पैराट्रूपर सैनिकों के वीरगाथा की ये कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
उल्लेखनीय है कि 1 अप्रैल को सबसे पहले लाइन ऑफ कंटोल (LOC) के पास बर्फ पर कुछ पैरों के निशान मिले थे. जिसके बाद घुसपैठियों की पकड़ने के लिए सेना ने तलाशी अभियान शुरू किया था. ये वो समय था जब पिछले दो दिन से लगातार बर्फबारी हो रही थी और पूरा इलाका तीखी ढलानों वाली पहाड़ियों से घिरा हुआ था.
सर्च अभियान के दौरान 1 अप्रैल दोपहर को करीब 1 बजे सेना को पांच बैग मिले, जिससे ये तय हो गया कि एक बड़ा ग्रुप भारतीय सीमा में दाखिल हो गया है. जिसके बाद तलाशी अभियान में ज्यादा सैनिक शामिल हो गए. 2 अप्रैल की शाम करीब 4.30 बजे आतंकवादियों के होने का एक और सुराग मिला. लेकिन सेना के पहुंचने से पहले ही आतंकवादी वहां से फरार होने में कामयाब हो गए.
अगले दिन 3 अप्रैल को सेना का दो बार आतंकवादियों से सामना हुआ लेकिन दोनों बार वो वहां ये निकल भागे. जिसके बाद 4 अप्रैल को सेना ने ड्रोन का इस्तेमाल कर आतंकवादियों का पता लगाया और ड्रोन से मिले विजुअल्स के आधार पर पैरा स्पेशल फोर्सेज यानी पैराशूट रेजिमेंट के जवानों को हेलीकॉप्टर से आतंकवादियों के पीछे लगा दिया गया.
5 अप्रैल की सुबह पैरों के निशानों का पीछा करते हुए पैरा एसएफ की टीम आतंकवादियों के पास पहुंच गई. लेकिन उन्हें ये अहसास नहीं था कि जिस पहाड़ के सहारे वो आतंकवादियों के पास पहुंच रहे हैं उसकी बर्फ टूट रही है. जिस वजह से तीन पैराट्रूपर्स सीधा नीचे आराम करते आतंकवादियों के सामने गिर गए. जिसके बाद वहां फायरिंग शुरू हो गई.
बहुत पास से हुई फायरिंग में तीन आतंकवादी मारे गए. बचे हुए दो पैराट्रूपर्स ने जब अपने साथियों को खतरे में देखा तो वो भी पहाड़ से नीचे कूद पड़े. लगभग प्वाइंट ब्लैंक रेंज में हुई गोलाबारी में पांचों आतंकवादी मारे गए लेकिन पांचों पैरा स्पेशल फोर्स के पांचों जांबाज भी वीरगति को प्राप्त हुए.
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