उच्च न्यायालयों में हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में कामकाज करने के बारे में सरकार के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं
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उच्च न्यायालयों में हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में कामकाज करने के बारे में सरकार के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं

राजभाषा विभाग वेबसाइट ग्रैब

नई दिल्लीः सरकार ने बताया कि देश के उच्च न्यायालयों में हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा में कामकाज किये जाने के बारे में फिलहाल उसके पास कोई प्रस्ताव नहीं है. सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘‘ वर्तमान में देश के चार राज्यों बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालयों में हिन्दी के वैकल्पिक प्रयोग की अनुमति है . ’’ गृह मंत्रालय ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार राज्यों के उच्च न्यायालयों में हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा के वैकल्पिक प्रयोग की अनुमति के लिये इस अनुच्छेद में किया गया उपबंध पर्याप्त है . इस संबंध में उल्लेखनीय है कि 1965 के कैबिनेट निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति के अनुमोदन के पहले उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श लिया जाता है .

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, विगत में पश्चिम बंगाल, मद्रास, कर्नाटक, गुजरात एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालयों में क्रमश: बंगाली, तमिल, कन्नड़, गुजराती और हिन्दी के प्रयोग के बारे में प्रस्ताव प्राप्त हुए है जिसे उच्चतम न्यायालय की पूर्ण न्यायपीठ द्वारा 16 दिसंबर 2015 को पुन: विचार कर अस्वीकृत कर दिया गया था .

गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने बताया कि इससे पहले भी 7 मई 1997, 15 दिसंबर 1999 और 11 अक्तूबर 2012 के पत्र द्वारा इसे अस्वीकृत कर दिया गया था .

मुरादाबाद स्थित आरटीआई कार्यकर्ता सलीम बेग ने प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय से पूछा था कि क्या साल 1950 से मई 2017 तक की समय अवधि के दौरान देश के सभी न्यायालयों में हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा में काम किये जाने के बारे में कोई सिफारिश की गई है . यदि इस संबंध में केंद्र स्तर पर कोई विचार चल रहा हो, तो उसके बारे में जानकारी प्रदान करें .

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