NSAB History: सरकार ने एक बार फिर NSAB का गठन किया है. जिसमें उन दिग्गजों को शामिल किया गया है जिनका नाम सुकर दुश्मन देशों की रूह कांपने लगती है. इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ये बोर्ड क्या है, इसका गठन पहली बार कब हुआ था और इसमें कौन-कौन शामिल हैं?
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What is NSAB: आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 4 अलग-अलग मीटिंगें हुई हैं. जिसमें सबसे अहम बैठक CCS यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की थी. पहलगाम हमले का बाद एक हफ्ते में लगातार दूसरी बार CCS की बैठक हुई है. आज सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड यानी NSAB का नए सिरे से गठन किया है. इस कमेटी में कुल 7 सदस्य होंगे. कमेटी में 3 सदस्य पूर्व IPS अधिकारी हैं, 3 सैन्य अधिकारी हैं और 1 पूर्व IFS यानी की राजनयिक हैं. इन सभी सदस्यों के पास देश की सुरक्षा से जुड़ा काफी लंबा अनुभव है.
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के पूर्व चीफ आलोक जोशी को इस बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है. इस कमेटी में पूर्व एयर मार्शल पीएम सिन्हा, लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह, रियर एडमिरल रिटायर्ड मॉन्टी खन्ना शामिल हैं. पीएम सिन्हा वायुसेना से एके सिंह थल सेना और मॉन्टी खन्ना नौ सेना से जुड़े रहे हैं. इसी कमेटी में दो पूर्व IPS अधिकारी राजीव रंजन वर्मा और मनमोहन सिंह को शामिल किया गया है. इसके अलावा इस कमेटी में बी वेंकटेश वर्मा को भी शामिल किया गया है, जो भारतीय विदेश सेवा के रिटायर्ड अधिकारी हैं. कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इनकी बेहद मजबूत पकड़ है.
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— Zee News (@ZeeNews) April 30, 2025
हमारा ये विश्लेषण आपको पाकिस्तान के साथ जंग जैसे हालात को ध्यान में रखकर ही देखना चाहिए. देखिए आपके लिए CDS, CCS या NSA ये कोई नया टर्म नहीं होगा. NSA सुनकर आपके दिमाग में एक ही नाम चलेगा, एक ही तस्वीर घूमेगी और वो है अजित डोभाल की. डोभाल इस समय देश के NSA हैं. लेकिन NSAB यानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की चर्चा कम होती है, तो फिर आज अचानक ऐसा क्या हो गया कि ये कमेटी चर्चा में आ गई. आखिर NSAB को फिर से गठन करने की जरूरत क्यों पड़ी?
इसे समझने के लिए आज आपको हमारे साथ इतिहास में लौटना होगा. पहली बार NSAB का गठन 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान किया गया था. देश के पहले NSA ब्रजेश मिश्रा के प्रयास से इस बोर्ड का गठन किया गया था. स्वर्गीय के सुब्रह्मण्यम इस बोर्ड के पहले अध्यक्ष थे. इस कमेटी का लक्ष्य है- राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को बनाना और तैयार करना. NSAB ने अब तक कई बड़े मौकों पर भारत सरकार के लिए कई अहम रिपोर्ट तैयार की है. जैसे 2001 में परमाणु सिद्धांत का मसौदा तैयार करना, 2002 में भारत की रणनीतिक रक्षा की समीक्षा करना और 2007 में राष्ट्रीय सुरक्षा की समीक्षा करना.
भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच अभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड दो तरीके से काम करेगा. पहला- छोटी अवधि के लिए रणनीति बनाएगा और दूसरा लंबी अवधि के लिए कूटनीतिक और रक्षा रणनीति तैयार करेगा. मौजूदा परिस्थिति में अगर भारत और पाकिस्तान के बीच जंग होती है या कोई बड़ा एक्शन लिया जाता है तो NSA समेत सरकार की अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों पर काफी ज्यादा दबाव बढ़ेगा. उस दौरान ये बोर्ड प्रधानमंत्री से लेकर सभी बड़ी सुरक्षा एजेंसियों के बीच पुल की तरह काम करेगा.
इस बार जो कमेटी बनाई गई है उसकी संरचना थोड़ी अलग है और ये माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में ये कमेटी कुछ बड़ी सिफारिश कर सकती है. इस बार ये कमेटी ताकतवर और थोड़ी अलग क्यों है? इसे समझने के लिए आपको NSAB के 7 नए योद्धाओं की ताकत के बारे में जानना जरूरी है.
इसमें सबसे पहला नाम रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के पूर्व चीफ आलोक जोशी का आता है जो इस कमेटी के चेयरमैन हैं. आलोक जोशी हरियाणा कैडर के IPS अधिकारी रहे हैं. 2012 में आलोक जोशी रॉ में शामिल हुए. इस दौरान वो लंबे समय तक विदेश में भी रहे. पाकिस्तान और नेपाल को लेकर उन्होंने विशेष काम किया है. मौजूदा समय में पाकिस्तान के साथ-साथ नेपाल के रास्ते से भी देश में कई देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं. 2012 में तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने आलोक जोशी को रॉ प्रमुख बनाया था. रॉ से रिटायर होने के बाद 2014 में मोदी सरकार ने उन्हें नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी NTRO का चेयरमैन बनाया. NTRO चेयरमैन रहते हुए आलोक जोशी ने भारत के ड्रोन और साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए. 2021 में जब सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जांच कमेटी बनाई थी तो आलोक जोशी भी इस कमेटी के सदस्य थे.
इस कमेटी के दूसरे सदस्य हैं वेस्टर्न एयर कमांडर के पूर्व एयर मार्शल पंकज मोहन सिन्हा. पूर्व एयर मार्शल पंकज मोहन सिन्हा के पास 45 सौ घंटे से ज्यादा की उड़ान भरने का अनुभव है. पिछले साल ही वो रिटायर्ड हुए थे. इनके पास वायुसेना के संचालन और रणनीति का खास अनुभव है.
इस कमेटी के तीसरे सदस्य हैं पूर्व सदर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह. सैन्य रणनीति और संचालन में इनके पास काफी लंबा अनुभव है. इनके पास, देश के कुछ बड़े युद्धाभ्यासों जैसे 2010 में योद्धा शक्ति और 2011 में सुदर्शन शक्ति अभ्यास की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने का तजुर्बा है. मतलब- युद्ध होने पर सरकार को ग्राउंड जीरो पर इनका तर्जुबा काफी काम आ सकता है. लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 11वें उपराज्यपाल के रूप में भी काम कर चुके हैं.
इस कमेटी के चौथे सदस्य हैं रियर एडमिरल रिटायर्ड मॉन्टी खन्ना. मॉन्टी खन्ना के पास समुद्री सुरक्षा और रणनीति का गहरा अनुभव है. ऑपरेशन पराक्रम के दौरान उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियां निभाई थीं. इसके अलावा इस कमेटी में दो पूर्व IPS और एक IFS भी शामिल हैं.