कर्नाटक की 73 वर्ष की पर्यावरण कार्यकर्ता तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) और तमिलनाडु की आर रंगमा (R Rangama) ने अपना जीवन जंगलों को बचाने के लिए समर्पित कर दिया. फिर भी देशवासी उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते.
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नई दिल्ली: कर्नाटक की 73 वर्ष की पर्यावरण कार्यकर्ता तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) ने अपना जीवन जंगलों को बचाने के लिए समर्पित कर दिया. इनके द्वारा लगाए गए 30 हज़ार पेड़ पौधों में से आज तक एक भी पौधा मुरझाया नहीं है.
वहीं 105 वर्ष की तमिलनाडु की आर रंगमा (R Rangama), पिछले 70 वर्षों से भारत में जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं. इन दोनों महिलाओं को भारत के राष्ट्रपति ने पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया है. फिर भी भारत के ज्यादातर लोग इन्हें नहीं पहचानते. जबकि आजकल के Celebrities महिला सशक्तिकरण और मानव अधिकारों की बात करते हैं. अपने आपको Liberal बताते हैं. वे अपने क्रांतिकारी विचारों का मीडिया और सोशल मीडिया में प्रचार करते हैं.
ये एक बहुत ही Fashionable Formula है, जिसके जरिए दुनिया के पुरस्कार गैंग में इन लोगों की एंट्री हो जाती है. फिर ये लोग रातों रात सेलिब्रिटी बन जाते हैं. इसके बाद ये लोग अपना NGO शुरू कर देते हैं. फिर उस NGO में पूरी दुनिया से फंडिंग आने लगती है. जिससे ये शानदार जीवन जीते हैं. दुनिया के बड़े बड़े Seminars और Confrences में इन्हें वक्ता के तौर पर बुलाया जाता है. यही इनकी सफलता का फॉर्मूला है. इस वजह से दुनिया भर के युवा इनसे प्रभावित होते हैं और इन्हें फॉलो करने लगते हैं.
हालांकि पद्म पुरस्कार (Padma Award) से सम्मानित हुए साधारण दिखने वाले भारत के इन असाधारण लोगों के पास ऐसी Tool Kit नहीं है, जिसके सहारे रातों रात दुनिया भर में पहचान बनाई जा सके. तुलसी गौड़ा ने 60 साल पहले और आर रंगामा ने 70 साल पहले भारत को बदलने की जो शपथ खाई थी. वो उस पर आज भी अडिग हैं. इतने वर्षों में भारत बदल गया, दुनिया बदल गई. सच्चे लोगों की जगह सोशल मीडिया की चकाचौंध ने ले ली.
पर्यावरण की बात करना फैशन बन गया. महिला सशक्तिकरण की बात करना Liberal होने की निशानी बन गया. लेकिन दुनिया की तरह भारत की ये दोनों महिलाएं नहीं बदली. इन्हें सबकुछ कबूल था लेकिन अपने रास्ते से भटक जाना या अपनी बात से पलट जाना कबूल नहीं था. वहीं आज के जमाने का जो पुरस्कार गैंग है, वो अपनी हर बात से पलटने के लिए जाना जाता रहा है.
उदाहरण के लिए आप 24 साल की मलाला यूसुफज़ई (Malala Yousafzai) को देखिए. ब्रिटेन के Birmingham में रहने वाली मलाला ने 24 वर्ष की उम्र में पाकिस्तान के असीर मलिक से शादी कर ली है. असीर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड में मैनेजर हैं. ये शादी इस्लामिक रीति रिवाज़ के साथ हुई. इस दौरान निकाह नामा भी पढ़ा गया और निकाहनामे पर मलाला और उनके पति ने दस्तखत भी किए. जबकि आज से कुछ महीने पहले ही मलाला ने एक अंतरराष्ट्रीय Fashion Magzine को एक इंटरव्यू में कहा था कि वो ये नहीं मानती कि शादी के लिए दो लोगों का किसी कागज पर साइन करना ज़रूरी है. मलाला ने तब कहा था कि दो लोग बिना शादी के भी सारी उम्र साथ रह सकते हैं.
