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Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर से हलक में आ गई थी जान, लेकिन शेखी बघार रहे थे मुनीर; जानिए शौर्य का एक और किस्सा

DGMO on Operation Sindoor: ले. जनरल राजीव घई ने कहा, ऑपरेशन सिंदूर में टारगेट का आखिरी चुनाव उन बड़ी संख्या में लक्ष्यों में से किया गया जिनकी हमने जांच की थी. जब यह सब हो रहा था, तब एक बहुत ही कॉर्डिनेटेड और एक्टिव इन्फॉर्मेशन वॉर भी चल रहा था.

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर से हलक में आ गई थी जान, लेकिन शेखी बघार रहे थे मुनीर; जानिए शौर्य का एक और किस्सा

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने किस तरह पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया, इसके बारे में पहली बार भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स यानी DGMO ने विस्तार से बताया. DGMO लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने शुरुआत कश्मीर में 90 के दशक में आतंकवाद की बढ़ती गतिविधि से की और पहलगाम अटैक के बाद फिर भारतीय सेना के जवाब और पाकिस्तान में मची खलबली के बारे में विस्तार से बताया. 

उन्होंने कहा, '80 के दशक के अंत में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या शुरू हुई. तब से, 28,000 से ज्यादा आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं. 90 के दशक से 1,00,000 से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जम्मू-कश्मीर से बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. 60,000 से ज्यादा परिवारों का पलायन हुआ है. 15,000 निर्दोष नागरिक और 3,000 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं. यह बिल्कुल साफ है कि यह सब कहाँ से शुरू हुआ है.

'रातोंरात नहीं हुआ ऑपरेशन सिंदूर'

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DGMO घई ने आगे कहा, 'ऐसा नहीं है कि ऑपरेशन सिंदूर रातोंरात हुआ हो. अगर आप 2001 में हमारी संसद पर हुए हमले को याद करें, तो हमें अपनी सीमाओं पर लामबंदी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. हम लगभग एक साल तक वहां रहे. फिर भी, एक समझदारी भरी सोच हावी रही, और हमने मामले को आगे नहीं बढ़ाया. 2016 में, हमारे कुछ सुरक्षाकर्मियों पर बर्बरतापूर्वक घात लगाकर हमला किया गया था, उनके कुछ तंबुओं में आग लगा दी गई थी, और फिर हमने एक ऐसी कार्रवाई की जो नियंत्रण रेखा के आसपास ही थी. 2019 में, हमने एलओसी के पार एक सटीक हमला किया और उसे वहीं तक सीमित रखा. लेकिन इस बार, जो घटनाएं हुईं, उनकी तीव्रता और व्यापकता बड़ी थी.' 

पहलगाम अटैक और सेना की तैयारियां

डीजीएमओ ने आगे कहा, '22 अप्रैल को, आतंकवाद पहलगाम में आ धमका. नियंत्रण रेखा के पार से प्रायोजित आतंकवादियों ने 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या कर दी. उनके धर्म समुदाय के बारे में पूछा और परिवारों और प्रियजनों के सामने उन्हें निर्ममता से गोली मार दी. हमले की जिम्मेदारी लेने के लिए तुरंत आतंकी दावेदार आगे आ गए क्योंकि उनके लिए यह 'गौरव' की बात थी. शुरुआत में कश्मीर प्रतिरोध मोर्चा ने हमले की ज़िम्मेदारी ली, तो उन्हें एहसास हुआ कि मामला शायद उनके नियंत्रण से बाहर हो गया है, और वे तुरंत पीछे हट गए. सभी जानते थे कि जवाबी कार्रवाई सोच के परे वाली होगी. लेकिन हमने अपना समय लिया.' 

