Opinion: अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच हो रहे हमले की आंच अब क्रिकेट तक पहुंच गई है. तीन अफगानिस्तानी क्रिकेटर्स की मौत हो गई है. ऐसे में सवाल उठता है क्या ICC और ACC को पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड से कह देना चाहिए कि अब बस बहुत हो गया? क्या पाकिस्तान क्रिकेट टीम पर पाबंदी लगनी चाहिए? चलिए जानते हैं.
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Opinion पाकिस्तान ने हाल में अफगानिस्तान पर जो हालिया एयर स्ट्राइक की उसने एशिया के खेल और राजनीतिक माहौल दोनों को हिला कर रख दिया है. अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तान की एयर स्ट्राइक में तीन क्रिकेटरों की मौत की पुष्टि की है. यह सिर्फ एक सैन्य घटना नहीं है, बल्कि इसने खेल के उस मतलब को चुनौती दी है जिसे अब तक शांति और सम्मान का प्रतीक माना जाता था. सवाल यह है कि क्या अब वह वक्त आ गया है जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को पाकिस्तान जैसे देश से एक साफ नैतिक दूरी बनानी चाहिए?
इतिहास का बोझ: जब हिंसा राजनैतिक हथियार बन गई
पाकिस्तान की नीतियों का इतिहास बताता है कि हिंसा उसके राजनैतिक या रणनीतिक सोच का एक अहम हिस्सा रही है. 1999 के कारगिल युद्ध से लेकर जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकवादी घुसपैठ तक, पाकिस्तान ने युद्ध को 'कूटनीति की निरंतरता' के तौर पर देखा है. लेकिन खेल जगत के लिए बड़ा मौका तब आया जब आतंक और मानवता के खिलाफ कार्रवाइयों ने खेल की सीमाओं को पार करना शुरू किया.
2008 के मुंबई हमले (26/11) ने दुनिया को दिखाया कि पाकिस्तान की जमीन से पनप रहे आतंकी समूह कितनी बड़ी तबाही मचा सकते हैं. 2016 में उरी हमला, जिसमें कई भारतीय सैनिक मारे गए और पहलगाम आतंकी हमला, जिसने कश्मीर की शांति और पर्यटन को बुरी तरह चोट पहुंचाई, पुलवामा हमला और पठानकोट एयरफोर्स बेस हमला ये सभी घटनाएं एक पैटर्न की तरह हैं. एक ऐसा पैटर्न जिसमें राज्य-संरक्षित या राज्य समर्थित हिंसा एक सामान्य राजनैतिक व्यवहार बन चुकी है.
इसी कड़ी में हालिया अफगानिस्तान हमला है, जो पाकिस्तान की सीमाओं के बाहर हुए मानवीय संकट का एक नया अध्याय है. अफगान क्रिकेटरों की जान गई तो यह खेल भावना के खिलाफ एक संगीन अपराध है. क्रिकेट केवल प्रतियोगिता नहीं है; यह दुनिया में भावनाओं और भाईचारे का एक मजबूत पुल रहा है लेकिन अब उस पुल को बारूद ने निगल लिया है.
क्रिकेट केवल प्रतियोगिता नहीं है; यह दुनिया में भावनाओं और भाईचारे का एक मजबूत पुल रहा है लेकिन अब उस पुल को बारूद ने निगल लिया है.
कई लोग तर्क देंगे कि 'खेल को राजनय से अलग रखना चाहिए'. यह सुनने में अच्छा लगता है लेकिन इतिहास कहता है कि कभी-कभी खेल ही नैतिकता का सबसे जोरदार माध्यम बन जाता है. दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद के समय पूरी दुनिया ने साबित किया कि अगर कोई देश इंसानियत और बराबरी के मूल्यों को दबाने लगे, तो खेल समुदाय के लिए चुप रहना मुनासिब नहीं होता. दक्षिण अफ्रीका नस्लभेद के दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दक्षिण अफ्रीका की नस्लीय नीतियों का विरोध करने के लिए कई तरह के प्रतिबंध लगाए और इसका असर खेलों पर भी पड़ा.
आईसीसी (ICC) और एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) आज उसी मोड़ पर खड़े हैं. क्या वे दिखाना चाहते हैं कि क्रिकेट केवल मैच की जमीन तक सीमित है? या वे इसे इंसानियत का आईना भी मानते हैं? अगर वह दूसरा रास्ता चुनना चाहते हैं तो पाकिस्तान पर अस्थायी क्रिकेट प्रतिबंध की पहल अभी चाहिए.
वे दिखाना चाहते हैं कि क्रिकेट केवल मैच की जमीन तक सीमित है? या वे इसे इंसानियत का आईना भी मानते हैं?
कई लोग कहेंगे कि किसी देश की टीम पर प्रतिबंध लगाना उनकी जनता या खिलाड़ियों को सजा देने जैसा होगा. लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हमेशा 'राजनीतिक सजा' नहीं, बल्कि 'नैतिक दंड' रहे हैं, यह दिखाने के लिए कि वैश्विक समुदाय किन हदों को पार होने नहीं देगा. उस समय भी दक्षिण अफ्रीका को खेल से बाहर रखा गया था, और अंत में उसे अपनी नीतियां बदलनी पड़ी थीं.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हमेशा 'राजनीतिक सजा' नहीं, बल्कि 'नैतिक दंड' रहे हैं, यह दिखाने के लिए कि वैश्विक समुदाय किन हदों को पार होने नहीं देगा.
अगर पाकिस्तान की सरकार देखे कि उसके सैन्य और आतंकवादी फैसलों के कारण क्रिकेट जैसी अंतरराष्ट्रीय पहचान संकट में पड़ गई है, तो शायद उसे अपने किए की कीमत समझ आए. उसकी लोकप्रियता, खिलाड़ियों की प्रतिभा और क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी इस सच्चाई को और दर्दनाक बनाती है कि वही देश लगातार ऐसी नीतियां अपनाता है जो समृद्ध और विकसित दुनिया के खिलाफ हैं. हाल ही में उसकी कुछ मिसाल देखने को मिली हैं.
आईसीसी का चार्टर किसी देश की सरकार की हरकतों पर सीधे तौर पर कार्रवाई का जिक्र नहीं करता, लेकिन सदस्य देशों की सुरक्षा, निष्पक्षता और खेल की आत्मा की रक्षा उसके मूल सिद्धांतों में है. अगर किसी देश की नीतियां खेल की आत्मा को नुकसान पहुंचाती हैं, तो आईसीसी को जिम्मेदारी निभानी ही होगी.
जब किसी देश का शासन दूसरे देशों के खिलाड़ियों या नागरिकों की जान से खेलता हो, तब उस देश की क्रिकेट टीम का वैश्विक मंच पर बने रहना उस सज्जनता का अपमान है.
अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड, भारत, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के बोर्ड्स अगर एकजुट होकर यह मांग रखें कि पाकिस्तानी क्रिकेट पर अस्थायी निलंबन या जांचात्मक रोक लगाई जाए, तो यह खेल जगत की नैतिक स्थिति को मजबूत करेगा. क्रिकेट हमेशा 'जेंटलमैन गेम' कहलाया गया है लेकिन सज्जनता सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं हो सकती. जब किसी देश का शासन दूसरे देशों के खिलाड़ियों या नागरिकों की जान से खेलता हो, तब उस देश की क्रिकेट टीम का वैश्विक मंच पर बने रहना उस सज्जनता का अपमान है.