मध्यप्रदेश में 2017 में अब तक हुई 17 बाघों की मौत : एनटीसीए
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मध्यप्रदेश में 2017 में अब तक हुई 17 बाघों की मौत : एनटीसीए

वर्तमान में भारत में दुनिया के कुल बाघों में से 70 प्रतिशत बाघ हैं, जो देश के 17 राज्यों के जंगलों एवं 50 अभयारण्य में रहते हैं.

पिछले साल देश में कुल 100 बाघों की मौत हुई थी, जिनमें से 30 बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई थी.  (FILE-प्रतीकात्मक फोटो)

भोपाल : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में इस साल अब तक कुल 17 बाघों की मौत हुई है. प्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में जाना जाता था. एनटीसीए के अनुसार इस साल एक जनवरी से लेकर 29 सितंबर तक देश में कुल 71 बाघों की मौत हुई है, जिनमें से सबसे ज्यादा 17 बाघ मध्यप्रदेश में मरे हैं. वर्तमान में भारत में दुनिया के कुल बाघों में से 70 प्रतिशत बाघ हैं, जो देश के 17 राज्यों के जंगलों एवं 50 अभयारण्य में रहते हैं.

  1. 29 सितंबर तक देश में कुल 71 बाघों की मौत हुई है.
  2. सबसे ज्यादा 17 बाघ मध्यप्रदेश में मरे हैं. 
  3. पिछले साल देश में कुल 100 बाघों की मौत हुई थी.

क्या कहते हैं आंकड़ें?
आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में पिछले महीने तीन बाघों की मौत हुई. अप्रैल में सबसे ज्यादा आठ बाघों की मौत राज्य में हुई. जनवरी एवं मई में दो-दो और फरवरी एवं मार्च में एक-एक बाघ की मौत हुई. वहीं, कर्नाटक में 14 बाघ की मौत हुई, जबकि महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड में 12-12, उत्तर प्रदेश में छह, असम में चार, केरल एवं तमिलनाडु में दो-दो और ओडिशा एवं राजस्थान में एक-एक बाघ की मौत हुई है. 

मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया, ‘‘देश में वन्यजीव प्रबंधन के लिए मध्यप्रदेश एक आदर्श राज्य है.’’राज्य में बाघों के शिकार के बारे में उन्होंने कहा कि मीडिया में हमारे विभाग की केवल नकारात्मक चीजें ही सामने आती है. हमारा वन्यजीव प्रबंधन बहुत अच्छा है.

विशेष बाघ सुरक्षा बल का गठन के सवाल पर अग्रवाल ने बताया कि यह राज्य सरकार का मामला है. ‘‘इस संबंध में हमने अपना काम कर दिया है और दो साल पहले दस्तावेज सरकार को कैबिनेट मंजूरी के लिए दे दिया हैं.’’अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश का ‘टाइगर स्ट्राइक फोर्स’ बहुत ही बढ़िया काम कर रहा है.

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा की गई बाघों की गणना के अनुसार, वर्ष 2011 में मध्यप्रदेश में सिर्फ 257 बाघ थे, जबकि वर्ष 2014 में यह संख्या बढ़कर 308 हो गई और वर्तमान में प्रदेश में अनुमानित कुल 400 से अधिक बाघ एवं शावक हैं.

एनटीसीए से मिले आंकड़ों के अनुसार पिछले साल देश में कुल 100 बाघों की मौत हुई थी, जिनमें से 30 बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई थी. 

क्या कहते हैं वन्यजीव कार्यकर्ता?
वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने आरोप लगाया कि नौकरशाहों में बाघों का संरक्षण करने के लिए इच्छाशक्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक, महाराष्ट् एवं ओडिशा में भी बाघों की काफी संख्या है और इन तीनों राज्यों में बाघों को बचाने के लिए विशेष बाघ सुरक्षा बल (एसटीपीएफ) का गठन किया है, लेकिन मध्य प्रदेश में अब तक ऐसा नहीं किया गया है.

दुबे ने दावा किया कि इस साल 11 मार्च को कान्हा टाइगर रिजर्व में शिकारियों द्वारा लगाए गए फंदे में फंसने से एक बाघ की मौत हो गई, जबकि एक अन्य बाघ को बैतूल जिले के जंगल में 22 अप्रैल को शिकारियों ने मार दिया. उन्होंने कहा कि यह बताता है कि बाघों की टाइगर रिजर्व में वन अधिकारियों द्वारा कैसी निगरानी रखी जा रही है.

दुबे ने यह भी दावा किया कि पिछले साल भी पेंच टाइगर रिजर्व में 28 मार्च को तीन बाघ शावकों को शिकारियों ने जहर देकर मारा, जबकि एक बाघ की मौत कान्हा टाइगर रिजर्व में 22 अक्तूबर को करंट से हुई. बाघ मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में भी सुरक्षित नहीं हैं. ऐसा लगता है कि शिकारियों को खुली छूट दी गयी है.

वहीं, एक अन्य वन्यजीव कार्यकर्ता नवनीत माहेश्वरी ने कहा कि मध्य प्रदेश में बाघों की मौत लोगों द्वारा शिकार करने से भी हो रही है. उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा, बाघों की मौत क्षेत्राधिकार को लेकर आपसी लड़ाई में भी होती है, क्योंकि उनके लिए वन में उनके लिए ‘स्पेस’ बहुत ही कम है. एक बाघ के लिए 40 से 50 किलोमीटर की रेंज होनी चाहिए.’’ 

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