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Kalka–Shimla Railway: क्या आपने देखी हैं बर्फ से नहाई इन जगहों की ये तस्वीरें? पीएम मोदी ने भी की पोस्ट

वर्ल्ड हैरिटेज में शामिल कालका-शिमला रेलवे रूट (Kalka-Shimla Railway Route) इन दिनों चांदी की तरह चमक रही सफेद बर्फ से गुलजार है. पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने फेसबुक अकाउंट से बर्फ की चादर से गुजरती हुई टॉय ट्रेन की शानदार तस्वीरें पोस्ट की हैं.   

करीब 96 किलोमीटर लंबा है रूट

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करीब 96 किलोमीटर लंबा है रूट

कालका से शिमला तक जाने वाला यह रूट (Kalka-Shimla Railway Route) करीब 96 किलोमीटर लंबा है. इस रूट पर 18 स्टेशन आते हैं. अंग्रेजों ने इस रूट को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला तक साजो-सामान पहुंचाने के लिए तैयार किया था. अब यह रेलवे रूट 118 सालों का हो चुका है. 

रास्ते में आती हैं 103 सुरंगें

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रास्ते में आती हैं 103 सुरंगें

कालका स्टेशन की समुद्र तल से ऊंचाई 656 (मीटर) है. वहां से यह ट्रेन पहाड़ी रास्तों से होते हुए शिमला जाती है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 2,076 मीटर है. इस रूट पर 869 छोटे-बड़े पुल और 919 घुमाव आते हैं. कई तीखे मोड़ों पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है. इस रूट पर 103 सुरंगें भी आती हैं, जो इस रूट पर सफर को बेहद रोमांचक बना देती हैं. इनमें से बड़ोग सुरंग सबसे लंबी है. इसकी लंबाई 1143.61 मीटर है. सुरंग क्रॉस करने में टॉय ट्रेन ढाई मिनट का समय लेती है.

नेरो गेज पर चलती है टॉय ट्रेन

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नेरो गेज पर चलती है टॉय ट्रेन

कालका-शिमला रेलमार्ग नेरोगेज लाइन है. इसमें पटरी की चौड़ाई दो फीट छह इंच है. इसी रूट पर कनोह रेलवे स्टेशन पर बना ऐतिहासिक आर्च गैलरी पुल भी है. यह पुल 1898 में बना था. इस चार मंजिला पुल में 34 मेहराबें हैं. जब टॉय ट्रेन इस पुल से गुजरती है तो उसका रोमांच कुछ और ही होता है. 

यूनेस्को दे चुका वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा

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यूनेस्को दे चुका वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा

इस ट्रेन के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने वर्ष 2007 में इस ट्रेन को राज्य का गौरव करार दिया था. इसके अगले साल यानी 2008 में यूनेस्को की टीम इस रेलवे रूट को देखने पहुंची और फिर इसे वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दे दिया. यह दर्जा भारत में केवल तीन रुटों को दिया गया है. बाकी 2 अन्य रूट दार्जिलिंग और नीलगिरी हिल्स में चलने वाली टॉय ट्रेन हैं. 

पटरी बिछाने में बाबा भलकू का योगदान

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पटरी बिछाने में बाबा भलकू का योगदान

इस रेलवे ट्रैक को पूरा कराने में एक स्थानीय ग्रामीण बाबा भलकू का बड़ा योगदान था. वे अनपढ़ थे लेकिन बिना किसी आधुनिक उपकरणों के महज एक छड़ी से एक अंग्रेज इंजीनियर को सुरंग मिलाने की राह दिखा दी थी. अंग्रेजों ने उन्हें पुरस्कार भी दिए थे. बाबा भलूक के नाम पर एक संग्रहालय भी बनाया गया. 

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