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पहली पसंद होने के बावजूद देश के पहले पीएम नहीं बन पाए सरदार पटेल, जानिए कारण

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की आज (31 अक्टूबर) 145वीं जयंती है. पूरा देश उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day) के रूप में मना रहा है.

इतिहास में जानबूझकर पटेल को नहीं दी गई जगह

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इतिहास में जानबूझकर पटेल को नहीं दी गई जगह

सरदार पटेल कांग्रेस सरकारों में उतनी चर्चा में कभी नहीं आए, जितना कि मोदी सरकार में आ चुके हैं. आपने किताबों में इससे पहले उन्हें बस लौह पुरुष के नाम से ही पढ़ा था. लेकिन जब पढ़ते थे कि वो तो देश के पहले उप प्रधानमंत्री और  गृहमंत्री थे तो प्रधानमंत्री नेहरू का कद उनसे बड़ा ही लगता था. लेकिन धीरे धीरे इतिहास के पन्नों पर छाई धूल हटती  चली गई और तमाम ऐतिहासिक जानकारियां सामने आईं और जिनके चलते आज लोगों के दिलों में उनका कद स्टेच्यू ऑफ यूनिटी जैसा ही कद्दावर हो गया है.

जब नेहरूजी के उम्मीदवार को सरदार पटेल के उम्मीदवार ने दे दी थी मात

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जब नेहरूजी के उम्मीदवार को सरदार पटेल के उम्मीदवार ने दे दी थी मात

बहुत लोग ये तो जानते हैं कि किस तरह 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस के सामने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गांधीजी ने अपना उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया उतार दिया, फिर जब वो भी हार गए तो गांधीजी ने कहा था कि ये मेरी हार है. ऐसा ही वाकया नेहरू और पटेल के साथ भी हुआ है. जब एक उम्मीदवार को पटेल ने समर्थन दिया और एक को नेहरू ने, सरदार पटेल का उम्मीदवार जीत गया और नेहरूजी का हार गया और नेहरूजी ने इस्तीफे धमकी तक दे डाली. ये महाशय थे पुरुषोत्तम टंडन, जिन्हें राजर्षि टंडन भी कहा जाता है.

पटेल ने पुरुषोत्तम दास टंडन के सिर पर रखा हाथ

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पटेल ने पुरुषोत्तम दास टंडन के सिर पर रखा हाथ

अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनावों के इतिहास में उनकी तुलना  हमेशा सुभाष चंद्र बोस से की जाती है. इसी तरह आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पंडित नेहरू ने  भी पुरुषोत्तम दास टंडन के विरोध में आचार्य जे बी कृपलानी को  समर्थन दियाया, लेकिन वो भी कृपलानी को जिता नहीं पाए. दिलचस्प बात ये है कि पुरुषोत्तम दास टंडन भी नेहरू की तरह इलाहाबादी ही थे और वकील भी. वे तेज बहादुर सप्रू के जूनियर थे और स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के लिए नौकरी छोड़ दी. वे कई बार जेल गए, किसान सभा से जुड़े रहे. यूपी असेंबली के 13 साल तक स्पीकर रहे. वे संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए. उन्होंने 1950 के कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में किस्मत आजमाई, तो सरदार पटेल ने भी उनके ऊपर हाथ रख दिया. नेहरू की तरफ से रफी अहमद किदवई, के डी मालवीय और मृदुला साराभाई खुलकर अभियान चला रहे थे. लेकिन पटेल उनकी जीत के लिए इतने आश्वस्त थे कि उन्हें चुनावी अभियान की जरुरत ही महसूस नहीं हुई.

पंडित नेहरू ने पुरुषोत्तम दास टंडन को अध्यक्ष पद से हटने को मजबूर कर दिया

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पंडित नेहरू ने पुरुषोत्तम दास टंडन को अध्यक्ष पद से हटने को मजबूर कर दिया

लेकिन पंडित नेहरू के खेमे का सपोर्ट जेबी कृपलानी के साथ था, जो 1947 में भी कांग्रेस प्रेसीडेंट रह चुके थे. नेहरू उस वक्त पीएम थे. उनको लगता था कि उनका उम्मीदवार जीत जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उनको कृपलानी की हार से वही सदमा लगा जो कभी बोस की जीत से गांधीजी को लगा था. नेहरू ने टंडन की अगुवाई वाली समिति में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. नेहरूजी ने इस्तीफे की भी धमकी दी. उनका मानना था कि टंडन इलाहाबाद के म्युनिसिपेलिटी चुनाव में मुसलमानों का भरोसा नहीं जीत पाए थे. लेकिन बदकिस्मती देखिए, उसी साल सरदार पटेल की मौत हो गई. जिसके चलते पुरुषोत्तम दास टंडन के लिए मुश्किलें पैदा हो गईं.  अब सरकार की कमान नेहरू के हाथ में और पार्टी की कमान पुरुषोत्तम दास टंडन के हाथ में, चुनाव जीतने के लिए नेहरूजी की ही जरूरत थी, छोटे मोटे कई विवाद हुए और नेहरूजी ने अब साफ कर दिया कि या तो टंडन को या उनको एक को अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा. पटेल की मौत के बाद टंडन पहले ही कमजोर हो चुके थे. उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा और अगले दो साल फिर जवाहर लाल नेहरू ही पीएम और कांग्रेस अध्यक्ष के दोनों पदों पर काबिज रहे. 

