संसदीय समितियों की रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
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संसदीय समितियों की रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने कहा कि अदालतें संसदीय समिति की रिपोर्ट पर न्यायिक संज्ञान ले सकती हैं, लेकिन उनकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. 

सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो...

नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि संसदीय समितियों की रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी जा सकती और ना ही उनकी वैधता पर अदालतों में सवाल उठाया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अदालतें कानून के अनुरूप विधिक व्याख्या के लिए संसदीय समिति की रिपोर्ट का संदर्भ दे सकती हैं. न्यायालय ने कहा कि अदालतें संसदीय समिति की रिपोर्ट पर न्यायिक संज्ञान ले सकती हैं, लेकिन उनकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. न्‍यायालय ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों के अधिकार अलग-अलग हैं और अदालत को विधायिका तथा न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना है.

उल्‍लेखनीय है कि इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के महाभियोग के मामले की स्थिति को 'विचित्र एवं अभूतपूर्व' बताया और कहा कि सीजेआई इस मामले में पक्षकार हैं और चार अन्य न्यायाधीशों की भी कुछ भूमिका हो सकती है. कांग्रेस के दो सांसदों ने पूछा कि अदालत को उन्हें बताना चाहिए कि उनकी याचिका से निपटने के लिए एक बड़ी पीठ गठित करने संबंधी प्रशासनिक आदेश की प्रति मांगने के मामले का उल्लेख कहां किया जाए.

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इस पर न्यायमूर्ति एके सीकरी की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, 'यह विचित्र एवं असाधारण स्थिति है, जहां सीजेआई पक्षकार हैं और चार अन्य न्यायाधीश की भी कुछ भूमिका हो सकती है. हमें नहीं पता.' 

पीठ शीर्ष अदालत के उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का जिक्र कर रही थी, जिन्होंने मामलों के आवंटन पर सवाल उठाते हुए सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ 12 जनवरी को प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी. सांसदों ने पीठ से कहा कि उन्हें उस प्रशासनिक आदेश की प्रति दी जाए, जिसके तहत उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया गया. सांसदों ने बाद में इस याचिका को वापस ले लिया था, जिसमें सीजेआई के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज करने के राज्यसभा सभापति के फैसले को चुनौती दी गई थी.

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