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नई दिल्ली: जापान में एक कहावत है कि हम अपनी जीत से बहुत कम और अपनी हार से बहुत ज्यादा सीख सकते हैं. कल टेनिस की दुनिया में एक 18 साल की नई खिलाड़ी ने बहुत बड़ा खिताब जीत लिया जबकि एक ऐसा खिलाड़ी हार गया जो फाइनल मुकाबला जीतकर इतिहास रचने से सिर्फ एक कदम दूर था. दोनों को ही अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा.
आपमें से बहुत सारे लोगों को ये खेल की खबर लगेगी. ये खबर खेल के मैदान से आई जरूर है, लेकिन इसमें जीवन का एक बहुत बड़ा फलसफा छिपा हुआ है और वो फलसफा ये है कि इंसान की, और पाने की चाहत कहां पर रुक जानी चाहिए?
आज हम आपको 34 साल के मशहूर टेनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच की कहानी बताएंगे, जो किसी भी कीमत पर दुनिया के महानतम खिलाड़ी बन जाना चाहते हैं. अगर कल वो यूएस ओपन चैंपियनशिप (US Open Championship) जीत लेते तो दुनिया के महानतम खिलाड़ी बन भी जाते. लेकिन वो फाइनल में हार गए और यही हार उनसे बर्दाश्त नहीं हुई. इस गुस्से में उन्होंने अपना रैकेट तोड़ दिया और मैच के बाद उनकी आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे. यानी वो अपनी इस हार को स्वीकार नहीं कर पाए.
ब्रिटेन की 18 साल की टेनिस खिलाड़ी एम्मा राडुकानू (Emma Raducanu) ने US Open का खिताब जीत कर अभी अपनी सफलता की शुरुआत की है. लेकिन 34 साल के मशहूर टेनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच इतनी बुलंदियों पर पहुंच कर भी खुश नहीं हैं.
जोकोविच रूस के खिलाड़ी से तीनों सेट 6-4, 6-4, 6-4 से हारे जबकि एम्मा कनाडा की टेनिस खिलाड़ी से 6-2, 6-4 से मुकाबला जीतीं. लोग आम तौर पर खेल की खबर को सिर्फ स्कोर के नजरिए से ही देखते हैं लेकिन कोई ये नहीं जानता कि इस स्कोर के पीछे खिलाड़ी कितना खून और कितना पसीना बहाते हैं.
एम्मा और जोकोविच ने जब यूएस ओपन खेलना शुरू किया था तो दोनों के लिए जीत महत्वपूर्ण थी. एम्मा के लिए इसलिए क्योंकि प्रतियोगिता की शुरुआत में उनकी विश्व रैंकिंग 150 थी. दुनिया उनसे परिचित नहीं थी और उनका मुकाबला टेनिस की दिग्गज खिलाड़ियों से था.
जोकोविच के लिए जीत इसलिए अहम थी क्योंकि अगर वो इस ग्रैंड स्लैम (Grand Slam) को जीत जाते तो दुनिया उन्हें टेनिस के अब तक के सबसे महानतम खिलाड़ी के तौर पर जानती. वो राफेल नडाल और रोजर फेडरर के 20-20 ग्रैंड स्लैम के रिकॉर्ड को तोड़ देते. लेकिन जोकोविच इस टाइटल के नजदीक होते हुए भी हार गए और एम्मा दूर होते हुए भी इस टाइटल को जीत गईं.
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एम्मा कामयाब होने के लिए खेल रही थी और जोकोविच कामयाबी के बोझ के साथ खेल रहे थे. जोकोविच ने फाइनल मुकाबले के दूसरे सेट में हारते वक्त अपने Racket को कोर्ट पर तब तक बार-बार मारा, जब तक वो टूट नहीं गया. उनके इस गुस्से में कामयाबी का बोझ साफ दिखा. लेकिन एम्मा की जीत में विनम्रता और सरलता दोनों छिपी थीं.
एम्मा जब इस टूर्नामेंट में उतरीं तब उन पर कामयाबी का कोई बोझ नहीं था. वो हार भी जातीं तो शायद उन्हें बहुत फर्क नहीं पड़ता. एम्मा ने शुरुआती राउंड्स के बाद ही अपनी वापसी की टिकट भी बुक करा ली थी क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन नहीं था कि वो फाइनल तक पहुंच जाएंगी. जबकि जोकोविच और पाने की चाहत के साथ कोर्ट पर उतरे थे. इसीलिए जब वो सफल नहीं हुए तो वो क्रोध से भर गए जबकि एम्मा शुरू से लेकर आखिर तक मुस्कुराती रहीं.
भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक दीपक चोपड़ा कहते हैं आपको किसी बच्चे की तरह बिना किसी कारण के भी खुश रहना चाहिए. अगर आप कारण देखकर खुश होते हैं तो आप मुसीबत में हैं क्योंकि वो कारण आप से कभी भी छीना जा सकता है.
यूएस ओपन जीतने पर 18 साल की इस टेनिस खिलाड़ी को 2.5 मिलियन डॉलर्स यानी 18 करोड़ 70 लाख रुपये बतौर इनाम राशि में मिले हैं. जबकि जोकोविच अब तक के अपने करियर में 148 मिलियन डॉलर्स यानी 1110 करोड़ रुपये जीत चुके हैं. भारतीय रुपयों में उनकी टोटल नेट वर्थ 1700 करोड़ है.