कांग्रेस में 6 साल तक अध्यक्ष रहे अबुल कलाम आजाद

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कांग्रेस में 6 साल तक अध्यक्ष रहे अबुल कलाम आजाद

अक्सर आपने वो विवाद सुना होगा कि कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री  पंडित नेहरू नहीं बल्कि सरदार पटेल चुने गए थे. लेकिन गांधीजी ने सरदार पटेल को अपना नाम वापस लेने को कह दिया और देश के पीएम पंडित नेहरू बन गए. आज आप इस विवाद की सच्चाई जानेंगे. 1940 के रामगढ़ अधिवेशन के बाद कांग्रेस में 6 साल तक कोई कांग्रेस अधिवेशन भी नहीं हुआ और न ही कोई कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव ही हुआ. ऐसे में मौलाना अबुल कलाम आजाद जो रामगढ़ अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए थे. वही अगले 6 साल तक अध्यक्ष बने रहे. चुनाव इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि दूसरा विश्व युद्ध चरम पर पहुंच चुका था, फिर 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया. कांग्रेस के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए और लम्बे वक्त तक जेल में डाल दिए गए. ऐसे में अबुल कलाम आजाद के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी थी और किसी भी खेमे को उनके अध्यक्ष होने से कोई मुश्किल भी न थी.

 

वर्ष 1946 में देश की आजादी की हलचल शुरू हुई

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 वर्ष 1946 में देश की आजादी की हलचल शुरू हुई

वर्ष1946 का साल अचानक से काफी अहम हो गया. प्रत्येक व्यक्ति को लगने लगा था कि जल्द ही देश को आजादी मिलने वाली है. कांग्रेस नेताओं को ये लगने लगा था कि कैबिनेट मिशन के बाद अब एक कार्यवाहक या केयर टेकर सरकार बनाई जाएगी, जिसका मुखिया ही बाद में देश का प्रधानमंत्री भी होगा. सरकार बनाने का निमंत्रण वायसराय की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष को ही जाएगा. ऐसे में सब कुछ कांग्रेस अध्यक्ष को ही तय करना होगा कि वह या तो खुद इस सरकार का मुखिया बने या किसी ओर को बनाए. इससे कांग्रेस में हलचल शुरू हुई.

किसी भी प्रदेश कमेटी ने नेहरू को पीएम बनाने का समर्थन नहीं किया

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किसी भी प्रदेश कमेटी ने नेहरू को पीएम बनाने का समर्थन नहीं किया

ऐसे में मौलाना आजाद को लगने लगा था कि चूंकि वो 6 सालों से अध्यक्ष हैं, तो उनको भी ये जिम्मेदारी दी जा सकती है. जिससे उनके आगे जाकर देश के पहले पीएम बनने का रास्ता खुल जाएगा. लेकिन गांधीजी ने इसे समय रहते भांप लिया और उनको समझा दिया. किसी के दिल में कुछ भी था लेकिन देश भर में पार्टी कार्यकर्ता केवल एक चेहरे को देश के मुखिया के तौर पर देखना चाहते थे और वो थे सरदार बल्लभ भाई पटेल. सभी पटेल को एक बड़ा नेता और संगठनकर्ता मानते थे. चूंकि प्रदेश कार्यसमितियों को ही अध्यक्ष पद के लिए नामांकित करने का अधिकार था, उस वक्त रहीं 15 कार्यसमितियों में से 12 ने सरदार पटेल के नाम का नामांकन भेजा और तीन कार्यसमितियों ने किसी का नामांकन भेजा ही नहीं, एक तरह से ये NOTA जैसा मामला था.

