खूबसूरत किन्नर के हाथ में थी इस बादशाह के शासन की बागडोर, राजा खुद कहता था- 'फैसला वो करेंगे'
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खूबसूरत किन्नर के हाथ में थी इस बादशाह के शासन की बागडोर, राजा खुद कहता था- 'फैसला वो करेंगे'

मुगल बादशाहों की कई कहानियां वायरल हैं, उन्हीं में से एक आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसमें बताएंगे कि एक शहंशाह इतना कमजोर था कि उसको कोई भी अपनी बातों में उलझा लेता था. यहां तक कि एक किन्नर की सत्ता चलाता था. 

खूबसूरत किन्नर के हाथ में थी इस बादशाह के शासन की बागडोर, राजा खुद कहता था- 'फैसला वो करेंगे'

शहंशाहों की जिंदगी के किस्सों की भरमार है, वो चाहरे भारत हो या फिर किसी अन्य देश के हों. भारत में मुगलों के भी अनगिनत ऐसे किस्से हैं, जिनके बारे में जानकर आज की जनरेशन हैरान रह जाती है. आज हम आपको एक ऐसा ही किस्सा बताने जा रहे हैं. यह किस्सा है मुगल बादशाह अहमद शाह बहादुर का, जो अपने पिता मुहम्मद शाह रंगीला की 1748 में मौत होने के बाद महज 22 वर्ष की उम्र में तख्त पर बैठे.

वैसे तो मुहम्मद शाह रंगीला भी एक बेहद कमजोर बादशाह थे लेकिन उनका बेटा अहमद शाह बहादुर उनसे भी कमजोर था. उसकी कमजोरी की कई वजहें हैं. BBC की एक रिपोर्ट में एक किताब के हवाले से बताया गया कि मुहम्मद शाह रंगीला बेहद शक्की और कंजूस किस्म के थे. ऐसे में उन्होंने अपने बेटे को दिल्ली के महल में एक कोने तक ही सीमित रहने दिया था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वे हरम की महिलाओं, कम अहमियत मिलने के साथ-साथ अपने पिता की डांट-फटकार के बीच बड़े हुए.

मूर्ख निकला मुहम्मद शाह रंगीला का बेटा

इसके अलावा अहमद शाह बहादुर सीधे गद्दीनशीं हुआ था. इससे पहले उनकी तरबियत भी नहीं हुई थी. कहा जाता है कि ना तो उन्होंने पोलो, जानवरों की लड़ाई और शिकार जैसे राजकुमारों के खेल खेले और ना ही सुलतान बनने से पहले किसी फौज की कमान संभाली थी. कुछ इसी तरह की वजहों के चलते वो मंदबुद्धि, मृदुभाषी और मूर्ख निकले. उनका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं था, कोई और उन्हें जहां चाहे और जैसे चाहे अपनी बातों में उलझा सकता था.

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नृतकी थी राजा की मां

दूसरी तरफ अहमद शाह बहादुर की मां ने बेटे को गद्दी पर बैठतने को अपने लिए एक शानदार मौका पाया और धन इकट्ठा करने लगी. कहा जाता है कि अहमद शाह बहादुर की मां उधम बाई दरबार में नाचने वाली हुआ करती थी लेकिन जब उसकी मुलाकात मुहम्मद शाह रंगीला से करवाई गई तो वो उन्हें इतनी पसंद आईं कि उससे शादी ही कर ली. इसी लिए यह भी कहा जाता है कि वो महारानी तो बन गई लेकिन अपने तौर-तरीके नहीं बदले थे.

खुद को पद के लिए योग्य मानती थी अहमद शाह की मां

एक इतिहासकार के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया कि उधम बाई यह जानती थी कि अगर मुगल सल्तनत को चलाना है तो गद्दी को कमजोर बेटे अहमद श के भरोसे पर नहीं छोड़ा जा सकता. उसे लगता था कि सत्ता किसी और मजबूत हाथों में होनी चाहिए. हैरानी की बात यह है कि वो खुद को इस पद के लिए बेहतर मानती थी. क्योंकि वो अहमद शाह की मां थी तो उसके लिए ये कोई मुश्किल काम भी नहीं था.

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अहमद शाह की मां सुनाती थी फैसले

हालांकि शासन को चलाने की क्षमता उसके अंदर भी नहीं थी. हर दिन बड़े-बड़े सरकारी अफसर दरबार में हाजिर थे तो वो पर्दे के पीछे से (खासकर किन्नरों के जरिए) उनसे बात करती थी. कहा जाता है कि उन्हें चिट्ठियां पढ़कर सुनाई जाती थीं, जिन पर वो आखिरी फैसला लेती था और वो सभी को मानना होता था. यहां दिलचस्प बात यह है कि उधम बाई के जावेद खान से करीबी रिश्ते थे. जावेद खान एक जवान और खूबसूरत किन्नर था. जावेद का प्रभाव काफी जबरदस्त था. हालांकि हैरानी तब हुई कि जावेद ख़ान पुराने नियमों को तोड़ते हुए शाही महल में रातें बिताने लगा.

अहमद शाह की मां का करीबी था जावेद खान

मुहम्मद शाह के दौर में जावेद खान शाही महिलाओं के कर्मचारियों के उप-प्रबंधक और रानियों की जायदादों के व्यवस्थापक रह चुका था. कहा जाता है कि वह उधम बाई के पति की मौत से पहले ही उसके दिल-दिमाग और जिस्म पर अपने हुस्न का जादू चला चुका था.

जावेद खान सत्ता के नजदीक

जब उधम बाई का बेटा अहमद शाह गद्दी पर बैठा तो जावेद की ताकत बढ़ना भी स्वाभाविक था. ऐसे उसे 'छह हजारी' (सेना में छह हजार सिपाहियों का अफसर) बना दिया गया. लेकिन यह पद उसके अलावा कुछ और लोगों को भी दिया गया था, ताकि विरोध में आवाजें बलुंद ना हों. हालात यहां तक पहुंच गए थे कि जावेद खान ने अहमद शाह के हाथों से सत्ता अपने कब्जे में कर ली थी. 

शराब-शबाब में डूबा राजा

इसकी एक वजह यह भी थी कि अहमद शाह बुरी लतों का शिकार हो गया था. उसने शराब, भांग, चरस जैसे नशे करने शुरू कर दिए थे और शासन वे समाज से नजरें फैर ली थी. यहां तक कि वो सरेआम किसी भी मसले को लेकर कह देता था कि इसका फैसला जावेद खान करेंगे. खुद वह बिना किसी रोक-टोक के सिर्फ शारीरिक सुख में डूबा रहता. जावेद खान सिर्फ शराब और शबाब में डूबा रहता था.

ईमानदारों से करता था नफरत

जुलाई 1748 में एक वक्त ऐसा कि जावेद ख़ान को दीवान-ए-खास (दरबार का मुख्य प्रबंधक) बना दिया गया. अब अहमद शाह से कौन-कौन मिल सकता है ये फैसला जावेद खान के हाथों में था. कहा जाता है कि जावेद जानबूझकर ईमानदार सलाहकारों को बादशाह मिलने की अनुमति नहीं देता था, क्योंकि उसे शक था कि कहीं उसका असर-रसूख कम ना हो जाए.

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