'मेरे मरहूम शौहर मेरा फोन नहीं उठाते....', कश्‍मीर में शहीद की पत्नी का दर्द
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'मेरे मरहूम शौहर मेरा फोन नहीं उठाते....', कश्‍मीर में शहीद की पत्नी का दर्द

वह जानना चाहता था कि ईद को लेकर घर में क्‍या तैयारियां चल रही है. बच्‍चों ने ईद के लिए नए कपड़े खरीदे हैं या नहीं. वह ईद से पहले घर आया जरूर, लेकिन खून से सने हुए कपड़ों में.

 

मुमताज की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी महवीश मुमजात कहती है कि पापा मुझे कश्‍मीर एडमिनिस्‍ट्रेशन सर्विसेज (KAS) का अधिकारी बनाना चाहते थे. (प्रतीकात्‍मक फोटो)

नई दिल्‍ली: स्‍पेशल पुलिस ऑफीसर शहीद मुमताज अहमद अवान की पत्‍नी शफूरा बेगम का इन दिनों एक दर्द है कि उसके मरहूम शौहर उनका फोन नहीं उठाते हैं. मुमताज अहमद अवान की शहादत के बाद से अपने कमरे में बेसुध पड़ी शफूरा बेगम की बेचैनी फोन की हर घंटी के साथ बढ़ती जाती है. लगभग पूरी तरह से खामोश रहने वाली शफूरा बेगम फोन की घंटी सुनते ही घर में मौजूद हर शख्‍स को खामोश कराने लगती है.

  1. 14 जून को हुए अज्ञात आतंकियों ने किया था मुमताज अहमद पर हमला
  2. श्रीनगर में हुए हमले में मुमताज अहमद की मौके पर ही हो गई थी मौत
  3. मुमताज की मौत के बाद से उनकी बेसुध पत्‍नी को है उनके फोन का इंतजार

बोलती है ' अल्‍ला के लिए सब खामोश हो जाओ, मेरे मुमताज का फोन आया है.' शगूफा बेगम बेहद बेचैनी के साथ फोन पर बार बार मुमताज का नाम लेती है. उधर से किसी गैर की आवाज सुनकर वह एक बार फिर खामोश होकर बेसुधी के हालात में चली जाती है. कुछ पल इंतजार के बाद वह एक बार फिर अपना मोबाइल फोन उठाती है, कुछ देर निहारने के बाद मोबाइल को फिर रख देती हैं. जालिमों के हर कहर से बखूबी वाकि‍फ होने के बावजूद 14 जून के बाद से  मुमताज की बेवा शफूरा बेगम का यही आलम हैं.

शफूरा बेगम को बखूबी पता है कि ऊपर वाले के दरबार में फोन की घंटी नहीं पहुंचती, बावजूद इसके जब-जब उसे मुमताज के फोन का इंतजार खलता है, वह अपना मोबाइल उठाकर अपने मरहूम पति को फोन करने लगती है. कोई जवाब न मिलने पर वह हमेशा यही कहती है 'मैं उनके नंबर पर बार-बार कॉल कर रही हूं, लेकिन वह कोई जवाब ही नहीं देते. मैं उनकी आवाज सुनना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि वह मुझे फोन कर अपनी सारी बातें बताएं. पर पता, वह मुझसे बात क्‍यूं नहीं कर रहे हैं.'

जब कभी वह अपनी बेसुधी से बाहर आती है तो अक्‍सर अपनो से यही कहती है कि 'मेरे लिए यह भरोसा करना बहुत मुश्किल है कि मुमताज अब हमारे बीच नहीं हैं. उसके अलावा मेरा और मेरे बच्‍चों की परवाह करने वाला कोई नहीं है. वह न केवल मुझे बहत प्‍यार करता था, बल्कि कोई भी पिता उससे बेहतर नहीं हो सकता था. वह हमसे दूर भले ही रहता था लेकिन उसके दिन की शुरूआत मुझसे और मेरे बच्‍चों से बात करने के बाद ही होती थी.' 

मुमताज से हुई आखिरी बात को याद करते हुए वह बताती है कि वह ईद पर घर आने वाला था. वह जानना चाहता था कि ईद को लेकर घर में क्‍या तैयारियां चल रही है. बच्‍चों ने ईद के लिए नए कपड़े खरीदे हैं या नहीं. वह ईद से पहले घर आया जरूर, लेकिन खून से सने हुए कपड़ों में. वह बच्‍चों को नए कपड़े में देखे बिना हम सब को बहुत दूर चला गया. मैं अभी भी उसका इंतजार कर रहीं हूं. पता नहीं वह किस बात पर हमसे रूठ गया. वह न ही घर आता है और न ही हमसे फोन पर बात करता है.

शफूरा बेगम की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी महवीश मुमजात अपनी मां की इस हालत को बखूबी समझने लगी है. अपनी मां को संभालते हुए बोलती है कि पापा मुझे कश्‍मीर एडमिनिस्‍ट्रेशन सर्विसेज (KAS) का अधिकारी बनाना चाहते थे. वह अक्‍सर कहते थे कि वे मुझे श्रीनगर ले जाएंगे. वहां वह मेरा दाखिला श्रीनगर के सबसे अच्‍छे स्‍कूल में कराएंगे. शफूरा बेगम के दो बेटे भी हैं. शहनवाज अवान और मुनीब अवान. अभी वह इतने छोटे हैं कि उन्‍हें नहीं पता कि उन्‍होंने अपने जिंदगी से क्‍या खो‍ दिया है.

मुमताज के छोटे भाई इरशाद अवान कहते हैं कि अच्‍छा है इसी बेखबरी के आलम में सही, वह खुश तो हैं. इन बच्‍चों को खिलखिलाता देख, हम अपना दर्द कुछ हल्‍का कर लेते हैं. आपको बता दें कि जम्‍मू कश्‍मीर के श्रीनगर में मुमताज अहमद अवान की अज्ञात हमलावरों ने 14 जून को गोली मार कर हत्‍या कर दी थी. मुमताज कश्‍मीर के अंग्रेजी अखबार के एडिटर इन चीफ सुजात खुबारी के पीएसओ थे. श्रीनगर में हुए इस कातिलाना हमले में हमलावरों ने सुजात बुखारी के साथ उनकी भी गोली मार कर हत्‍या कर दी थी. (हाल में शहीद मुमताज अहमद अवान के परिवार के मिलने गए सुरक्षाबल के एक वरिष्‍ठ अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर खबर)

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