कांग्रेस को झेलनी पड़ी शर्मिंदगी, पार्टी मुखपत्र 'कांग्रेस दर्शन' में नेहरू-सोनिया को बनाया निशाना, नेतृत्‍व पर उठाए सवाल
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कांग्रेस को झेलनी पड़ी शर्मिंदगी, पार्टी मुखपत्र 'कांग्रेस दर्शन' में नेहरू-सोनिया को बनाया निशाना, नेतृत्‍व पर उठाए सवाल

कांग्रेस को सोमवार को उस समय शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब उसीके मुखपत्र ने कश्मीर मामले पर जवाहरलाल नेहरू की नीति की आलोचना की और आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के पिता एक ‘फासीवादी सैनिक’ थे। पार्टी अपने स्थापना दिवस पर सामने आए इस विवाद से असहज स्थिति में आ गई है। कांग्रेस के 131वें स्थापना दिवस से पहले पार्टी की मुंबई शाखा ने उसके लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं।

नई दिल्‍ली : कांग्रेस की पत्रि‍का 'कांग्रेस दर्शन' में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर आपत्तिजनक लेख छपने के बाद पार्टी काफी असहज हो गई है। इस लेख में पार्टी नेतृत्‍व पर सवाल उठाए गए हैं। कांग्रेस को सोमवार को उस समय शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब उसीके मुखपत्र ने कश्मीर मामले पर जवाहरलाल नेहरू की नीति की आलोचना की और आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के पिता एक ‘फासीवादी सैनिक’ थे। पार्टी अपने स्थापना दिवस पर सामने आए इस विवाद से असहज स्थिति में आ गई है। उधर, मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरुपम ने पार्टी के जर्नल में नेहरू, सोनिया की आलोचना वाले लेख छपने के लिए माफी मांगी।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कांग्रेस के 131वें स्थापना दिवस से पहले पार्टी की मुंबई शाखा ने उसके लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। मुंबई कांग्रेस के मुखपत्र में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखे प्रहार किए गए है और उनके ऊपर तीखी टिप्पणियां की गई हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को मुखपत्र में कश्मीर, चीन और तिब्बत नीति के लिए निशाने पर लिया गया है। मुखपत्र के लेख में साफ लिखा गया है कि नेहरू को अंतरराष्ट्रीय मामलों पर स्वतंत्रता सेनानियों और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई की बात सुननी चाहिए थी। 15 दिसंबर को पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के मकसद से इस महीने पार्टी की ‘कांग्रेस दर्शन’ के हिंदी संस्करण में प्रकाशित लेख में लेखक के नाम का उल्लेख नहीं है।

 

‘कांग्रेस दर्शन’ के दिसंबर इशू में नेहरू के नाती राजीव गांधी की पत्नी और वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी फोकस किया गया है। जब पार्टी खुद सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर बात करने से कतराती रही है, आर्टिकल में उनके शुरुआती जीवन पर डिटेल में लिखा गया है। इसमें उनकी एयर होस्टेस बनने की ख्वाहिश भी बताई गई है। मुखपत्र में उस आरोप पर भी बात की गई है जिसमें सोनिया के पिता को ‘फासिस्ट’ बताने और रूस के खिलाफ विश्व युद्ध में उनके हारने की बात की जाती रही है। आश्चर्यजनक रूप से, कांग्रेस खुद ही बीजेपी और दक्षिणपंथी गुटों को ‘फासिस्ट’ बताती रही है। इसमें आरोप लगाया गया है, सोनिया गांधी के पिता स्टेफनो मायनो एक पूर्व फासीवादी सैनिक थे। लेख में यह भी बताया गया है कि सोनिया किस प्रकार तेजी से पार्टी अध्यक्ष के पद पर पहुंची। लेख में कहा गया है कि सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के तौर पर पंजीकरण कराया और वह 62 दिनों में पार्टी की अध्यक्ष बन गई। उन्होंने सरकार गठित करने की भी असफल कोशिश की।

