ओमिक्रॉन की जांच का पैमाना है जीनोम सिक्वेंसिंग, इस बारे में जानना है जरूरी
कोरोना (Coronavirus) के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) आजकल सबसे ज्यादा चर्चा में है. इसकी जांच का तरीका जटिल है, जिसमें समय भी ज्यादा लगता है.
नई दिल्ली: कोरोना (Coronavirus) के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) आजकल सबसे ज्यादा चर्चा में है. मुंबई में इसकी इकलौती जीनोम सिक्वेंसिंग लैब कस्तूरबा हास्पिटल में बनाई गई है. इस सिक्वेंसिंग के जरिए डॉक्टर पता लगा लेते हैं कि कोरोना का नया वेरिएंट कौन सा है.
आखिर क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग?
जैसे किसी आदमी का बायोडाटा होता है, उसी तरह से जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है. किसी भी वायरस में डीएनए और आरएनए जैसे कई तत्व होते हैं. जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए इनकी जांच की जाती है कि ये वायरस कैसे बना है और इसमें क्या खास बात अलग है. उस खास बात का स्पेस क्या है और पदार्थ के बीच में दूरी किस तरह की है.
सिक्वेंसिंग के जरिए ये समझने की कोशिश की जाती है कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ. अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस (Coronavirus) के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो ये ज्यादा संक्रामक होता है जैसा कि ओमीक्रॉन के बारे में कहा जा रहा है. स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस की कांटेदार संरचना होती है.
होती है 'S' जिंस की जांच
ओमिक्रॉन की कांटेदार सरंचना में 'S' जिंस की जांच की जाती है. अगर कांटेदार संरचना में S जिंस मौजूद होता है तो ये पुराना वेरिएंट माना जाता है. अगर उसमें एस जिंस मौजूद नहीं होता तो समझ लिया जाता है कि ये ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron) है. यानी ओमिक्रॉन की जीनोम मैपिंग होती है. इसके जेनेटिक मैटीरियल की स्टडी करके यह पता किया जाता है कि इसके अंदर किस तरह के बदलाव हुए हैं.
किसी भी वायरस के म्यूटेशन को समझने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग जरूरी है. वायरस रूप बदल-बदलकर खुद को ज्यादा मजबूत बनाते हैं, जिसे म्यूटेशन कहा जाता है. कई बार म्यूटेशन के बाद वायरस पहले से कमजोर हो जाता है. वहीं कई बार म्यूटेशन की ये प्रक्रिया वायरस को काफी खतरनाक बना देती है. वायरस में बदलाव होने पर कई बार मौजूदा दवाएं या वैक्सीन काम नहीं करती. ऐसे में उनके फॉर्मूला में बदलाव लाना होता है. ऐसे में जीनोम सिक्वेंसिंग से जो जानकारी सामने आती है, वो नई दवा बनाने में काम आती है.
RNA से बना है कोरोना वायरस
कोरोना वायरस (Coronavirus) RNA से बना है. जीनोम सीक्वेंसिंग वो तकनीक है, जिससे इसी RNA की जेनेटिक जानकारी मिलती है. लैब में कंप्यूटर के जरिए उसकी आनुवंशिक संरचना का पता लगाते हैं. इससे उसका जेनेटिक कोड निकाला जाता हैं
हमारी कोशिकाओं के भीतर Genetic Material होता है. इसे DNA, RNA कहते हैं. इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है. एक जीन की तय जगह और दो जीन के बीच की दूरी और उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसकी दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से जीनोम मैपिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) की जाती है. जीनोम मैपिंग से पता चलता है कि जीनोम में किस तरह के बदलाव आए हैं.
जेनेटिक स्ट्रक्चर की पड़ताल
मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल की माइक्रो बॉयलॉजिस्ट नैना इंगोले बताती हैं कि वायरस का जेनेटिक स्ट्रक्चर क्या होता है, वायरस में क्या- क्या म्यूटेशन हुए हैं. इसे जीनोम सिक्वेंसिंग कहा जाता है. किस वेरिएंट में कौन सा म्युटेशन हुआ है, इसका पता लगाने के लिए उसके एक स्ट्रेन का सिक्वेंस किया जाता है. जिससे सैपल में आए वेरिएंट के बदलाव को कन्फर्म किया जाता है. जो मरीज कोरोना पॉजिटिव निकलते हैं, RTPCR टेस्ट किया जाता है.
नैना इंगोले बताती हैं, 'पहले चरण में RNA को निकालते है और उसकी कई सारी कॉपी तैयार करते हैं. फिर उसे लैब में तैयार करके क्वालिटी चेक करते हैं. ये मशीन हमें हमारे सैंपल जीन जो अमिनो एसिड़ से बने होते हैं, उसकी सिक्वेंसिंग बताता है. अब जब म्यूटेशन होता हैं तो इन सिक्वेंस में हमें बदलाव देखने को मिलते हैं. जिन के S जीन में 50 म्यूटेशन पाए गए हैं, इसे पताकर हम जान पाते है कि वायरस का कौन सा वेरिएंट है या कोई नया वेरिएं आने वाला है. अगर कोई बदलाव होता है तो हम इसकी पहचान कर पाते है कि ये कौन सा वेरिएंट है.'
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एक बार 376 सैंपल की जांच
माइक्रो बॉयलॉजिस्ट ने कहा, 'हमारे पास 376 सैंपल को एक बार में टेस्ट करने की क्षमता है. इसके लिए हमें 4-5 दिन लग जाते हैं क्योकि ये लंबा प्रोसेस है. इन मशीनों में हम लास्ट सैंपल टेस्ट करते है, जिन्हें बाद में एनलाइज किया जाता है. जिसमें काफी वक्त लगता है. ओमिक्रॉन (Omicron) के खतरे पर कुछ कहना जल्दी होगा लेकिन हमे सतर्क रहना होगा. साउथ अफ्रीका की रिपोर्ट से पता चलता है कि इसका ट्रांसमिशन काफी तेज है लेकिन जान का खतरा कम है.म्यूटेशन वायरस की नॉर्मल प्रक्रिया होती है जैसे स्वाइन फ्लू हो लेकिन इसका इम्पैक्ट क्या होगा, ये हमें देखना होगा.'
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