रफीका को असल जन्नत का मतलब तब समझ में आया, जब जिंदगी हमेशा के लिए जहन्नुम बन चुकी थी
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रफीका को असल जन्नत का मतलब तब समझ में आया, जब जिंदगी हमेशा के लिए जहन्नुम बन चुकी थी

रफीका के घर में खुशियां ज्यादा दिनों तक टिकती, इससे पहले आतंक की काली नजर इस परिवार पर पड़ गई. रफीका के पास अब न ही मिन्नतों से बनाया घर है, और न ही उस घर को बनाने वाला उसका पति है. बेटे का भी अब कुछ पता नहीं है.

चंदा कर गांव वाले भले ही रफीका का घर दोबारा बना देंगे, लेकिन उस घर में रफीका की जिंदगी की पुरानी खुशियों को अब कोई नही लौटा सकता है. (प्रतीकात्‍मक फोटो)

नई दिल्ली:  जम्‍मू - कश्‍मीर के श्रीगुफवाड़ा में हुए इनकाउंटर में भले ही सुरक्षाबलों ने चार आतंकियों को मार गिराया हो, लेकिन इस मुठभेड़ की तफ्तीश से जुड़े कई सवालों का जवाब आना अभी भी बाकी है. सुरक्षाबलों को अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि इस मकान में आतंकियों को पनाह दी गई थी या उन्होंने इस इस घर में रहने वाले लोगों को बंधक बनाकर मकान पर कब्जा किया हुआ था. अभी इस सवाल का जवाब भी आना बाकी है कि क्‍या इस घर के बेटे का आतंकियों के साथ कोई रिश्ता था? यदि नहीं तो सुरक्षाबलों के देखते ही वह मौके से फरार होने की कोशिश क्यों करने लगा? इन सवालों का जबाब ढूंढने के लिए J&K पुलिस,  सेना और CRPF की टीम बीते 72 घंटों से जद्दोजहद कर रही हैं. तफ्तीश में भले ही अब इन सवालों का कोई भी जवाब मिले, लेकिन सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच हुई इस मुठभेड़ ने रफीका बानो को जन्नत और जहन्नुम का सही अंतर बता दिया है.

  1. आतंक की काली निगाह ने ना जाने कितने घरों को किया बर्बाद
  2. पति, बेटा, घर सब गया हाथ से, न जाने कब तक टेंट में हो गुजारा
  3. मुठभेड़ में तीन मकान हुए खंडहर, गांव के चंदे से बनेगे नए घर

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दरअसल, रफीका बानो श्रीगुफवाड़ा के उस घर की मालकिन का नाम है, जिस घर में सुरक्षाबलों ने ISIS के चार आतंकियों को मार गिराया था. मुठभेड़ के दौरान रफीका के साथ उसके पति मोहम्मद यूसुफ भी गोलियों का शिकार हुए थे. कहा जा रहा है कि रफीका और उसके पति को जो गोलियां लगी, वह आतंकियों की AK-47 के मुंह से निकली थी. मुठभेड़ के बीच सुरक्षाबलों ने इस दंपति को अचेत अवस्था में सब-डिस्ट्रिक हॉस्पिटल में भर्ती कराया था. इलाज के दौरान शुक्रवार देर शाम नफीसा को तो होश आ गया, लेकिन शरीर से अधिक खून बह जाने की वजह से मोहम्मद यूसुफ अपनी गहरी नींद से बाहर नहीं निकल सके. होश में आने के बाद रफीका की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी. उसके दिलो दिमाग में मुठभेड के दौरान का मंजर अभी भी हावी था. रफीका के कानों में गोलियों की आवाज अभी भी गूंज रही है. मौत के मंजर का वह अहसास रफीका के दिमाग को लगातार शून्य कर रहा था.