कांग्रेस ने हमेशा से ही नेहरू और पटेल के बीच किसी भी तरह के मतभेद की अटकलों को खारिज ही किया है लेकिन ‘कांग्रेस दर्शन’ के दिसंबर इशू में इसपर बात की गई है। 15 दिसंबर को पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि भी दी गई है। लेख में यह छपा है कि पटेल को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद मिला था इसके बावजूद दोनों नेताओं में संबंध तनावपूर्ण बने रहे और दोनों ने कई बार इस्तीफा देने की धमकी भी दी थी।’ नेहरू विदेश मामलों के इंचार्ज थे और कश्मीर मामले को उन्होंने अपने पास ही रखा था लेकिन पटेल, उप प्रधानमंत्री रहते हुए कुछ कैबिनेट बैठकों में शामिल हुए थे। आर्टिकल में लिखा गया है कि अगर पटेल की दूरदर्शिता को ध्यान में रखा गया होता तो आज के हालात कभी पैदा नहीं होते। पत्रिका में और भी कई हैरान कर देने वाली बातें हैं। दावा किया गया है कि पटेल की राय न मानने की वजह से नेहरू ने चीन, तिब्बत और नेपाल जैसे अंतरराष्ट्रीय मामलों को अस्त-व्यस्त कर दिया था।

 

लेख में कहा गया है कि उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के पद पर रहने के बावजूद दोनों नेताओं के बीच संबंध तनावपूर्ण बने रहे और दोनों ने उस वक्त कई बार इस्तीफा देने की धमकी भी दी थी। लेख के मुताबिक, अगर नेहरू ने पटेल की दूरदर्शिता को ग्रहण किया होता तो कई अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर समस्या खड़ी नहीं होती। लेख में 1950 में कथित तौर पर पटेल के लिखे एक पत्र का हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने तिब्बत को लेकर चीन की नीति के खिलाफ नेहरू को आगाह करते हुए चीन को ‘एक अविश्वासी और भविष्य में भारत के दुश्मन के तौर पर बताया है।लेख के अनुसार, अगर वह (नेहरू) पटेल की बात सुनते तो आज कश्मीर, चीन, तिब्बत और नेपाल की समस्याएं नहीं होतीं। पटेल ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाने के नेहरू के कदम का भी विरोध किया था और नेपाल पर पटेल के विचारों से भी वह सहमत नहीं थे।

मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के प्रमुख और मुखपत्र के संपादक संजय निरुपम ने कहा कि वह पत्रिका के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों में शामिल नहीं हैं और उन्हें लेख की जानकारी नहीं थी। निरुपम ने कहा कि मैं गलती स्वीकार करता हूं। गलती करने वाले संपादकीय विभाग के खिलाफ जांच की जाएगी। इस प्रकार की गलती दोबारा नहीं हो, हम इसके लिए कदम उठाएंगे। उन्होंने कहा है कि मैं सिर्फ नाम मात्र का संपादक हूं। संपादक मंडल में जिसने भी ये गलती की है उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। उन्‍होंने कहा कि हमारी यह कोशिश रहेगी कि भविष्‍य में ऐसी गलती फिर से न हो। इससे पहले, मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के प्रमुख और जर्नल के संपादक संजय निरुपम ने लेख को लेकर अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि वह पत्रिका के हर दिन के काम में शामिल नहीं होते हैं इसलिए उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।

पार्टी के 131वें स्थापना दिवस पर इसकी मुंबई इकाई के मुखपत्र 'कांग्रेस दर्शन' में छपे लेख में लेखक का नाम नहीं हैं। लेख में ‘कश्मीर, चीन और तिब्बत संबंधी मसलों’ के लिए नेहरू पर आरोप लगाए गए हैं। इसके अलावा एक अन्य लेख में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी पर विवादास्पद टिप्पणियां की गई हैं। इसके कारण मुखपत्र के संपादक और कांग्रेस के नेता संजय निरूपम को मामले की जांच के आदेश देने पड़े और उन्होंने दावा किया कि उन्हें लेख की विषय वस्तु की कोई जानकारी नहीं थी।

दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं सलमान खुर्शीद और राज बब्बर ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। खुर्शीद ने कहा कि यदि कांग्रेस (की पत्रिका) के लेख में इस प्रकार का कुछ लिखा गया है तो एआईसीसी इस मामले की जांच करेगी। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह स्पष्ट है कि लेखक को इतिहास की जानकारी नहीं है और उसे यह भी जानकारी नहीं है कि नेहरू किन परिस्थितियों में देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे और उन्हें गरीबी उन्मूलन जैसी किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के शीर्ष नेता राष्ट्रीय राजधानी में एआईसीसी के मुख्यालय में स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए थे।

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