अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी को दावा है कि उन्होंने एक ऐसा टूल विकसित किया है जो भारतीय के ग्रीष्म ऋतु में आने वाले मानसून के आने और जाने के समय का ‘तटस्थ रूप से निर्धारण’ यानि बेहतर पूर्वानुमान लगा सकता है
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नई दिल्ली : भारतीय अर्थव्यवस्था की मानसून पर निर्भरता किसी से छुपी नहीं है. यहां तक कि मानसून का मिजाज़ भारत की राजनीति तक को प्रभावित कर देता है. जाहिर है मानसून के सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता हमेशा से ही महसूस की जाती है और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के पूर्वानुमानों की हमेशा से परीक्षा होती रहती है. ज्यादातर मौसम विभाग को पूर्वानुमान गलत साबित होने के आरोपों का सामना करना पड़ता है. देश के लोगों को हमेशा से मानसून के आने और खत्म होने की तारीखों को लेकर स्पष्ट और ठोस जानकारी मानदंड की कमी लंबे समय से खलती रही है और उनकी दिलचस्पी हमेशा से ही ऐसे सिस्टम में रही है जो बेहतर तरीके से मानसून का पूर्वानुमान लगा सके. ऐसे में अमेरिका से आई एक खबर सुकून देने वाली हो सकती है जहां के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा टूल बनाने का दावा किया है जो भारतीय मौसम विभाग से ज्यादा बेहतर तरीके से मानसून के आगमन और विदाई की जानकारी दे सकता है.
भारत के स्थानीय आंकड़ों पर आधारित है यह पद्धति
अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी का दावा है कि उन्होंने एक ऐसा टूल विकसित किया है जो भारत में मानसून के आने और जाने के समय का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकता है. यह नई पद्धति, क्लाइमेट डायनामिक्स जर्नल में प्रकाशित हुई है, जो कि किसी स्थान के पूरे प्रभावित क्षेत्र में पूरे मानसून के दौरान हुई वर्षा को चिह्नित करती है. अर्थ, ओशीन एवं एट्मास्फियरिक साइंस के असोसिएट प्रोफेसर और प्रमुख अनुसंधानकर्ता वासु मिश्रा का कहना है, “अभी के मौसम पूर्वानुमान और निगरानी प्रोटोकॉल मानसून के आने और जाने के एक ही जगह के समय पर ध्यान केंद्रित करते हैं वह भी देश के दक्षिण पश्चिम कोने के केरल राज्य पर और उसी आधार पर अन्य जगहों का एक्सट्रापोलेशन करते हैं. जबकि अनेक विशिष्ट जगहों को लेकर हमने पूरे देश को शामिल किया है और किसी भी वर्ष में मानसून के आने और जाने की तारीखों का ‘तटस्थ रूप से निर्धारण’ किया है.”इस पद्धति से, जो प्रश्न मौसम वैज्ञानिकों को दशकों से परेशान कर रहा था, उसका सरल और लागू करने योग्य जवाब मिल गया है. “आपको जटिल परिभाषाओं की जरूरत नहीं पड़ेगी.” मिश्रा ने कहा, “अब हमने वर्षा की परिभाषा को आधार दे दिया है और यह असफल नहीं हुई है.”
जनता की निराशा कम किया जा सकता है
गौरतलब है कि देश के कुछ हिस्सों में मानसून की बारिश देशभर के कुल वर्षा के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा होती है और मानसून के आगमन का गलत पूर्वानुमान देश की राजनैतिक और कृषि जीवन को अस्थिर कर देती है. “इससे आम जनता और मानसून का इंतजार करते लोगों में भारी निराशा और भ्रम पैदा हो जाता है, क्योंकि कोई भी कभी इतने विस्तार में नहीं गया.” मिश्रा ने कहा. शोधकर्ताओं के मुताबिक यह नया सिस्टम जो मानसून के आगमन को स्थान विशेष के वर्षा के आंकड़ों से जोड़ता है, लोगों के इस असंतोष को कम कर सकता है. मिश्रा ने कहा आगे कहा कि हमने 105 साल के डेटा के आधार पर इसे बनाया है और यह भारत के किसी भी स्थान के लिए एक बार भी गलत नहीं हुआ है.
(इनपुट आईएएनएस)