नई दिल्ली: कोरोना (Coronavirus) संक्रमण के बढ़ते मामलों ने फिर से खौफ पैदा कर दिया है. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जहां एक दिन में डेढ़ लाख से अधिक नए केस मिले हैं. इस बीच, सामने आई एक अध्ययन रिपोर्ट (Research Report) ने चिंता और भी बढ़ा दी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 20 से 30 फीसदी लोगों ने कोरोना के खिलाफ 6 महीने में प्राकृतिक इम्‍युनिटी (Immunity) गंवा दी है और इससे दोबारा संक्रमण का खतरा उत्पन्न हो गया है.


Virus खत्म करने की प्रक्रिया प्रभावित


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इंस्‍टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्‍स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) की एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ प्राकृतिक इम्‍युनिटी कुछ समय तक बनी रहती है, लेकिन कुल संक्रमितों में से 20 से 30 फीसदी लोगों ने 6 महीने के बाद इस प्राकृतिक इम्‍युनिटी को गंवा दिया है. इससे उनके दोबारा कोरोना पॉजिटिव होने का खतरा बढ़ गया है. हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के अनुसार, IGIB डायरेक्‍टर डॉ. अनुराग अग्रवाल (Dr Anurag Agarwal) ने कहा है कि स्टडी में यह पाया गया है कि सीरोपॉजिटिव (Seropositive) होने के बाद भी 20 से 30 फीसदी लोगों के शरीर में वायरस को खत्म करने की प्रक्रिया कम होने लगी है.



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Study से इस तरह होगा फायदा


रिपोर्ट के मुताबिक, 6 महीने का यह अध्‍ययन इस बात का पता लगाने में सहायक होगा कि आखिर क्‍यों मुंबई जैसे शहरों में हाई सीरोपॉजिटिविटी होने की वजह से भी संक्रमण से राहत नहीं मिल रही है. इसके अलावा, शोध से यह भी पता लगाया जा सकेगा कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर कब तक रहेगी. शोध में वैक्‍सीन के महत्‍व को भी रेखांकित किया गया है. मौजूदा वक्त में अधिकतर वैक्‍सीन, संक्रमण से लड़ने और मौत से बचाने में अहम मानी जा रही हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि शोध जारी है और आने वाले दिनों में कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी सामने आ सकती है.


Participants पर लगातार रखी नजर 


शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध के निष्कर्ष से यह पता चलेगा कि आखिर दिल्ली और महाराष्ट्र में एंटीबॉडीज या सीरोपॉजिटिविटी के हाई होने के बाद भी कोरोना के मामले तेज गति से क्यों बढ़ रहे हैं? बता दें कि शनिवार को दिल्ली में 7897 नए केस और मुंबई में 9327 केस सामने आए थे. IGIB के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शांतनु सेनगुप्ता ने बताया कि पिछले साल सितंबर में जब हमने CSIR (काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) की प्रयोगशालाओं में सीरो-सर्वेक्षण किया, तो 10% से अधिक प्रतिभागियों में ही वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पाए गए थे. इनमें से कुछ प्रतिभागियों को हमने फॉलो अप किया, फिर तीन, पांच और छह महीनों में उनके एंटीबॉडी लेवल की जांच की. 


गायब मिली Neutralizing Activity


डॉक्टर सेनगुप्ता ने आगे कहा, ‘पांच से छह महीनों में लगभग 20% प्रतिभागियों में एंटीबॉडी होने के बावजूद न्यूट्रलाइजेशन एक्टिविटी गतिविधि नदारद मिली. न्यूट्रलाइजेशन एंटीबॉडी की क्षमता है, जिसकी मदद से वह वायरस को खत्म कर सकता या है सेल में दाखिल होने से पूरी तरह रोक सकता है’. प्राकृतिक इम्‍युनिटी गंवाने का अर्थ है कि ऐसे लोग पुन: कोरोना वायरस की चपेट में आ सकते हैं. जो निश्चित तौर पर उनके और दूसरे लोगों के लिए गंभीर खतरा है,