DNA with Sudhir Chaudhary: महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बाद से एकनाथ शिंदे और बाकी विधायक पहले सूरत में स्थित एक फाइव स्टार होटेल में ठहरे हुए थे. लेकिन मंगलवार रात अचानक से ये सभी विधायक सूरत एयरपोर्ट पहुंचे, जहां से इन्हें गुवाहाटी ले जाया गया. सूरत से गुवाहाटी की दूरी लगभग दो हजार 600 किलोमीटर है. सूरत भारत के पश्चिम में है तो गुवाहाटी भारत के उत्तर पूर्व है. यानी ये दोनों जगह देश के अलग अलग छोर पर हैं. इसलिए आपके मन में भी ये सवाल होगा कि आखिर इन सारे बागी विधायकों ने अपना ठिकाना क्यों बदला?.. वो सूरत से गुवाहाटी क्यों गए? तो इसे समझने के लिए आपको 2019 का राजनीतिक घटनाक्रम याद करना होगा, जब NCP के नेता अजीत पवार ने बगावत कर दी थी और बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली थी.


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यहां शिवसेना का कोई ग्राउंड नेटवर्क नहीं


उस समय अजीत पवार ने NCP के विधायकों को मुम्बई या पंजाब में रखा था. तब NCP इन विधायकों तक आसानी से पहुंच गई थी. इसलिए ऐसी खबरें हैं कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे इस बार ऐसी कोई गलती नहीं दोहराना चाहते थे. इसलिए पहले उन्होंने सड़क मार्ग से मुम्बई से सूरत तक का सफर तय किया. क्योंकि सूरत मुम्बई से सिर्फ 280 किलोमीटर दूर है. ये दूरी केवल 6 घंटे में कवर की जा सकती है. क्योंकि सूरत और मुम्बई ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए बीजेपी और एकनाथ शिंदे को एक ऐसे राज्य की तलाश थी. जहां बीजेपी की सरकार हो.. जो महाराष्ट्र से काफी दूर हो और जहां शिवसेना का कोई ग्राउंड नेटवर्क ना हो. असम इसके लिए बिल्कुल फिट था. क्योंकि यहां बीजेपी की सरकार है. ये राज्य महाराष्ट्र से ढाई हजार किलोमीटर दूर है. यहां शिवसेना का कोई ग्राउंड नेटवर्क नहीं है. ताकि वो अपने बाकी विधायकों से कोई सम्पर्क कर सके. या महाराष्ट्र की पुलिस भेजकर सभी विधायकों को जल्दी मुम्बई वापस ला सके.



अकेले एकनाथ शिंदे ही बैटिंग नहीं कर रहे


इस राजनीतिक खेल में अकेले एकनाथ शिंदे ही बैटिंग नहीं कर रहे. बल्कि शिवसेना ने भी इस खेल में पूरा जोर लगाया हुआ है. सूरत में एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के जो विधायक ठहरे हुए थे, उनमें से एक विधायक अब वापस मुम्बई उद्धव ठाकरे के पास लौट आए हैं और इस विधायक का नाम है नितिन देशमुख. नितिन देशमुख का आरोप है कि जब एकनाथ शिंदे शिवसेना के बागी विधायकों को लेकर मुम्बई से सूरत के लिए निकले तो इस दौरान उन्हें ये नहीं बताया गया था कि वो महाराष्ट्र की सरकार को गिराने के लिए ऐसा कर रहे हैं. लेकिन सूरत पहुंचने के बाद जब नितिन देशमुख को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया और आरोप है कि इसके बाद उनसे गुजरात की पुलिस ने दुर्व्यवहार किया और बाद में उन्हें सूरत के एक अस्पताल में ये कहते हुए भर्ती करा दिया कि उन्हें Heart Attack आया है. जबकि नितिन देशमुख का कहना है कि उन्हें ऐसा कुछ नहीं हुआ था. वो पूरी तरह फिट थे. अस्पताल पहुंचने के बाद उन्होंने सूरत आए शिवसेना के नेताओं से सम्पर्क किया और उनकी मदद से वो अस्पताल से बाहर निकल आए और इसके बाद सड़क मार्ग से सूरत से मुम्बई पहुंचे ताकि उन्हें दोबारा कोई पकड़े नहीं.


ठाकरे से क्यों खफा हो गए शिंदे?


58 साल के एकनाथ शिंदे का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. उनका बचपन काफी गरीबी में बीता. वो जब 16 साल के थे, तब उन्होंने अपने परिवार की मदद करने के लिए काफी समय तक ऑटो रिक्शा भी चलाया. इसके अलावा उन्होंने पैसे कमाने के लिए शराब की एक फैक्ट्री में भी काफी समय तक काम किया. कहा जाता है कि 1980 के दशक में वो बाल ठाकरे से काफी प्रभावित हुए और इसके बाद उन्होंने शिवसेना पार्टी Join कर ली. उस समय महाराष्ट्र में शिवसेना अकेली ऐसी पार्टी थी, जो हिन्दुत्व के मुद्दे पर लोगों के बीच जाती थी. इस मामले में बीजेपी भी उससे काफी पीछे थी. एकनाथ शिंदे 2004 में पहली बार विधायक बने थे. बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उन्हें शिवसेना के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखा जाता था. हालांकि पिछले दो वर्षों में उनका ये कद घट गया और पार्टी में उनसे ज्यादा उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को ज्यादा प्राथमिकता दी जाने लगी, जिससे एकनाथ शिंदे खफा हो गए. असल में एकनाथ शिंदे पार्टी में सिर्फ नाम के लिए रह गए थे. उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था.


शिवसेना की स्थापना का मकसद क्या था?


यहां एक बात आपको ये भी समझनी होगी कि शिवसेना की स्थापना वर्ष 1966 में बाल ठाकरे ने की थी. उस समय इस पार्टी की स्थापना का मकसद था.. सरकारी नौकरियों में मराठी समुदाय के लोगों को प्राथमिकता दिलावाना. महाराष्ट्र में मराठी भाषा का प्रचार प्रसार करना. मराठी संस्कृति को बढ़ावा देना. हिन्दुत्व की विचारधारा को शिवसेना ने 1980 के दशक में अपनाया. यानी शिवसेना की स्थापना के समय हिन्दुत्व बड़ा मुद्दा नहीं था. लेकिन 1980 के दशक में बाल ठाकरे हिन्दुत्व और क्षेत्रवाद को मिला दिया और महाराष्ट्र में हिन्दुत्व के सबसे बड़े ब्रैंड ऐम्बेस्डर बन गए. इसके अलावा बाल ठाकरे ने जीवित रहते हुए सरकार में कभी कोई पद हासिल नहीं किया. ना ही अपने परिवार से किसी को सरकार का हिस्सा बनने दिया. लेकिन वर्ष 2012 में बाल ठाकरे की म़ृत्यु के बाद शिवसेना एक परिवार की पार्टी बन गई और उद्धव ठाकरे 2019 में कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन करके राज्य के मुख्यमंत्री बन गए और अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भी सरकार में मंत्री बना दिया. ये शिवसेना के पतन का सबसे बड़ा कारण है. इसलिए जो एक परिवार पर आधारित पार्टियां होती हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ी सीख है. क्योंकि ऐसी पार्टियों में नेताओं को परिवार से छोटा समझा जाता हैं. उन्हें मौके नहीं दिए जाते. इन पार्टियों को एक परिवार द्वारा प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह चलाया जाता है.


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