इस कोरोना वैक्सीन के लिए किया गया था सबसे बड़ा दावा, लेकिन है ये चुनौती
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इस कोरोना वैक्सीन के लिए किया गया था सबसे बड़ा दावा, लेकिन है ये चुनौती

वैक्सीन अमेरिका में तैयार हो भी गई तो भारत में कब तक पहुंचेगी? अमेरिका की सरकार ने फाइज़र वैक्सीन की 100 मिलियन डोज़ पहले से बुक कर रखी है. कंपनी का दावा है कि वैक्सीन अमेरिकी जनता को मुफ्त में लगाई जाएगी. 

अमेरिकी वैक्सीन का इंतजार पूरी दुनिया में हो रहा है....

नई दिल्ली : अमेरिकी कंपनी फाइजर और जर्मन कंपनी BioNTech मिलकर जिस वैक्सीन पर काम कर रहे हैं, उसके शुरुआती नतीजों ने दुनिया के लिए एक नई उम्मीद जगा दी है. फाइजर ने सोमवार को घोषणा की थी कि वैक्सीन ट्रायल के शुरुआती परिणामों से ये नतीजा सामने आया है कि उनकी वैक्सीन कोरोना (Covid-19) संक्रमण से बचाने में 90 प्रतिशत तक कारगर साबित हुई है. 

  1. mRNA तकनीकि से बनी पहली कोरोना वैक्सीन
  2. अमेरिकी सरकार की प्री बुकिंग से भारत में देरी!
  3. कनाडा, जापान के बाद आएगा भारत का नंबर?

हालांकि कंपनी ने साफ किया है कि वैक्सीन के एमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन के लिए वो नवंबर के आखिरी हफ्ते में आवेदन करेंगे. कंपनी के मुताबिक नवंबर के आखिरी हफ्ते तक वैक्सीन ट्रायल का फाइनल डेटा आ जाएगा. इसके बाद ही एमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन का आवेदन सही रहेगा. कंपनी ने कहा जिन वालंटियर में वैक्सीन लगाई जा रही है उनके सुरक्षित होने का सही डेटा आने पर कंपनी उसे बनाने की क्षमता को लेकर आश्वस्त हो जाएगी. 

USA समेत 5 देशों के 44 हजार वालंटियर पर ट्रायल 
हालांकि इन ट्रायल की स्वायत्त एक्सपर्टस ने समीक्षा कर ली है और उसी के आधार पर फाइज़र ने ये घोषणा की है. लेकिन कई विशेषज्ञ इसे जल्दबाजी बता रहे हैं. सही परिणामों के लिए पूरी तरह से डाटा एकत्रित करके नतीजे आने का इंतज़ार करना होगा. 

वैक्सीन और भारत में उपलब्धता - क्या है चुनौतियां?
अब आपके मन में ये सवाल जरुर होगा कि अगर कोरोना वैक्सीन अमेरिका में तैयार हो भी गई तो भारत में कब तक पहुंचेगी? अमेरिका की सरकार (USA Government) ने फाइज़र वैक्सीन की 100 मिलियन डोज़ पहले से बुक कर रखी है. कंपनी का दावा है कि वैक्सीन अमेरिकी जनता को मुफ्त में लगाई जाएगी. 

इसके अलावा कनाडा (Canada) और जापान (Japan) ने भी एडवांस ऑर्डर दिए हैं. ऐसे में भारत का नंबर जल्द आने की उम्मीद नहीं है. दूसरी चुनौती ये है कि फाइजर की वैक्‍सीन मेसेंजर आरएनए (mRNA) तकनीक पर आधारित है. इसे -70 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की जरुरत होती है. भारत में इस तापमान पर वैक्सीन संभाल कर रखना एक चुनौती है. अमेरिका जैसे हाइटेक देश में भी इतने कम तापमान की कोल्ड चेन मेंटेन करना एक चुनौती साबित हो रहा है. 

तीसरी चुनौती ये भी है कि फाइज़र ने ट्रायल के दौरान वालंटियर का डाटा सार्वजनिक नहीं किया. वहीं साइड इफेक्ट होने और वैक्सीन के असर की जानकारी भी विस्तार से साझा नहीं की. फाइजर ने अभी तक ये भी साफ नहीं किया है कि वैक्सीन आखिर कितने दिनों तक कारगर रहेगी. 

इसी बीच अमेरिका की ही एक और दवा कंपनी, मॉडर्ना ने भी mRNA तकनीक पर कोविड वैक्‍सीन बनाई है. मॉडर्ना भी इसी महीने के अंत तक अपनी वैक्सीन के इस्तेमाल के लिए अमेरिकी की एफडीए से मजूरी लेने की उम्मीद जताई है. 

क्या है एमआरएनए तकनीक?
इस तकनीक से बनी वैक्सीन शरीर की कोशिकाओं में ऐसे प्रोटीन बनाती हैं जो वायरस के प्रोटीन की नकल कर सकें. संक्रमण होने पर उसे बाहरी आक्रमण समझकर इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है और बाहरी वायरस को नष्ट कर देती है. इस तकनीक में समय और लागत दोनों ही बचते हैं. इस तकनीक से पहले कोई वैक्सीन नहीं बनाई गई है. 

(इनपुट रॉयटर्स के साथ)

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