहां लोगों से ज्यादा सांप हैं. ये ऐसा स्थान है जहां किसी को यदि कुछ हो भी जाए तो उसको तुरंत अस्पताल में इलाज मिलना भी मुश्किल है, क्योंकि यहां से हॉस्पिटल भी करीब 63 किलोमीटर दूर है.

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