रजा अकादमी ने WHO को लिखी चिट्ठी, पूछा कोरोना वैक्सीन हलाल या हराम?
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रजा अकादमी ने WHO को लिखी चिट्ठी, पूछा कोरोना वैक्सीन हलाल या हराम?

कोरोना वैक्सीन के हलाल-हराम होने की बहस के बीच मुंबई की रजा अकादमी ने WHO को  चिट्ठी लिख इस सवाल का जवाब मांगा है. अकादमी का कहना है कि जब तक हमारे मुफ्ती दवा की जांच न कर लें, तब तक मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे न आएं.

फाइल फोटो.

मुंबई: कोरोना वैक्सीन के हलाल (Halal) या हराम (Haram) होने पर शुरू हुई जंग को आगे बढ़ाते हुए अब मुंबई की रजा अकादमी (Raza Academy) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को चिट्ठी लिखी है. इसमें WHO से वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल सामग्री (Ingredients) के बारे में जानकारी मांगी गई है. 

दरअसल, अकादमी के मौलाना सईद नूरी इस चिट्ठी के जरिए ये चेक करना चाहते हैं कि वैक्सीन (Corona Vaccine) बनाने में कहीं गाय या सुअर की चर्बी का इस्तेमाल तो नहीं हुआ? अगर ऐसा है तो कोई भी मुसलमान वैक्सीन की  डोज नहीं लगवाएगा. इस संबंध में पहले मौलाना ने एक फतवा भी जारी किया था. इसमें कहा गया था कि उनकी मंजूरी के बाद ही मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे आएं. 

मौलाना-मुफ्तियों में वैक्सीन को लेकर असमंजस 

दुनियाभर के मौलाना-मुफ्तियों में इस बात को लेकर असमंजसता है कि क्या यह दवा हलाल (Halal) विधि से बनी है या हराम (Haram) तरीके से. यदि यह दवा सुअर के मांस से बनी है तो क्या कुरान के तहत इसे लगवाना जायज होगा या नहीं? इस बहस पर इस्लामिक स्कॉलर अतीकुर्रहमान रहमान का कहना है कि, 'अल्ला ताला ने जान बचाने के लिए हराम की चीजों के इस्तेमाल की इजाजत दी है. इनका मानना है, 'मुस्लिम धर्म गुरुओं का काम समाज को जागृत करना है. इसलिए इस काम में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए.'

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'वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से देखना गलत'

वहीं लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली (Maulana Khalid Rashid Firangi Mahali ) ने अपने समुदाय के लोगों से किसी अफवाह में आने के बजाए आराम से वैक्सीन (Corona Vaccine) लगवाने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि जान की हिफाजत सबसे बड़ी चीज है इसलिए सभी सामान्य तरीके से वैक्सीन लगवाएं. वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से देखना गलत है. 

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UAE फतवा काउंसिल ने वैक्सीन को बताया जायज

इसी क्रम में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के शीर्ष इस्लामी निकाय 'यूएई फतवा काउंसिल' ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क (सुअर के मांस) के जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिए जायज करार दिया है. काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता 'मनुष्य का जीवन बचाना है.

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टीकों के निर्माण में पोर्क जिलेटिन का प्रयोग होता है

काउंसिल ने कहा कि इस मामले में पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है, न कि भोजन के तौर पर. ऐसे में मुसलमान कोरोना वैक्सीन को आराम से लगवा सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक टीकों में सामान्य तौर पर पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है और इसी वजह से कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) को लेकर भी उन मुस्लिमों की चिंता बढ़ गई है जो इस्लामी कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को 'हराम' मानते हैं. 

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