नई दिल्ली: वैश्विक नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों को अप्रत्यक्ष रूप से भारत में अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान के प्रयासों के बावजूद, वित्तीय ट्रेल्स और अन्य डिजिटल साक्ष्यों ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया है. एक ज्वलंत मामला खुर्रम परवेज से जुड़ा है, जिसने अपने संगठन जम्मू कश्मीर कोलिशन ऑफ सिविल सोसायटी (JKCCS) के माध्यम से करीब दो दशकों तक पाकिस्तानी गुर्गे के रूप में काम किया. उसने स्थानीय कश्मीरियों को आतंकवादियों के रूप में भर्ती करने और उन्हें वित्तपोषण करने में सहायता की.


एनआईए ने किया था गिरफ्तार


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आपत्तिजनक सबूतों के माध्यम से तलाशी लेने के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), जो भारत में आतंकवादी गतिविधियों की जांच के लिए जिम्मेदार एजेंसी है, ने खुर्रम परवेज को 22 नवंबर, 2021 को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के बाद उसके घर और श्रीनगर में जेकेसीसीएस (JKCCS) कार्यालय में दिन भर तलाशी ली गई. बरामदगी में भारत विरोधी प्रचार सामग्री, भारतीय सेना के बारे में विवरण, संवेदनशील स्थान, रणनीतिक संपत्ति, हिजबुल मुजाहिदीन (HM) सहित पाक स्थित आतंकवादी संगठनों के नेताओं के विजिटिंग कार्ड शामिल हैं.


परवेज के नापाक इरादों का खुलासा


बरामदगी में आगे खुलासा हुआ है कि परवेज ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के लिए भारतीय गुर्गों/ ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) की भर्ती में वर्षों तक मुख्य भूमिका निभाई. सेना प्रतिष्ठानों की जासूसी में इन गुर्गों (Operatives) की संलिप्तता, भारत में हमलों के लिए संभावित स्थानों की पहचान की भी एनआईए (NIA) द्वारा जांच की जा रही है. इनमें से कुछ गुर्गों को कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, बिहार और दिल्ली सहित भारत के विभिन्न राज्यों में और अधिक सहयोगियों को नियुक्त करने का काम सौंपा गया था.


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बड़े पैमाने पर एनजीओ का उपयोग


जांच ने कई तथाकथित गैर-सरकारी संगठनों (NGO)/ट्रस्टों के धर्मार्थ गतिविधियों के नाम पर भारत और विदेशों में धन जुटाने/प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग और जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इसका उपयोग करने का खुलासा किया है. जम्मू-कश्मीर में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता की आड़ में काम करते हुए, परवेज भोले-भाले कश्मीरी युवाओं का शिकार करता था और इन गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके उन्हें भारत विरोधी गतिविधियों में धकेलता था.


कई फ्रंट संगठन भी शामिल


कार्यप्रणाली में कई फ्रंट संगठन भी शामिल थे, जो ज्यादातर कानूनों का उल्लंघन कर रहे थे. जेकेसीसीएस (JKCCS) का भारत के एफसीआरए (विदेशी चैनल नियमन अधिनियम) के तहत कोई पंजीकरण नहीं पाया गया. नियामक निरीक्षण की कमी ने आतंकवादी गतिविधियों की सहायता के लिए विदेशों से धन तक पहुंचाने की सुविधा प्रदान की. जेकेसीसीएस के तहत कई फर्जी एनजीओ (NGO) खोले गए, जिनका इस्तेमाल विदेशी धन प्राप्त करने और काले धन के प्रबंधन के लिए अतिरिक्त रास्ते के रूप में किया गया. कश्मीरी महिला शांति और निरस्त्रीकरण के लिए पहल (KWIPD) नाम का ऐसा ही एक संगठन धरातल पर मौजूद ही नहीं था.


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आसिया जिलानी ट्रस्ट का इस्तेमाल


इसी तरह, आसिया जिलानी ट्रस्ट का इस्तेमाल ज्यादातर संदिग्ध धन को दान के रूप में प्राप्त करने के लिए किया जाता था. फर्जी छात्रवृत्ति के बहाने इन संस्थाओं के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियां जाहिर तौर पर की गईं. परवेज की पत्नी समीना ने भी कथित तौर पर अपने संगठन 'एक्शन एड इंटरनेशनल' के जरिए आतंकी धन के प्रबंधन में मदद की थी. जेकेसीसीएस के अन्य एजेंसियों के साथ डीलिंग में भी वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं. जेकेसीसीएस द्वारा वित्तीय अनियमितता को भांपते हुए, कई यूरोपीय फंडिंग संगठनों ने इसके साथ अपनी डीलिंग भी बंद कर दी थी.


भारत में अलगाववाद को बढ़ावा देने का प्लान


भारत में अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए बेहिसाब विदेशी धन के प्रबंधन के लिए परवेज द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक अन्य प्रभावी चैनल प्रकाशनों और मीडिया एजेंसियों के माध्यम से था, जिसमें द इंफॉर्मेटिव मिसेज, अनहर्ड वॉयस जैसी पत्रिकाएं, स्ट्रक्चर्स ऑफ वायलेंस जैसी रिपोर्ट और 'ए क्वेस्ट फॉर जस्टिस' नामक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म शामिल थी. परवेज की गिरफ्तारी के बाद से पाकिस्तानी एजेंसियां अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार एजेंसियों से संपर्क कर उसकी रिहाई की अपील कर रही हैं.


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परवेज के लिए पाकिस्तान का समर्थन


परवेज के लिए पाकिस्तान के समर्थन को समझा जा सकता है, क्योंकि वह पाकिस्तानी एजेंसियों के निर्देश पर भारत में अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा था. वह सुरक्षा बलों के साथ झड़पों में हुई अलगाववादियों और आतंकियों की मौत को भी अलग रूप देने का काम करता था. इसके अलावा वह निर्दोष कश्मीरी युवाओं को उग्रवाद में फंसाकर उनका भविष्य खराब करने के साथ ही भारत की शांति में भी बाधा डाल रहा था. यही वजह है कि अब पाकिस्तान उसकी रिहाई के लिए हाथ-पैर मार रहा है.


डिजिटल उपकरण हुए बरामद


छापे के दौरान डिजिटल उपकरणों से भारी मात्रा में एकत्र किए गए डेटा को देखते हुए, एनआईए की ओर से जांच पूरी होने में समय लगने की उम्मीद है. कई नए खुलासे से पता चलता है कि परवेज और उसके एनजीओ के लिए भारत के अंदर से मिले किसी भी संभावित समर्थन से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.



शांति में बन रहे बाधक


हालांकि, परवेज का मामला स्पष्ट रूप से गैर सरकारी संगठनों और मीडिया घरानों के कामकाज पर अधिक जांच की आवश्यकता को रेखांकित करता है, विशेष रूप से वे जो, एक व्यवहार्य राजस्व मॉडल की कमी के बावजूद फल-फूल रहे हैं. यह शायद जेकेसीसीएस जैसे गैर सरकारी संगठनों का अस्तित्व है, जो 'मानवाधिकारों' के मानवीय पहलू के तहत निर्दोष कश्मीरी युवाओं के दिमाग को खराब कर रहे हैं और जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति हासिल करना मुश्किल बना रहे हैं।


(इनपुट - आईएएनएस)


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