धारा 66-ए : SC के फैसले पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
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धारा 66-ए : SC के फैसले पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा वह प्रावधान निरस्त कर दिए जाने का स्वागत किया जिसके तहत इंटरनेट पर अप्रिय टिप्पणियां करने वालों को जेल भेजने का प्रावधान था। कांग्रेस ने माना कि निरस्त किए गए कानून में खामियां थीं।

धारा 66-ए : SC के फैसले पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

नई दिल्ली : ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा वह प्रावधान निरस्त कर दिए जाने का स्वागत किया जिसके तहत इंटरनेट पर अप्रिय टिप्पणियां करने वालों को जेल भेजने का प्रावधान था। कांग्रेस ने माना कि निरस्त किए गए कानून में खामियां थीं।

बहरहाल, जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने शीर्ष न्यायालय के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि वह न्यायपालिका का सम्मान करते हैं, लेकिन एक ‘अच्छे’ प्रावधान को निरस्त करना गलत है क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब ‘गाली देने की आजादी’ नहीं होता। वहीं शिवसेना ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से कानून का लागू कराने वाली एजेंसियों के हाथ कमजोर होंगे।

वामपंथी पार्टियों और आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा और कांग्रेस पर आरोप लगाया कि दोनों ने इस मुद्दे पर अदालत में ‘एक जैसा अलोकतांत्रिक रुख अपनाया’।

साल 2008 में इस विवादित प्रावधान को लागू करने वाली यूपीए सरकार का हिस्सा रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66-ए को असंवैधानिक करार देकर निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि धारा का मसौदा ठीक से तैयार नहीं किया गया था और उसका गलत इस्तेमाल किया गया।

चिदंबरम ने कहा, ‘आईटी कानून की धारा 66-ए को असंवैधानिक करार देकर निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का मैं स्वागत करता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘धारा का मसौदा ठीक से तैयार नहीं किया गया था और यह दोषपूर्ण था। इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता था, और गलत इस्तेमाल किया भी गया।’

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि धारा 66-ए अभिव्यक्ति की आजादी को ठेस पहुंचा रही थी। तिवारी ने कहा, ‘हम फैसले का स्वागत करते हैं। अधिकारियों ने बिना सोचे-समझे इसका इस्तेमाल किया। धारा 66-ए संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी के खिलाफ थी।’ उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने एक उचित फैसला दिया है। धारा 66-ए ने कानून लागू कराने वाली एजेंसियों के हाथों में बहुत ताकत दे दिया था।’ भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि यह फैसला पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार के रुख से मेल खाता है।

मोदी सरकार के वकील ने आईटी कानून की धारा 66-ए की संवैधानिक मान्यता का बचाव किया था। सरकार ने कहा था कि वह भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करती है और सोशल मीडिया पर बंदिशें लगाने के पक्ष में नहीं है। सरकार ने जोर देकर कहा था कि वह अदालत में इस मुद्दे पर यूपीए सरकार के रुख से अलग रुख अपना रही थी।

एनडीए के घटक दल शिवसेना ने मांग की है कि इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए और सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल रोकने के उपायों की जरूरत है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र के पालघर की रहने वाली दो लड़कियों को नवंबर 2012 में शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई में हुए बंद के खिलाफ टिप्पणी करने पर गिरफ्तार किया गया था जिससे काफी विवाद पैदा हुआ था।

शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा, ‘अदालत राज्य एवं केंद्र के समग्र कामकाज को देख रही है। उत्तर प्रदेश में जब एक छात्र ने फेसबुक पर लिखा तो उसे जेल हुई। बालासाहेब की मृत्यु के बाद पालघर में एक लड़की ने फेसबुक पर कुछ लिखा और इससे तनाव भरे हालात पैदा हुए। इस मामले में पुलिसकर्मी निलंबित किए गए थे।’ राउत ने कहा, ‘इस आदेश से पुलिस के हाथों में कुछ नहीं रह जाएगा। सोशल मीडिया अहम है और इसके कुछ अहम पहलू हैं। हमारे देश में सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। उसे रोकने की खातिर कुछ न कुछ होना चाहिए जिससे कानून लागू कराने वाली एजेंसियों के हाथ मजबूत हों।’ उन्होंने इस मुद्दे पर व्यापक बहस कराने की मांग की।

राउत ने कहा, ‘कल यदि उच्चतम न्यायालय के खिलाफ कुछ अप्रिय डाला जाता है तो क्या वह कार्रवाई नहीं करेगा ? तब तो अदालत की अवमानना हो जाएगी। पर राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में मौजूद लोगों के बारे में क्या ? आप राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में मौजूद लोगों पर टिप्पणी की पूरी आजादी देंगे। इस पर बहस की जरूरत है।’ इस मुद्दे पर शरद यादव ने कहा, ‘मैं उच्चतम न्यायालय के आदेश का सम्मान करता हूं। पर यह एक गलत फैसला है। सोशल मीडिया पर जिस तरह के अभद्र एवं अप्रिय भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, वह आजादी नहीं है। स्वतंत्रता पर बहस होनी चाहिए...क्या स्वतंत्रता का मतलब पत्थरबाजी और गालियां हैं।’

उन्होंने कहा, ‘यह एक बहुत ही अच्छा कानून है। मैं उच्चतम न्यायालय के आदेश से पूरी तरह असहमत हूं।’

उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान से जब इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि वह ‘अपराधियों की हिमायत’ करता है। गौरतलब है कि आजम के खिलाफ ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी कथित तौर पर फेसबुक पर लिखने के आरोप में एक छात्र की पिछले दिनों गिरफ्तारी हुई थी जिससे वह विवादों में घिर गए थे। लखनऊ में आजम ने कहा, ‘आप लोग अपराधियों की हिमायत करते हैं।’ उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए ‘आप’ ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बंदिशें लगाने के लिए धारा 66-ए का गलत इस्तेमाल किया।

माकपा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से न केवल नागरिक स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकारों की रक्षा हुई है, बल्कि इससे पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सरकारों को ‘सही संदेश’ गया है कि वे असंतोष को दबा नहीं सकते। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने फैसले को ‘बड़ी राहत’ करार देते हुए कहा कि इस प्रावधान का गलत इस्तेमाल कुछ लोगों से राजनीतिक बदला लेने के लिए किया गया जिसे कतई सही नहीं ठहराया जा सकता।

इस बीच, जानेमाने फिल्म अभिनेता कमल हासन ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी का विकास नहीं रोका जा सकता। हासन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि सूचना प्रौद्योगिकी का विकास नहीं रोका जाना चाहिए, नहीं रोका जा सकता।’

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