गांधी जी ने नेहरू के फेवर में जेबी कृपलानी को तैयार किया

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गांधी जी ने नेहरू के फेवर में जेबी कृपलानी को तैयार किया

ऐसे में पंडित नेहरू के नाम का प्रस्ताव किसी भी प्रदेश कार्यसमिति ने नहीं भेजा था. गांधीजी और पंडित नेहरू के लिए ये काफी मुश्किल भरी बात थी. तब गांधीजी ने जे बी कृपलानी को इस मिशन में लगाया, उन्होंने केन्द्रीय कार्यसमिति यानी एआईसीसी के कुछ सदस्यों को पंडित नेहरू के नामांकन के लिए तैयार कर लिया. बाद में उन्हें इसका लाभ भी मिला. जब नेहरू अंतरिम सरकार के मुखिया बन गए तो 23-24 नवम्बर 1946 को मेरठ में जो अधिवेशन हुआ, उसमें कांग्रेस अध्य़क्ष जेबी कृपलानी को ही बनाया गया.

 

चुनकर आए सरदार पटेल और पीएम बन गए पंडित नेहरू

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चुनकर आए सरदार पटेल और पीएम बन गए पंडित नेहरू

नेहरू को एक भी प्रदेश कमेटी से नामांकन ना मिलना गांधीजी के लिए बड़ी चुनौती थी. ऐसे में उनके सामने एक ही रास्ता था कि वो सरदार पटेल को अपना नाम वापस लेने के लिए मनाएं. उन्होंने वही किया भी, पटेल को समझा दिया कि वो नेहरू को ही भविष्य में प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं, इसलिए आप अपना नाम वापस ले लीजिए. गांधीजी की बात को पटेल कभी टालते नहीं थे. इस बार भी नहीं किया. गांधीजी ने एक तरह से पंडित नेहरु के नाम पर सारी प्रक्रिया को ही वीटो कर दिया था.  जबकि पटेल को पता था कि नेहरू केवल 55 साल के हैं, उनको दोबारा मौका मिल भी सकता था, लेकिन पटेल 71 साल के होने के चलते शायद दोबारा पीएम बनने का ये मौका नहीं पाते. लेकिन गांधीजी की जिद के आगे किसी की नहीं चली.

 

सरदार पटेल का ‘ऑपरेशन पोलो’

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सरदार पटेल का ‘ऑपरेशन पोलो’

ऑपरेशन पोलो का जिक्र किए बिना सरदार पटेल की सारी उपलब्धियां अधूरी हैं. अगर वो ऑपरेशन सरदार पटेल शुरू ना करते तो भारत के बीचोंबीच एक दूसरा देश होता, जिसका क्षेत्रफल होता 2 लाख 39 हजार 314 वर्ग किलोमीटर. यानी दिल्ली समेत आखिरी के 10 राज्य जोड़ दिए जाएं तो भी उनका क्षेत्रफल उस वक्त की हैदराबाद स्टेट के बराबर नहीं था, जिसके लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू किया गया था, ये सभी राज्य हैं दिल्ली, गोवा, सिक्किम, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय, केरल और हरियाणा. यानी यूपी के लगभग बराबर होता इसका क्षेत्रफल.

 

हैदाराबाद के निजाम ने खुद की सेना और एयरलाइंस तैयार कर ली थी

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हैदाराबाद के निजाम ने खुद की सेना और एयरलाइंस तैयार कर ली थी

हैदराबाद राज्य कभी निजाम ने बसाया था, जो तुर्क मुसलमान था. वह जो मुगल शासकों के अधीन दक्षिण की जिम्मेदारी संभालता था. लेकिन बाद के मुगल कमजोर पड़ते गए और आखिरकार निजाम को सेनापति के रोल में आना पड़ा. लेकिन वो अंदरखाने मुगलों के बजाय खुद को मजबूत करने में लगा रहा. वर्ष 1720 में निजाम कमरुद्दीन खान ने अलग हैदराबाद राज्य का ऐलान कर दिया, अविभाजित आंध्र प्रदेश समेत कर्नाटक और महाराष्ट के कुछ हिस्से भी उसमें आते थे. निजाम के हिस्से में काकतीय राजाओं की गोलकुंडा की हीरे की खानें भी आ गई थीं, नतीजा ये हुआ कि एक दिन वो आया जब हैदराबाद राज्य भारत की सबसे अमीर स्टेट था और उसका निजाम दुनिया  का सबसे अमीर आदमी, टाइम मैगजीन तक ने उसके बारे में लिखा. हैदराबाद राज्य ने अपनी रेलवे लाइन, एयरलाइंस, रेडियो स्टेशन आदि सब कुछ तैयार कर लिया था.