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अचानक रफीका को याद आया कि मुठभेड़ के दौरान उसके पति भी गोलियों का शिकार हुए थे. आसपास मौजूद हॉस्पिटल स्टाफ से रफीका ने अपने शौहर के बारे में पूछा. रफीका की हालत को देखकर हॉस्पिटल स्टाफ को समझ नहीं आया कि मुठभेड़ में जान गंवाने वाले उसके पति के बारे में उसे कैसे बताया जाए. हॉस्पिटल स्टाफ के चेहरे पर शून्य देखकर, रफीका की आंखे अपने बेटे सयार अहमद को तलाशने लगती है, लेकिन उसे वहां अपना कोई नजर नहीं आता है. इसी बीच रफीका को अपने जान-पहचान के कुछ लोग अपनी तरफ आते हुए नजर आते हैं. रफीका बड़ी उम्मीद से यूसुफ के बारे में पूछती है. जवाब मिलता है भाईजान अब नहीं रहे. यह सुनते ही रफीका बदहवास सी हो जाती है. शनिवार दोहपर रफीका को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है. जान पहचान के कुछ लोग उसे लेकर उसके घर पहुंचते हैं.
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रफीका बानों श्रीगुफवाड़ा के उस घर की मालकिन का नाम है, जिस घर में सुरक्षाबलों ने ISIS के चार आतंकियों को मार गिराया था. (प्रतीकात्‍मक फोटो)

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घर की हालत देख रफीका के मुंह से तेज आह निकलती है. उसका घर अब घर नहीं रहा था, वह खंडहर में तब्दील हो चुका था. घर के लॉन में मोहल्ले वालों ने एक टेंट लगा दिया था, जिसमें अब उसे अपना आगे का गुजर बसर करना था. रफीका अब इसी टेंट में बदहवास होकर पड़ी हुई है. उससे सहानुभूति जताने आने वाले लोगों को वह एक निगाह देखती है, इसके बाद फिर अपनी आंखे बंद कर लेती है. उसकी हालत अब ऐसी हो गई है कि करवट बदलने के लिए उसे दो से तीन महिलाओं का सहारा लेना पड़ता है. मोहल्ले वालों से ही उसे पता चला कि उसका बेटा पुलिस हिरासत में हैं. जिसके बाद से वह गेट पर होने वाली हर आहट से चौंक जाती है. रफीका के पड़ोसी बताते हैं कि इस मुठभेड़ से पहले रफीका के पास सब कुछ था. कश्मीर की हसीन वादियों में एक प्यारा से घर था. घर में पति मुहम्मद यूसुफ, बुढापे की लाठी बनने वाला जवान बेटा सयार अहमद था.

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सच मानिए तो रफीका और यूसुफ को कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद कुछ समय पहले ही जन्नत सी जिंदगी नसीब हुई थी. दरअसल, यूसुफ के आर्थिक हालात बहुत अच्छे नहीं थे. कभी किसानी, कभी मजदूरी, कभी छोटा व्यापार कर उन्होंने अपने लिए बडी मेहनत से इस घर को तैयार किया था. रफीका और यूसुफ ने अपने इस घर के लिए बहुत सपने बुने थे. लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. उनके घर में खुशियां ज्यादा दिनों तक टिकती, इससे पहले आतंक की काली नजर इस परिवार पर पड़ गई. जिसके बाद उन्हें अपनी जन्नत सी जिंदगी जहन्नुम नजर आने लगी. यह हाल, सिर्फ एक परिवार का नहीं है, कश्मीर के जिस परिवार पर आतंक की काली निगाह पड़ी है, उस परिवार का हर सदस्य आजादी और न जाने क्या क्या हासिल करने के नाम पर जन्नत मांग रहा है. 

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उसे नहीं पता कि जन्नत परिवार की खुशियों के साथ होती है. जब तक परिवार साथ है, तब तक जन्नत आपके कदमों में है, नहीं तो पूरी जिंदगी जहन्नुम ही है. इसका सबसे बडा उदारण अब रफीका है. रफीका के पास न ही मिन्नतों से बनाया घर है और न ही उस घर को बनाने वाला उसका पति है. बेटे का भी अब कुछ पता नहीं. रफीका का घर दोबारा से बनाने के लिए गांव वाले चंदा कर रहे हैं, कुछ महीनों में हम घर भी बना देंगे, लेकिन उस घर में रफीका की जिंदगी की पुरानी खुशियों को अब कोई नही लौटा सकता है.

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