Special Public Safety Bill: एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले अक्सर भाजपा के ऊपर तंज कसती रहतीं हैं. एक बार फिर उन्होंने महाराष्ट्र में शहरी नक्सलवाद के खिलाफ प्रस्तावित कानून को लेकर सरकार को घेरा है. उन्होंने इसकी तुलना रॉलेट एक्ट से की है.
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Maharashtra News: एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले अक्सर भाजपा के ऊपर तंज कसती रहतीं हैं. एक बार फिर उन्होंने महाराष्ट्र में शहरी नक्सलवाद के खिलाफ प्रस्तावित कानून को लेकर सरकार को घेरा है. उन्होंने इसकी तुलना रॉलेट एक्ट से की है. साथ ही कहा है कि सरकार की आलोचना करने वाले व्यक्तियों या संगठनों के खिलाफ इसका दुरुपयोग किया जा सकता है, इसकी वजह से प्रभावी रूप से पुलिस राज की स्थिति पैदा हो सकती है.
नक्सलियों के ठिकानों को बंद करना है
रिपोर्ट के मुताबिक जानकारी मिली है कि 'महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024' विधेयक, जो राज्य में नक्सलवाद से निपटने के लिए पहला कानून बनेगा. ये गैरकानूनी गतिविधियों से निपटने में सरकार और पुलिस तंत्र को कई अधिकार देने का प्रस्ताव करता है. पिछले साल दिसंबर में राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान विधेयक को फिर से पेश करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि इस कानून का उद्देश्य शहरी नक्सलियों के ठिकानों को बंद करना है. उन्होंने कहा था कि प्रस्तावित कानून वास्तविक असहमति की आवाजों को दबाने के खिलाफ नहीं है.
ट्वीट कर कही बात
महाराष्ट्र सरकार ने एक नया विधेयक पेश करने का फैसला किया है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है. इस विधेयक के जरिए आम लोगों के सरकार के खिलाफ बोलने के अधिकार को छीन लिया जाएगा. एक सच्चे स्वस्थ लोकतंत्र में, असहमतिपूर्ण विचारों का सम्मान किया जाता है. लोकतंत्र का सिद्धांत विपक्ष की आवाज़ों को भी महत्व देता है, क्योंकि वे सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग जवाबदेह रहें और जनमत का सम्मान करें.
देता है लाइसेंस
हालांकि, प्रस्तावित 'व्यक्तियों और संगठनों द्वारा कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम और उससे जुड़े या आकस्मिक मामलों के लिए' विधेयक में "अवैध कृत्यों" की परिभाषा सरकारी एजेंसियों को असीमित शक्तियां प्रदान करती प्रतीत होती है. यह प्रभावी रूप से सरकार को पुलिस राज स्थापित करने का लाइसेंस देता है, जिसका दुरुपयोग उन व्यक्तियों, संस्थानों या संगठनों के खिलाफ किया जा सकता है जो लोकतांत्रिक तरीके से रचनात्मक विरोध व्यक्त करते हैं. यह विधेयक "हम, भारत के लोग" की अवधारणा को कमजोर करता है.
The Maharashtra government has decided to introduce a new bill that undermines the fundamental rights of citizens. Through this bill, the right of common people to speak against the government will be taken away. In a truly healthy democracy, dissenting opinions are respected.…
— Supriya Sule (@supriya_sule) March 15, 2025
करता है उल्लंघन
प्रशासन को अनियंत्रित शक्तियां प्रदान करने से, यह जोखिम है कि व्यक्तियों को प्रतिशोध की भावना से परेशान किया जा सकता है. सरकारी नीतियों और निर्णयों की आलोचना करना, शांतिपूर्वक विरोध करना या मार्च आयोजित करना सभी अवैध कार्य माने जा सकते हैं. यह विधेयक वैचारिक विविधता के सिद्धांतों की अवहेलना करता है और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का सीधे उल्लंघन करता है.
रॉलेट एक्ट से की तुलना
इसके अलावा, यह विधेयक सरकार को कुछ न्यायिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने की शक्ति प्रदान करता है, जो न्यायिक स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा पैदा करता है. इसके कुछ प्रावधान मौलिक संवैधानिक अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं. ऐतिहासिक रूप से, अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान विपक्ष को दबाने के लिए इसी तरह का कानून (रॉलेट एक्ट) लाने का प्रयास किया था.
यह विधेयक भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों का सीधा खंडन है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं. हम सरकार से इस विधेयक के मसौदे की समीक्षा करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो.
पहली बार कब पेश किया गया था विधेयक
यह बिल पहली बार जुलाई 2024 में तत्कालीन एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था. हालांकि, उस समय इसे पारित नहीं किया जा सका था. एक बार फिर पेश किए गए विधेयक को राज्य विधानमंडल की संयुक्त चयन समिति को भेजा जाएगा ताकि इससे संबंधित सभी संदेह दूर किए जा सकें. फडणवीस ने कहा कि हितधारकों के विचारों पर विचार किया जाएगा और जुलाई 2025 में होने वाले राज्य विधानमंडल के मानसून सत्र में विधेयक लाया जाएगा.