रिजर्व बैंक ने नहीं घटाई नीतिगत ब्याज दर, एसएलआर में कटौती की
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रिजर्व बैंक ने नहीं घटाई नीतिगत ब्याज दर, एसएलआर में कटौती की

रिजर्व बैंक ने नहीं घटाई नीतिगत ब्याज दर, एसएलआर में कटौती की   (फोटोः एएनआई)

मुंबईः रिजर्व बैंक ने राज्यों के कृषि ऋण माफी के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने के जोखिम का हवाला देते हुए प्रमुख नीतिगत दरों में आज कोई बदलाव नहीं किया. हालांकि उसने बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ाने को लेकर सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में 0.5 प्रतिशत की कटौती की ताकि आर्थिक वृद्धि को गति दी जा सके. एसएलआर बैंकों के पास जमा लोगों की जमा राशि की वह न्यूनतम सीमा है जिसे उन्हें सरकारी आसानी से खरीदी बेची जा सकने वाली सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में रखना होता है.

सरकार निजी निवेश बढाने के लिये नीतिगत दर में कटौती पर जोर दे रही थी और मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों के साथ बैठक की बात कही थी लेकिन रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि एमपीसी के सभी सदस्यों ने बैठक से इनकार कर दिया. वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की एमपीसी के सदस्यों के साथ एक और दो जून को बैठक होनी थी लेकिन सभी छह सदस्यों ने बैठक के खिलाफ फैसला किया. पटेल की अध्यक्षता वाली एमपीसी ने लगातार चौथी बार रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.25 प्रतिशत पर कायम रखा.

वहीं रिवर्स रेपो को 6 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है. रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक बैंकों को अल्पावधि कर्ज देता जबकि रिवर्स रेपो के अंतर्गत आरबीआई बैंकों से अतिरिक्त नकदी लेता है. रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, ‘‘एमपीसी का निर्णय मौद्रिक नीति के तटस्थ रूख के अनुरूप है. साथ ही यह कदम वृद्धि को समर्थन देने तथा मध्यम अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :सीपीआई: आधारित मुद्रास्फीति के 2 प्रतिशत घट-बढ़ की गुंजाइश के साथ 4 प्रतिशत के स्तर पर सीमित रखने के लक्ष्य के मुताबिक है.’’ इसमें कहा गया है कि समिति के पांच सदस्य नीतिगत दर को मौजूदा स्तर कायम रखने के पक्ष में मद दिया जबकि जबकि रवीन्द्र एच ढोलकिया का मत अलग था.

केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा में सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) 0.5 प्रतिशत घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया. इस कदम से बैंकों के पास कर्ज देने के लिये अधिक नकदी बचेगी और इससे ऋण बाजार में तेजी आने की उम्मीद है.

मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा गया है, ‘‘अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति निजी निवेश को पटरी पर लाने, बैंकिंग क्षेत्र की बेहतर स्थिति को बहाल करने तथा बुनियादी ढांचा क्षेत्र की बाधाओं को दूर करने की जरूरत को रेखांकित करती है. मौद्रिक नीति तभी प्रभावी भूमिका निभा सकती है जब ये चीजें दुरूस्त हों.’’ केंद्रीय बैंक ने हालांकि, कृषि ऋण माफी के कारण राजकोषीय स्थिति में गिरावट आने की आशंका को लेकर चिंता जतायी. इसमें कहा गया है, ‘‘बड़े पैमाने पर कृषि ऋण माफी की घोषणाओं से राजकोषीय स्थिति बिगड़ने और फलस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम बढ़ा है.’’ केंद्रीय बैंक ने कहा कि वैश्विक राजनीतिक और वित्तीय जोखिम से आयातित मुद्रास्फीति पैदा हुई है और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार भत्ते दिये जाने से इसके उपर जाने का जोखिम बना हुआ है.

साथ ही रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक वृद्धि के अनुमान को भी 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया. विश्लेषक यह उम्मीद जता रहे थे कि केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों को बरकरार रख सकता है लेकिन अपनी आक्रमक रूख में नरमी लाने के साथ विभिन्न पहलुओं और मुद्रास्फीति नरमी के बारे में स्पष्टता दे सकता है. खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल 2017 में घटकर 3 प्रतिशत पर आ गयी जबकि नोटबंदी के प्रभावों के बीच जीडीपी वृद्धि दर पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में घट कर 6.1 प्रतिशत रही.

इस साल बारिश को लेकर भी स्पष्टता है. मौसम विभाग ने इस साल मानसून सामान्य रहने की भविष्यवाणी की जिससे खाद्य मुद्रास्फीति की स्थिति में मदद मिल सकती है. रिजर्व बैंक ने यह भी कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का कुल मिलाकर मुद्रास्फीति पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है. सरकार की एक जुलाई से जीएसटी लागू करने की योजना है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद सेंसेक्स में कुछ समय के लिये गिरावट आयी लेकिन अंत में यह 80.72 अंक की बढ़त के साथ 31,271.28 अंक पर बंद हुआ.

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