केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत तीसरी भाषा बनी रहेगी, वर्तमान सत्र में कोई परीक्षा नहीं होगी
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केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत तीसरी भाषा बनी रहेगी, वर्तमान सत्र में कोई परीक्षा नहीं होगी

केन्द्र सरकार केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन भाषा के स्थान पर तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत लागू करने के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय में अडिग रही लेकिन उसने यह स्वीकार कर लिया कि वर्तमान सत्र में इस विषय के लिये कोई परीक्षा नहीं होगी। सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि केन्द्रीय विद्यालय के छात्र वर्तमान शैक्षणिक सत्र में जर्मन भाषा की पढ़ाई जारी रख सकते हैं और साथ ही इस साल छात्रों को संस्कृत की परीक्षा नहीं देनी होगी।

नई दिल्ली : केन्द्र सरकार केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन भाषा के स्थान पर तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत लागू करने के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय में अडिग रही लेकिन उसने यह स्वीकार कर लिया कि वर्तमान सत्र में इस विषय के लिये कोई परीक्षा नहीं होगी। सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि केन्द्रीय विद्यालय के छात्र वर्तमान शैक्षणिक सत्र में जर्मन भाषा की पढ़ाई जारी रख सकते हैं और साथ ही इस साल छात्रों को संस्कृत की परीक्षा नहीं देनी होगी।

न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि केन्द्र सरकार ने तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत के प्रश्न पत्र के लिये कोई परीक्षा नहीं लेने का निर्णय किया है और केन्द्रीय विद्यालयों के छात्र वर्तमान सत्र में अतिरिक्त विषय के रूप में जर्मन भाषा की भी पढाई जारी रख सकते हैं। केन्द्र सरकार का वर्तमान सत्र के बीच में ही संस्कृत लागू किये जाने के कारण इसकी परीक्षा नहीं लेने का फैसला शीर्ष अदालत की इस चिंता के बाद आया कि सत्र के बीच में ही छात्रों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और सरकार के फैसले से उन्हें परेशानी उठानी पड़ेगी।

इसका ‘समाधान खोजने के बारे’ में कहे जाने पर रोहतगी ने कहा कि ‘उच्चतर स्तर ’ पर निर्णय लिया गया है और इसके अनुसार छात्रों को संस्कृत की परीक्षा नहीं देनी होगी। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव का एक पत्र भी न्यायालय में पेश किया।

इस पत्र में कहा गया है कि न्यायालय की चिंता के मद्देनजर और छात्रों को अतिरिक्त दबाव से मुक्त रखने के लिये इस सत्र में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन के स्थान पर संस्कृत या आधुनिक भारत की कोई अन्य भाषा पढने वाले छात्रों को कोई परीक्षा नहीं देनी होगी।

रोहतगी ने कहा कि इस बीच, तीसरी भाषा के रूप में जर्मन की पढ़ाई करने वाले छात्र वर्तमान सत्र के दौरान वैकल्पिक विषय के रूप में विदेशी भाषा का अध्ययन जारी रख सकते हैं। न्यायालय ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुये कहा कि इससे छात्रों पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा क्योंकि इसके लिये कोई परीक्षा नहीं होगी।

न्यायमूर्ति दवे ने कहा, ‘यह अच्छा समाधान है। पिता होने के नाते मैं भी इससे सहमत हूं।’ लेकिन न्यायालय ने इस संबंध में कोई औपचारिक आदेश पारित नहीं किया क्योंकि केन्द्रीय विद्यालय के कुछ छात्रों के माता पिता के समूह की वकील रीना सिंह ने केन्द्र सरकार के सुझाव का प्रतिवाद करने और अपने मुवक्किल से परामर्श के लिये कुछ समय देने का अनुरोध किया।

न्यायालय ने इस पर मामले की सुनवाई आठ दिसंबर के लिये स्थगित करते हुये कहा कि संस्कृत भाषा लागू करना छात्रों के लिये अच्छा है। शीर्ष अदालत ने रोहतगी से कहा था कि वह संस्कृत भाषा को अगले शैक्षणिक सत्र से लागू करने कि बारे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से परामर्श कर लें। इसके बाद ही केन्द्र सरकार ने आज यह विकल्प पेश किया।

न्यायालय ने कहा था, ‘छात्रों और उनके माता पिता के नजरिये से सोचिये। इस शैक्षणिक सत्र में इसे जारी रहने दीजिये और बेहतर होगा आप अगले सत्र में इस पर अमल करें। न्यायालय केन्द्रीय विद्यालयों के छात्रों के माता पिता के समूह की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इन याचिकाओं में शैक्षणिक सत्र के बीच में ही जर्मन भाषा के स्थान पर संस्कृत लागू करने के निर्णय को चुनौती दी गयी है।

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता वाले केन्द्रीय विद्यालय संगठन के संचालन मंडल ने 27 अक्तूबर को अपनी बैठक में संस्कृत भाषा के विकल्प के रूप में जर्मन भाषा पढाना खत्म करने का निर्णय किया था। जर्मन भाषा छात्रों के लिये अतिरिक्त विषय के रूप में रखी गयी है।

इस फैसले से करीब 500 केन्द्रीय विद्यालयों के छठी से आठवीं कक्षा तक के करीब 75 हजार छात्रों को जर्मन भाषा की बजाय संस्कृत पढ़ने के लिये कहा जायेगा।

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