Parliament Winter Session: अखिलेश यादव ने संविधान पर चर्चा के दौरान अपनी बात को खत्म करने से पहले एक कविता पढ़ी. हालांकि उन्होंने इस दौरान कविता की कुछ लाइने ही पढ़ी. तो आइए पढ़ते हैं पूरी कविता और जानते हैं इस कविता के लेखक के बारे में. इस कविता के लेखक हैं उदय प्रताप सिंह. उदय प्रताप सिंह न सिर्फ कवि थे बल्कि लोकसभा में मैनपुरी को प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं.


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यहां पढ़ें पूरी कविता


न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है।
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है।।


हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुंचने के।
मगर पहुंचे हुए ये कह गए भगवान सबका है।।


जो इसमें मिल गईं नदियां वे दिखलाई नहीं देतीं।
महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है।।


अनेकों रंग, ख़ुशबू, नस्ल के फल-फूल पौधे हैं।
मगर उपवन की इज्जत-आबरू ईमान सबका है।।


हक़ीक़त आदमी की और झटका एक धरती का।
जो लावारिस पड़ी है धूल में सामान सबका है।।


ज़रा से प्यार को खुशियों की हर झोली तरसती है।
मुकद्दर अपना-अपना है, मगर अरमान सबका है।।


उदय झूठी कहानी है सभी राजा और रानी की।
जिसे हम वक़्त कहते हैं वही सुल्तान सबका है।।


सांसद होते हुए भी उदय प्रताप सिंह का मिजाज बेहद फक्कड़ किस्म का रहा है. उनके समर्थक सहज और जमीन से जुड़े हुए नेता और कवि बताते हैं.


संविधान पर चर्चा के दौरान अखिलेश यादव ने मौजूदा सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर घेरने की कोशिश की. जब अखिलेश यादव बोल रहे थे उस दौरान उनके भाषण पर कई बार विपक्षी सांसदों ने जमकर मेज थपथपाएं.