 

पाकिस्तान के साथ मिलकर साजिश कर रहा था निजाम

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पाकिस्तान के साथ मिलकर साजिश कर रहा था निजाम

निजाम आसफ अली जाह द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ संधि पर हस्ताक्षर कर दिए. जब भारत की आजादी की योजना पर विचार हो रहा था, तो कश्मीर और जूनागढ़ की तरह हैदराबाद भी आजाद मुल्क बनने के मूड में था. भारत ने हैदराबाद से भी उस वक्त स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट कर लिया. हालांकि वहां 85 फीसदी हिंदू थे, लेकिन प्रशासन में 90 फीसदी मुसलमान थे. इधर एक साल के लिए स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट के बावजूद सरदार पटेल को निजाम उस्मान अली पर भरोसा नहीं था. उन्होंने एक सीक्रेट इन्वेस्टीगेशन टीम को निजाम के मन की थाह लेने के काम पर लगाया तो पता चला कि निजाम पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है, उनके कराची पोर्ट को इस्तेमाल करने का एग्रीमेंट करने जा रहा और पाकिस्तान को बिना ब्याज के बीस करोड़ का कर्ज देने वाला है और पाकिस्तान उस पैसे को भारत के साथ कश्मीर की जंग में इस्तेमाल करने वाला था ताकि उससे हथियार खरीद सके.

निजाम ने भारत से टक्कर लेने के लिए मुस्लिम रजाकारों का संगठन MIM बनाया

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निजाम ने भारत से टक्कर लेने के लिए मुस्लिम रजाकारों का संगठन MIM बनाया

पटेल ने फौरन एक्शन लिया और निजाम को एग्रीमेंट की याद दिलाई, जो नवम्बर तक लागू था. निजाम ने पैसे की मदद तो पाकिस्तान को रोक दी, लेकिन एक नए तरीके से जंग छेड़ दी. आज जिसे आज असदुद्दीन ओवैसी संगठन AIMIM के तौर पर जानते हैं, वो संगठन कभी मजलिस ए इत्तिहादुल मसलिमीन यानी MIM के नाम से शुरू हुआ था. ये उन मुस्लिमों का संगठन था. जो हैदराबाद को खलीफा के राज्य के तौर पर देखना चाहते थे. इस संगठन के सिपाहियों को रजाकार  कहा जाता था. उस वक्त इस संगठन का मुखिया था कासिम रिजवी. रिजवी ने दो लाख ऐसे रजाकारों को सैन्य ट्रेनिंग देनी शुरू की, जो हैदराबाद रियासत के लिए अपनी जान दे सकें. इधर राज्य के हिंदू ये सोचकर परेशान होने लगे कि हैदराबाद भारत में नहीं मिला तो उनका भविष्य क्या होगा.

 

रजाकारों ने हिंदुओं पर ढाया कहर, महिलाओं के साथ हुए रेप

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रजाकारों ने हिंदुओं पर ढाया कहर, महिलाओं के साथ हुए रेप

अब हिदुओं के खिलाफ हिंसा होने लगी, पूरे हैदराबाद राज्य में हिंदू आतंक के साए में जीने लगे, जुलाई अगस्त के महीने में  ही 909 रेप और 347 मर्डर के साथ अनगिनत लूट और दंगे की वारदातें हुईं तो पटेल रुक नहीं पाए. उन्होंने सितम्बर के पहले हफ्ते में इंडियन आर्मी के आला अफसरों के साथ मीटिंग रखी. जबकि नेहरू पुलिस एक्शन के खिलाफ थे. पटेल  की बेटी मनिबेन ने अपनी किताब में लिखा है कि पटेल ने नेहरू की राय को दरकिनार करते हुए एक्शन लेने का मूड बना  लिया और आर्मी को हरी झंडी दिखा दी.

पटेल के आदेश पर भारतीय सेना ने हैदराबाद को आजाद कराया

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पटेल के आदेश पर भारतीय सेना ने हैदराबाद को आजाद कराया

मेजर जनरल चौधरी की अगुवाई में 36000 भारतीय सैनिक 13 सितम्बर की सुबह से ही हैदराबाद की सड़कों पर थे, रजाकारों को तिनके की तरह बिखेर दिया गया. 100 घंटे के अंदर निजाम की सेना और रजाकार हार मान चुके थे. 17 सितम्बर को तो निजाम ने रेडियो पर अपनी हार का ऐलान कर दिया.  MIM के चीफ रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया और निजाम ने सरेंडर कर दिया. रिजवी को उम्रकैद की सजा दी गई, लेकिन एक राहत भी दी गई कि अगर वो पाकिस्तान चला जाए तो उसकी सजा कम भी हो सकती है. 9 साल बाद 1857 में वो पाकिस्तान चला गया, लेकिन जाने से पहले एक बार हैदराबाद आया और अब्दुल वाहिद ओवैसी को एमआईएम की जिम्मेदारी सौंप गया. ओवैसी ने उसमें ऑल इंडिया शब्द जोडकर AIMIM बना दिया. आज भी पार्टी वही ओवैसी परिवार चला रहा है.

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