Nagpur Violence: महाराष्ट्र से उठा औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. नागपुर में हुई हिंसा ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया. औरंगजेब की मौत अहमदनगर में हुई थी लेकिन उसे खुल्दाबाद में दफनाया गया. इसके पीछे की क्या वजह है जानते हैं.
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Aurangzeb Grave controversy: महाराष्ट्र से उठा औरंगजेब का विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. पूरे देश में औरंगजेब को लेकर माहौल गरम है. औरंगजेब को लेकर नागपुर में हिंसा ने पूरे प्रदेश को शर्मसार कर दिया. हिंसा के बाद कई हिस्सो में कर्फ्यू लगा दिया गया गया है. हिंसा की चिंगारी भड़की औरंगजेब के कब्र को गिराने की मांग पर. इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल भाजपा पर निशाना साध रहे हैं. मुगल शासकों का केंद्र दिल्ली होता था. इसके बावजूद औरंगजेब को दिल्ली और नागपुर से दूर एक अनजान जगह पर क्यों दफनाया गया? इसके पीछे की क्या वजह है जानते हैं.
कैसे छिड़ा औरंगजेब को लेकर संग्राम
औरंगजेब 17वीं सदी का मुगल बादशाह भारत के इतिहास का सबसे विवादित शासक था. उसे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा साम्राज्य विरासत में मिला था और उसने अपने जीवनकाल में इसका सबसे अधिक विस्तार किया. रिपोर्ट के मुताबिक औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर में हुई थी, जिसका नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया गया है और ऐतिहासिक और धार्मिक कारण हैं कि उसकी कब्र औरंगाबाद जिले के एक दीवार वाले शहर खुल्दाबाद में है.
औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर जिला कर दिया गया है, जो मराठा राजा शिवाजी के पुत्र संभाजी थे, जिन्होंने औरंगजेब से युद्ध किया था और उन्हें पकड़ लिया गया था और उन्हें यातनाएं देकर मार दिया गया था. हाल में ही संभाजी पर बनी विक्की कौशल की फिल्म छावा रिलीज हुई थी. जिसके बाद एक बार फिर औरंगजेब को लेकर विवाद छिड़ गया.
इसके बाद सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को लेकर विवादित बयान दिया. जिसके बाद लोग आमने- सामने आ गए. लगातार बहस नागपुर में हिंसा में तब्दील हो गई और जमकर झड़प हुई. इसके बाद सूबे के मुखिया ने कहा कि छावा फिल्म ने औरंगजेब के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का दिया है, फिर भी सभी को महाराष्ट्र को शांतिपूर्ण बनाए रखना चाहिए. उन्होंने नागपुर हिंसा को लेकर कहा कि हिंसा पूर्व नियोजित लगती है.
गैर इस्लामी शासक
औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां के जीवित रहते ही उनसे गद्दी छीन ली थी, इसे गैर-इस्लामी माना जाता था. औरंगजेब ने इस्लामी शासक के रूप में शासन करने की वैधता प्राप्त करने के लिए मक्का की शरीफ़ की तलाश जारी रखी. बादशाह को आलीशान वस्तुओं का उपयोग भी पसंद नहीं था और वह साधारण कपड़े पहनना पसंद करता था. उसने अपने साम्राज्य में शराब, अफीम, वेश्यावृत्ति और जुए पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.
हालांकि जीवन के अंतिम क्षणों में उसने अपना कुछ समय इस्लामी प्रार्थना टोपियां बुनने में बिताया, जिसे तकियाह भी कहा जाता है और हाथ से कुरान की नकल करता था. ऐसा इसलिए क्योंकि वह शाही खजाने से अपने मासिक खर्चों के लिए पैसे नहीं लेना चाहता था. यह भी कहा जाता है कि औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में टोपियाँ बुनकर 12 रुपये और 14 आने में अपने अंतिम विश्राम स्थल का खर्च उठाया था, जैसा कि 'औरंगजेब का मकबरा' नामक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रिकॉर्ड में बताया गया है.
दक्षिण की ओर कूच
औरंगजेब ने दिल्ली के राजसी वैभव को पीछे छोड़ दिया और 1680 के दशक की शुरुआत में दक्षिण की ओर कूच कर गया. वह अपने पूर्ववर्ती द्वारा केवल सहायक इकाइयां बनाने में सक्षम रहे क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की महत्वाकांक्षा के साथ दक्कन के लिए रवाना हुआ.
27 साल लंबा दक्कन अभियान उसके साम्राज्य के लिए "नासूर" बन गया, जिससे साम्राज्य के संसाधन समाप्त हो गए और कुलीनों में भारी असंतोष पैदा हो गया, जिन्हें दिल्ली से दूर रहना पड़ा.
औरंगजेब का दक्कन से जुड़ाव अभियान से बहुत पहले शुरू हुआ था, जब वह अपने पिता के शासन के दौरान इस क्षेत्र का मुगल गवर्नर था. उसके दक्कन अभियान में शुरुआती जीत के साथ-साथ दक्षिणी राज्यों और मराठों के साथ लगातार युद्ध हुए और मुगल बादशाह दक्षिण में ही रहा. अपने अंतिम दिनों में भी वह उस हिस्से में था जो अब महाराष्ट्र है.
खुल्दाबाद में क्यों दफनाया गया औरंगजेब?
रिपोर्ट के मुताबिक उसे जैनुद्दीन शिराजी की चिश्ती सूफी दरगाह के भीतर स्थित एक कब्र में दफनाया गया था. हालांकि एक इतिहासकार ने कहा था कि पापों में डूबे इस पापी को श्रद्धेय नेता सैयद और शेख जैनुद्दीन हुसैन शिराज़ी की पवित्र चिश्ती कब्र के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि उस दरबार (संतों के) की सुरक्षा के बिना, जो क्षमा का आश्रय है, पाप के सागर में डूबे लोगों के लिए कोई शरण नहीं है. औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर में हुई थी लेकिन उसे खुल्दाबाद में दफनाया गया है जो वहां से 130 किमी दूर है. बताया जाता है कि जीवन के अंतिम दिनों में वह एक साधारण कब्र की कामना करता था.
मुगल बादशाह ने कहा था कि अमीर लोग अपनी कब्रों पर सोने और चांदी के गुंबद बना सकते हैं. मेरे जैसे गरीब लोगों के लिए, आसमान ही काफी है (मेरी कब्र को ढकने के लिए एक गुंबद). इस क्षेत्र का नाम रौजा था क्योंकि यहां कई सूफी संतों की दरगाह थी. बाद में इसे खुल्दाबाद के नाम से जाना जाने लगा, इसका कारण यह है कि औरंगजेब को मरणोपरांत खुल्द-मकानी की उपाधि दी गई थी, जिसका अर्थ है स्वर्ग का निवासी. रिपोर्ट के मुताबिक यह मकबरा शुरू में बहुत ही साधारण था. इसे हैदराबाद के निज़ाम ने बनवाया था, उसके बाद बीसवीं सदी में लॉर्ड कर्जन ने इसमें संगमरमर का इस्तेमाल किया था. चिश्ती सूफी दरगाह ज़ैनुद्दीन शिराज़ी के भीतर एक कब्र में दफ़न होने की उनकी इच्छा के कारण ही औरंगज़ेब का मकबरा खुल्दाबाद में है.