तब पाकिस्तान में मलाला के इस बयान की काफी आलोचना हुई थी. लोगों ने यहां तक कहा था कि मलाला ने इस्लाम विरोधी बयान दिया है क्योंकि इस्लाम में एक महिला और पुरुष बिना निकाह किए एक साथ नहीं रह सकते. इसलिए अब मलाला युसुफजई ट्रेंड कर रही हैं. हालांकि उन्हें पाकिस्तान से बधाइयां मिल रही है लेकिन दुनिया भर के कई लोग उन्हें Troll कर रहे हैं.
जब मलाला (Malala Yousafzai) ने शादी को गैर जरूरी बताया था. तब पश्चिम के मीडिया ने मलाला के इन Liberal विचारों की बड़ी तारीफ की थी. कहा गया था कि अच्छा हुआ मलाला ब्रिटेन में बस गईं वरना पाकिस्तान में तो उन्हें बहुत कम उम्र में ही शादी करनी पड़ती. जिस ब्रिटेन में महिलाएं औसतन 35 वर्ष की उम्र में शादी करती है और जहां इस बात का कोई दबाव नहीं होता कि शादी धार्मिक रीति रिवाज़ से ही की जाए. वहां मलाला ने न सिर्फ 24 साल की उम्र में शादी कर ली, बल्कि ये निकाह इस्लामिक रीति रिवाज़ों के साथ हुआ. जहां एक मौलवी ने मलाला और उनके पति से निकाह कबूल करवाया.
मलाला जीवन भर जिस कट्टर इस्लाम से भागती रहीं, जो इस्लाम उन्हें पढ़ाई लिखाई की इजाजत नहीं देता था. जिस कट्टर इस्लाम की वजह से तालिबान ने उनके सिर में गोली मार दी थी. जिस कट्टर इस्लाम के विरोध में वो ये कहती रहीं कि एक महिला और पुरुष बिना शादी किए भी सारा जीवन साथ रह सकते हैं. आखिरकार मलाला खुद उस पिंजड़े को तोड़ने में नाकाम रहीं .
मूल रूप से पाकिस्तान की रहने वाली मलाला युसुफज़ई (Malala Yousafzai) को वर्ष 2012 में तालिबानी आतंकवादियों ने सिर पर गोली मार दी थी, तब मलाला सिर्फ 15 साल की थी. मलाला को गोली इसलिए मारी गई थी क्योंकि वो चाहती थी लड़कियों को भी स्कूल जाने का अधिकार दिया जाए. इसके बाद उन्हें इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया, जहां वो इलाज के बाद पूरी तरह से ठीक हो गईं. इसके बाद 17 साल की उम्र में यानी वर्ष 2014 में उन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सबसे कम उम्र में ये पुरस्कार हासिल करके मलाला ने इतिहास रच दिया था.
इसके बाद मलाला ने ब्रिटेन की मशहूर Oxford University से पढ़ाई की और वो सबकुछ हासिल किया, जिसका सपना दुनिया का हर युवा देखता है. फिर उन्होंने ये कहकर कि शादी ज़रूरी नहीं है. उन लड़कियों का हौसला बढ़ाया जिनके मां बाप जबरदस्ती उनकी शादी करा देते हैं. जिस संयुक्त राष्ट्र ने मलाला युसुफज़ई को अपना विशेष दूत बनाया था, उसी की एक रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में 21 प्रतिशत लड़कियों की शादी आज भी 18 साल का होने से पहले ही जबरदस्ती करा दी जाती है. जिस पाकिस्तान में मलाला ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कथित लड़ाई लड़ी, वहां आज भी 50 प्रतिशत महिलाएं पढ़ और लिख नहीं सकती.