DGMO राजीव घई ने आगे कहा, 'सेना प्रमुख पहले ही कह चुके थे कि सेना को आगे की कार्रवाइयों को अंजाम देने और उन पर अमल करने के लिए पूरी छूट थी. 22 अप्रैल से 6-7 मई की रात के बीच तैयारियां चल रही थीं. हम अपने टारगेट्स को तवज्जो दे रहे थे. हमने अपनी सीमाओं पर कुछ एहतियाती तैनातियां कीं कि दुश्मन को रोका जाए. कई इंटर सर्विस सरकारी विभाग और एजेंसियां आपस में कॉर्डिनेट कर रही थीं. टारगेट का आखिरी चुनाव उन बड़ी संख्या में लक्ष्यों में से किया गया जिनकी हमने जांच की थी. जब यह सब हो रहा था, तब एक बहुत ही कॉर्डिनेटेड और एक्टिव इन्फॉर्मेशन वॉर भी चल रहा था.

DGMO ने दिखाए सबूत

इसके बाद डीजीएमओ ने स्क्रीन पर पाकिस्तान में भारतीय सेना के एक्शन का सबूत भी पेश किया, जिसमें पड़ोसी मुल्क पर भारत की मार साफ नजर आ रही थी. लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने कहा, 'अगर हम मुरीदके की बात करें, तो यह लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी गढ़ है. यहां वायुसेना ने हमला किया और कुछ अहम ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया. 7 मई की सुबह-सुबह किए गए हमलों में 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए. इसके बाद उन्होंने बहावलपुर की तस्वीरें और वीडियो दिखाए. उन्होंने कहा, 'ये मैक्सार की पहले और बाद की तस्वीरें हैं; आप देख सकते हैं कि रॉकेट और मिसाइलें कहां से गुजरी हैं. इस सांठगांठ का बहुत ही खुला प्रदर्शन किया गया था, जिससे हमें भी हैरानी हुई कि सावधानी को ताक पर रख दिया गया था और तस्वीर सब कुछ बयां कर देती है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से बैन एक आतंकवादी, मारे गए लोगों और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख लोगों के लिए प्रार्थना सभा की अगुआई कर रहा था, जिसमें खुद चार कोर के जीओसी भी शामिल थे और कई अन्य अहम लोग भी उस दिन मौजूद थे.'

'पाकिस्तानी सेना दबाव में थी'

ले. जनरल घई ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना और उसके चीफ दबाव में थे, सभी जानते हैं. उन्हें न केवल अपनी बल्कि पाकिस्तानी सेना की छवि भी चमकानी थी. उनके लिए सबसे अच्छा और इकलौता तरीका यही था कि वे वही करें जो उन्होंने किया, चाहे वह कितना भी कायरतापूर्ण क्यों न रहा हो. भारत का एक्शन तो कंपसलरी था.' इसके बाद डीजीएमओ ने पाकिस्तान की जीत के दावे पर भी कटाक्ष किया. 

उन्होंने कहा, 'जीत का दावा करने में ज्यादा समय नहीं लगता, खासकर जब काइनेटिक कॉन्टैक्ट न हुआ हो, क्योंकि हम बहुत क्लियर थे कि हमें क्या चाहिए. हम आतंकवादियों के पीछे गए और उनका खात्मा करने के बाद हमारा इरादा इसे बढ़ाने का नहीं था, जब तक कि ऐसा करने के लिए मजबूर न किया जाए. आतंकवादी ठिकानों पर हमला होते ही पाकिस्तान ने तुरंत सीमा पार से गोलीबारी भी की, पाकिस्तानियों ने शायद अनजाने में पिछले महीने 14 अगस्त को अपने अवॉर्ड्स की लिस्ट जारी कर दी, और उनकी ओर से मरणोपरांत दिए गए पुरस्कारों की संख्या से अब हमें पता चलता है कि नियंत्रण रेखा पर उनके हताहतों की संख्या भी 100 से ज़्यादा थी. नियंत्रण रेखा पर कार्रवाई की गई और हम इसके लिए तैयार थे.'

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Rachit Kumar

नवभारत टाइम्स अखबार से शुरुआत फिर जनसत्ता डॉट कॉम, इंडिया न्यूज, आजतक, एबीपी न्यूज में काम करते हुए साढ़े 3 साल से ज़ी न्यूज़ में हैं. शिफ्ट देखने का लंबा अनुभव है.

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