एनआरसी लिस्ट में छूट गए लोगों का दर्द - अपने देश में हम हैं परदेशी, कोई न पहचाने
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एनआरसी लिस्ट में छूट गए लोगों का दर्द - अपने देश में हम हैं परदेशी, कोई न पहचाने

असम में सबसे बड़ा सवाल यही बन गया है कि क्या आपका नाम एनआरसी की लिस्ट में है? लोग आपस में एक दूसरे से यही पूछ रहे हैं, और जिनके नाम नहीं हैं, उनके लिए तो जैसे मुसीबतों का तूफान टूट पड़ा हो.

असम नागरिक संरक्षण कमेटी के महासचिव शेखर डे का नाम नागरिकता सूची में नहीं है

कमलिका सेनगुप्ता. नई दिल्ली: असम के महान गायक भूपेन हजारिका का एक गाना आज असम के हजारों लोगों के जीवन का सच बन गया है. दरमियान फिल्म का उनका गाया गीत है - 'दुनिया पराई लोग यहां बेगाने, दिल पर जो बीती दिल ही जाने, अपने देश में हम हैं परदेशी, कोई न पहचाने.' एनआरसी में असम के जिन लोगों के नाम छूट गए हैं, वो इन दिनों ऐसा ही दर्द महसूस कर रहे हैं.

केंद्र सरकार ने असम में नेशलन रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के आंकड़े जारी कर दिए हैं, लेकिन सरकार के लाख आश्वासनों के बाद भी लोगों की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. आज असम में सबसे बड़ा सवाल यही बन गया है कि क्या आपका नाम एनआरसी की लिस्ट में है? लोग आपस में एक दूसरे से यही पूछ रहे हैं, और जिनके नाम नहीं हैं, उनके लिए तो जैसे मुसीबतों का तूफान टूट पड़ा हो.

असम नागरिक संरक्षण कमेटी के महासचिव शेखर डे को उस समय अचंभा हुआ जब खुद उनका नाम ही एनआरसी की लिस्ट में नहीं था. उन्होंने बताया, 'मेरे पास मेरे पिता का एनआरसी सर्टिफिकेट है, जो 1951 में बना था. मैं यहां पैदा हुआ, बड़ा हुआ. अब मैं यहां से रिफ्यूजी कैसे हो सकता हूं. मेरी उम्र 66 साल है, अब मैं कहां जाऊंगा.'

हम उनकी आंखों में आसानी से दर्द देख सकते हैं, लेकिन उससे ज्यादा निराश उनकी बेटी मीठी डे हैं. वो कहती हैं, 'ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरा नाम आया है, लेकिन मेरे पिता का नाम नहीं है. ऐसा कैसे हो सकता है. हम अपमानित महसूस कर रहे हैं.'

शेखर असम के उन लाखों लोगों में हैं जिनका भविष्य एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट के कारण अधर में लटक गया है. वो समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें. हालांकि सरकार ने कहा है कि जिन लोगों के पास अपनी नागरिकता के वैध दस्तावेज हैं, वो अधिकारियों से मिलकर अपना नाम सूची में शामिल करा सकते हैं. 

सूची में नाम नहीं होने के चलते बड़ी संख्या में लोग अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं. प्रमाथनाथ सेन सरकारी कर्मचारी हैं, लेकिन उनका नाम सूची में नहीं है. हालांकि उनकी पत्नी का नाम सूची में है. शेखर कहते हैं, 'मैं हमेशा लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ता था. अब खुद मैं ही विदेशी हो गया हूं, तो मैं लोगों के लिए लड़ाई कैसे करूंगा.'

जिन लोगों का सूची में नाम नहीं है, उनसे जिला प्रशासन ने कहा है कि जरूरी दस्तावेज के साथ सात अगस्त तक संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें. हो सकता है कि इन लोगों के नाम सूची में शामिल हो जाएं, लेकिन इस बीच इन्हें पहुंची मानसिक पीड़ा का जिम्मेदार कौन होगा. 

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