लेकिन मलाला (Malala Yousafzai) ने शायद ही इन स्थितियों को बदलने के लिए कुछ किया. सोचिए पाकिस्तान की जो लड़कियां मलाला के बयानों से प्रभावित होकर अपने घर वालों से लड़ी होंगी और जिन्होंने अपने घर वालों से कहा होगा कि मलाला को देखो वो शादी को ज़रूरी नहीं मानती.आज वो लड़कियां खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही होंगी.
मलाला को उनके निकाह पर सबसे पहले बधाई देने वालों में स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) भी थीं. ग्रेटा को भी रातों रात लोकप्रियता तब मिली थी जब वर्ष 2019 में उन्होंने UN Climate Action Summit में एक भाषण दिया था. ग्रेटा आज सिर्फ 18 साल की हैं और पूरी दुनिया उन्हें पर्यावरण को बचाने वाले सबसे बड़े चेहरे के तौर पर देखती है. वो भी आज की तारीख में नोबेल पुरस्कार हासिल करने का सपना देखने वालों की लाइन में है.
अगर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और कथित Liberals की अनुकंपा रही तो उन्हें भी एक ना एक दिन ये पुरस्कार ज़रूर मिल जाएगा. जबकि ग्रेटा की असली रुचि पर्यावरण को बचाने में नहीं बल्कि अपना चेहरा चमकाने में है. वो भारत के मामलों में भी दखल देती हैं, किसान आंदोलन को भड़काने के लिए Tool Kit तैयार करने में मदद करती है और भारत सरकार का भी विरोध करती हैं.
ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) की एक भी उपलब्धि ऐसी नहीं है जो भारत की तुलसी गौड़ा या आर रंगमा की उपलब्धियों का मुकाबला कर सके. फिर भी ग्रेटा और मलाला जैसे लोग पुरुस्कार गैंग की सबसे Latest पीढ़ी का हिस्सा बन जाते हैं. ये एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार गैंग है, जो दूसरे देशों की सुरक्षा और अखंडता को भी सिर्फ इसलिए ताक कर रख देता है क्योंकि इन्हें किसी भी कीमत पर अपना चेहरा चमकाना है और पुरस्कार हासिल करना है.
जबकि 73 और 105 साल की उम्र में चेहरे पर झुर्रियां लिए, साधारण सी दिखने वाली भारत की ये असाधारण महिलाएं जीवन भर अपना कर्तव्य निभाती हैं. बिना इस बात की चिंता किए कि इन्हें इनके कार्यों के लिए कोई सम्मान मिलेगा या नहीं.
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प्रियंका चोपड़ा और Angelina Jolie जैसी अभिनेत्रियों को भी संयुक्त राष्ट्र अपना Brand Ambassador बनाता है. वो भी तब जब ये लोग सिर्फ एक्टर हैं. ये लोग फिल्मों में Larger Than Life किरदार निभाते हैं और लोग इन्हें ही अपना असली नायक समझ लेते हैं. जबकि ये लोग सिर्फ एक्टिंग करते हैं. इसी आधार पर दुनिया की बड़ी बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी इन्हें अपना विशेष दूत नियुक्त करती है. जबकि असल में समाज के लिए इनका कोई विशेष योगदान नहीं होता.
इसी तरह दुनिया की बड़ी-बड़ी संस्थाएं ग्रेटा और मलाला जैसे लोगों के भी आगे पीछे घूमती है, उन्हें सम्मान देती है, पुरस्कार देती है. वहीं भारत के इन असाधारण लोगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. इसलिए अब समय आ गया है कि आप भारत के उन लोगों को सम्मान दें जो नए भारत के निर्माण में जुटे हुए हैं. आपने ऐसा नहीं किया तो एक दिन आपको खुद ही इस बात का मलाल होगा और आपको पश्चिमी देशों के इन डिजाइनर कार्यकर्ताओं की मानसिक गुलामी स्वीकार करनी पड़ेगी.
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