खत्म होता 'लाल दुर्ग', राज्यसभा के 60 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ
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खत्म होता 'लाल दुर्ग', राज्यसभा के 60 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ

पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टियों का बुरा हाल केवल विधानसभा में ही नहीं बल्कि राज्यसभा में भी होने जा रहा है. राज्यसभा के 60 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब बंगाल की लेफ्ट पार्टी से राज्यसभा चुनाव में एक भी उम्मीदवार नहीं है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल से मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा उम्मीदवार विकास रंजन भट्टाचार्य का नामांकन सोमवार को खारिज कर दिया जिससे तृणमूल कांग्रेस के पांच और कांग्रेस के एक उम्मीदवार के निर्विरोध निर्वाचित होने का रास्ता साफ हो गया है. इस वजह से इस बार पश्चिम बंगाल का कोई लेफ्ट उम्मीदवार राज्य सभा में नहीं जा सकेगा.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टियों का बुरा हाल केवल विधानसभा में ही नहीं बल्कि राज्यसभा में भी होने जा रहा है. राज्यसभा के 60 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब बंगाल की लेफ्ट पार्टी से राज्यसभा चुनाव में एक भी उम्मीदवार नहीं है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल से मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा उम्मीदवार विकास रंजन भट्टाचार्य का नामांकन सोमवार को खारिज कर दिया जिससे तृणमूल कांग्रेस के पांच और कांग्रेस के एक उम्मीदवार के निर्विरोध निर्वाचित होने का रास्ता साफ हो गया है. इस वजह से इस बार पश्चिम बंगाल का कोई लेफ्ट उम्मीदवार राज्य सभा में नहीं जा सकेगा.

चुनाव आयोग ने कहा कि अधूरे कागजातों की वजह से भट्टाचार्य का नामांकन खारिज किया गया है. उन्होंने 28 जुलाई की शाम 3 बजे की डेडलाइन खत्म होने के बाद डॉक्युमेंट जमा किए. साथ ही अपने नामांकन पत्र के साथ जरूरी हलफनामा भी नहीं जमा किया.

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस ने डेरेक ओब्रायन, सुखेंदु शेखर रॉय, डोला सेन, मानस भूनिया और सांता छेत्री को नामित किया है. वहीं प्रदीप भट्टाचार्य कांग्रेस के एकमात्र उम्मीदवार हैं. ममता बनर्जी की पार्टी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को अपना समर्थन भी दिया है. 

माकपा नेता सुजान चक्रवर्ती ने तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि नामांकन खारिज होने के पीछे षडयंत्र है. उन्होंने कहा, 'हम इसके लिए कानूनी सलाह लेंगे.' उन्होंने यह भी कहा, “यह निर्णय पहले ही ले लिया गया था कि इसे रद्द किया जाएगा. तृणमूल विकास भट्टाचार्य की उम्मीदवारी से परेशान था. फैसला लेने में 48 घंटे लग गए, जिससे यह साबित होता है कि हमारे तर्को में सच्चाई है.” बता दें कि माकपा की केंद्रीय समिति ने पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी को तीसरी बार राज्य सभा ना भेजने का फैसला लिया था.

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