गुमनामी बाबा थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस? मौत की गुत्थी पर आज भी रहस्य बरकरार
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गुमनामी बाबा थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस? मौत की गुत्थी पर आज भी रहस्य बरकरार

साल 1934 में जब ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को भारत से निर्वासित किया तो वह यूरोप चले गए थे. यूरोप में भी भारत को आजाद करवाने का उनका सपना टूटा नहीं. 

सुभाष चंद्र बोस के भाषणों को सुनकर युवा वर्ग देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए निकल पड़े.

नई दिल्लीः भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 122वीं जयंती है. 23 जनवरी 1897 को कटक (वर्तमान में ओडिशा) में एक बंगाली परिवार में हुआ था. बता दें कि आजादी से पहले कटक बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था. जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के 14 बच्चों में से 9वीं संतान सुभाषचंद्र बोस थे. नेताजी के पिता का नाम कटक शहर के प्रख्यात वकील में शुमार हुआ करता था.

'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा'
साल 1934 में जब ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को भारत से निर्वासित किया तो वह यूरोप चले गए थे. यूरोप में भी भारत को आजाद करवाने का उनका सपना टूटा नहीं. यूरोप में रहकर नेताजी अपने साथियों और दोस्तों को खत लिखते रहे. वह हर खत में 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का जिक्र अवश्य किया करते थे. 21 अक्टूबर 1943 को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फ़ौज' का गठन किया. नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे. यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' दिया.

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प्रधानमंत्री मोदी ने दी श्रद्धाजंलि
आज (23 जनवरी) को उनकी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने लिखा- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वीरता हर भारतीय को गौरान्वित करती है. उनकी जयंती के मौके पर आज हम उन्हें नमन करते हैं. मोदी ने जिस वीडियो को शेयर किया है उसमें नेताजी के भाषण शामिल हैं. बता दें कि नेताजी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी. इसमें शामिल नौजवान देश की आजादी के लिए मर-मिटने को तैयार थे.

 

 

इस जगह को बनाया अपनी कर्मभूमि
इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलेगा कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया तो सारी दुनिया अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ की ताकत के सामने झुकने पर मजबूर हो गई थी, लेकिन तब भी एक व्यक्ति था जिसने अंग्रेजों के सामने झुकने से इनकार कर दिया और डट कर खड़ा रहा. उस व्यक्ति का नाम था सुभाष चंद्र बोस. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की शुरुआत की और बर्मा का अपना मिलिट्री बेस बनाया. बोस ने म्यांमार को अपनी कर्मभूमि बनाया था. 

एक साल तक संभाला कांग्रेस के पदभार
आजादी के ललक ने उन्हें लोगों के दिलों में एक नायक बना दिया था. उनके भाषणों को सुनकर युवा वर्ग देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए निकल पड़े. सुभाष बाबू एक युवा नेता थे. साल 1938-39 तक उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला था. सुभाष बाबू की विचारधारा कांग्रेस पार्टी से अलग थी, इसी कारण नेताजी बाद में वे कांग्रेस से अलग हो गए. 

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