एम्मा सफलता की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर खड़ी थी और जोकोविच इसके आखिरी पायदान पर थे. लेकिन इस प्रतियोगिता के खत्म होने के बाद दोनों का स्थान बदल गया और इसमें इनके स्वभाव की बड़ी भूमिका रही.
ब्रिटेन की टेनिस खिलाड़ी एम्मा सिर्फ 18 साल की हैं. उन्होंने वर्ष 1977 के बाद ब्रिटेन के लिए पहला ग्रैंड स्लैम जीता है. उन्होंने US Open के फाइनल में कनाडा की खिलाड़ी से एक भी सेट नहीं हारा. यूएस ओपन से पहले तक एम्मा ने अपना सबसे बड़ा खिताब महाराष्ट्र के पुणे में जीता था. ये बात 2019 की है, जब वहां वो फ्यूचर टूर्नामेंट्स (Futures Tournaments) में विजेता रही थीं.
महाराष्ट्र के ही सोलापुर में उन्होंने International Tennis Federation की प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया था. एम्मा मूल रूप से ब्रिटेन की नहीं है. उनका जन्म कनाडा में हुआ है, पिता रोमानिया के हैं और मां मूल रूप से चीन की हैं. एम्मा ने यूएस ओपन का सफर विश्व रैंकिंग में 150वें स्थान से किया था लेकिन अब वो 23वें स्थान पर पहुंच गई हैं.
एम्मा की कहानी जीत के साथ शुरू होती है तो जोकोविच का सफर हार और हताशा के बीच नजर आता है. फाइनल मुकाबले में हार के बाद जब उनकी आंखों में आंसू थे तो वहां मुकाबला देखने आए 23 हजार लोगों के बीच एक ऐसा पोस्टर लहराया गया, जिस पर लिखा था Greatest of All Time. जोकोविच अपने करियर का 21वां ग्रैंड स्लैम जीत कर इतिहास रचना चाहते थे लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए.
जोकोविच की हार और हताशा ने इस सवाल को भी अंतरराष्ट्रीय मंच दिया कि क्या सफल होने वाला खिलाड़ी महान है? या महान खिलाड़ी वो है, जो अपनी असफलता में भी विनम्र और सरल बना रहता है. इसे आप टेनिस के ही एक और मशहूर खिलाड़ी रोजर फेडरर (Roger Federer) के एक उदाहरण से समझ सकते हैं.
वर्ष 2019 में विम्बलडन के फाइनल मुक़ाबले में रोजर फेडरर, जोकोविच से हार गए थे. ये मुकाबला लगभग पांच घंटे तक चला था और फेडरर की जीत की संभावनाएं काफी ज्यादा थीं. लेकिन वो हार गए और इस हार के बाद रोजर फेडरर का स्वभाव बिल्कुल अलग था. फेडरर ने मुस्कुराते हुए जोकोविच को बधाई दी और ये बताया कि हार को स्वीकार करना भी एक कला है और इस कला में माहिर होने के लिए खिलाड़ी होने से ज्यादा जरूरी है इंसान के तौर पर सहज और सरल होना.
जोकोविच की तरह राफेल नडाल के लिए भी यूएस ओपन उतना ही महत्वपूर्ण था. लेकिन पैर में चोट की वजह से वो इस प्रतियोगिता से बाहर हो गए. नडाल के लिए परिस्थितियां कई मायनों में जोकोविच से ज्यादा मुश्किल थीं. वो तो पैर की चोट की वजह से खेल ही नहीं पाए. लेकिन दो दिन पहले उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी जो तस्वीर पोस्ट की, उसमें कहीं भी उनके चेहरे पर हताशा या तनाव नजर नहीं आया. टेनिस के महानतम खिलाड़ियों की रेस में नडाल, जोकोविच और फेडरर के साथ बराबरी पर हैं. लेकिन इसका तनाव आप उनके चेहरे पर नहीं देखेंगे.
हम ये नहीं कह रहे कि जोकोविच बुरे हैं. जीवन में जो भी हालात होते हैं, उन पर हर इंसान की प्रतिक्रिया अलग अलग होती है. लेकिन किसी भी इंसान के असली व्यक्तित्व की पहचान तब होती है, जब वो बुरे समय से गुजर रहा होता है. किसी व्यक्ति द्वारा बुरे समय में किया गया व्यवहार ही उसके असली व्यक्तित्व का परिचय देता है. और ऐसा नहीं है कि जोकोविच ने पहली बार हार से हताश होकर ऐसा किया है.
इसी साल टोक्यो ओलंपिक के ब्रॉन्ज मेडल मैच में उन्होंने अपना रैकेट स्टैंड्स में फेंक दिया था. पिछले साल हुए यूएस ओपन में भी उन्होंने हार के दौरान अपनी जेब से टेनिस बॉल निकाल कर लाइन मैन को मार दी थी. इसी साल ऑस्ट्रेलियन ओपन में भी उन्होंने ऐसा ही किया था. और पाने की चाहत का बोझ किलोग्राम में मापा नहीं जा सकता. इसका वजन मानसिक शांति खो कर समझ आता है. इसलिए और पाने की चाहत से ज्यादा जीवन में और कोशिश करने पर ज्यादा जोर दीजिए.