बीजेपी को अगले साल पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधान सभा चुनाव से पहले एक और बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है. CBI ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी है कि ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) सरकार ने मुख्यमंत्री राहत कोष के पैसों से घोटाले में फंसी एक कंपनी के कर्मचारियों को 23 महीने तक करोड़ों रुपये की सैलरी दी.
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कोलकाता: बंगाल में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) सरकार एक और संकट में फंस गई है. CBI ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके कहा है कि ममता सरकार ने मुख्यमंत्री राहत कोष (CM Relief Fund) के पैसों से घोटाले में फंसी तारा टीवी कंपनी (Tara TV company) के कर्मचारियों को सैलरी दी.
भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक CBI ने कोर्ट में कहा कि मई 2013 से लेकर अप्रैल 2015 के बीच तारा टीवी (Tara TV company) के कर्मचारियों की सैलरी के लिए हर महीने CM रिलीफ फंड (CM Relief Fund) से 27 लाख रुपये दिए गए. इस दौरान तारा टीवी एंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन को 6.21 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया. सरकारी फंड से प्राइवेट कंपनी के कर्मचारियों को सैलरी देने का यह पहला मामला है.
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CBI ने कोर्ट को बताया कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को कंपनी के फंड से सैलरी देने को कहा था, लेकिन बंगाल सरकार ने CM रिलीफ फंड (CM Relief Fund) का पैसा दे दिया. CM रिलीफ फंड में जनता की तरफ से आपदा और दूसरी इमरजेंसी के लिए रकम दान की जाती है. लेकिन इस रकम का दुरुपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों को सैलरी दे दी गई. CBI ने कहा कि इस मामले में पश्चिम बंगाल के चीफ सेक्रेटरी से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने आधे-अधूरे दस्तावेज ही मुहैया कराए.
बता दें कि ममता सरकार (Mamta Banerjee government) पहले से ही 2460 करोड़ रुपये शारदा चिटफंड घोटाले (Sharda chit fund scam) में फंसी हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे चिटफंड मामलों के साथ शारदा घोटाले की जांच भी 2014 में CBI को सौंप दी थी. इस मामले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर रहे राजीव कुमार भी आरोपी हैं. CBI ने कोर्ट में कहा है कि जमानत मिलने के बाद से राजीव कुमार जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं, इसलिए उनकी गिरफ्तारी जरूरी है.
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शारदा चिटफंड ग्रुप पर आरोप है कि उसने पश्चिम बंगाल में कई फेक स्कीम्स चलाई. इन स्कीमों में कथित तौर पर लाखों लोगों के साथ फ्रॉड किया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शारदा ग्रुप की चार कंपनियों का इस्तेमाल फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट और मंथली इनकम डिपॉजिट नाम की स्कीमों में करके पैसा इधर-उधर डाइवर्ट किया गया. पश्चिम बंगाल पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 80 फीसदी जमाकर्ताओं के पैसे का भुगतान किया जाना बाकी है.
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