नई दिल्ली: पीएम मोदी (PM Modi) ने आज मन की बात कार्यक्रम के जरिए देश को संबोधित किया. इस दौरान पीएम ने पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी नरसिम्हा राव को याद किया. 


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पीएम ने कहा, 'आज 28 जून को भारत अपने एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दे रहा है, जिन्होंने एक नाजुक दौर में देश का नेतृत्व किया. हमारे, ये, पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी नरसिम्हा राव का आज जन्म-शताब्दी वर्ष की शुरुआत का दिन है.'


पीएम ने कहा, 'नरसिम्हा राव अपनी किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे. छोटी उम्र से ही नरसिम्हा राव अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में आगे थे. अपनी आवाज बुलंद करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते थे.'


पीएम ने कहा, 'मेरा आग्रह है, कि नरसिम्हा राव के जन्म-शताब्दी वर्ष में, आप सभी लोग, उनके जीवन और विचारों के बारे में, ज्यादा-से-ज्यादा जानने का प्रयास करें. मैं, एक बार फिर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.'


उन्होंने कहा, 'वे, एक ओर भारतीय मूल्यों में रचे-बसे थे, तो दूसरी ओर, उन्हें पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का भी ज्ञान था. वे, भारत के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे.'


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी पूर्व पीएम नरसिम्हा राव की जयंती पर श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा, 'भारत की प्रगति में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.'



वहीं कांग्रेस के नेताओं और खासतौर पर वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की ओर से पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को कोई श्रद्धांजलि नहीं दी गई, जबकि राव कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. यह बात काफी चर्चा में रही.


बता दें कि  नरसिम्हा राव को 'Father of Indian Economic Reforms,' यानी 'भारत के आर्थिक सुधारों का जनक' कहा जाता है. वह 17 भाषाएं बोल सकते थे. इनमें 9 भारतीय भाषाएं थीं और 8 विदेशी भाषाएं थीं. नरसिम्हा राव से पहले चंद्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री थे. चंद्रशेखर के कार्यकाल में भारत दिवालिया होने की कगार पर खड़ा था. अपने कर्ज चुकाने के लिए भारत को अपना सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था. ये भारत के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति थी. भारत की अर्थव्यवस्था को इस खराब दौर से बाहर निकालने का श्रेय नरसिम्हा राव को जाता है.


भारत की विदेश नीति को विस्तार देने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान था. आज हम भारत की विदेश नीति का जो विस्तार देख रहे हैं, उसकी शुरुआत नरसिम्हा राव ने ही की थी. कुल मिलाकर हम ये कह सकते हैं कि नरसिम्हा राव भारत के बहुत दूरदर्शी प्रधानमंत्री थे.


लेकिन ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नरसिम्हा राव को वो सम्मान कभी नहीं मिला जिसके वो हकदार थे. नरसिम्हा राव की पार्टी, कांग्रेस और और गांधी परिवार की तरफ से भी उन्हें कभी, कोई सम्मान नहीं दिया गया.


आज 28 जून है. नरसिम्हा राव का जन्म आज से 98 वर्ष पहले 1921 को तेलंगाना के वारंगल जिले में हुआ था . अंग्रेजों के जमाने में ये जगह, हैदराबाद स्टेट में थी. 


लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि आज भी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने नरसिम्हा राव को याद करते हुए कोई ट्वीट नहीं किया. कांग्रेस ने नरसिम्हा राव के लिए किसी श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया. आज कांग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सिर्फ एक ट्वीट करके सिर्फ रस्म अदायगी की है . 


नरसिम्हा राव का निधन 23 दिसंबर 2004 को दिल्ली में हुआ था. उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी. मनमोहन सिंह पीएम थे. उस समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सुपर पीएम कहा जाता था. लेकिन, दिल्ली में नरसिम्हा राव के अंतिम संस्कार के लिए दो गज जमीन भी नहीं दी गई. इतना ही नहीं नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस के मुख्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया. भारत के इतने योग्य प्रधानमंत्री का इस तरह का अपमान शायद कभी नहीं हुआ होगा.


यही वजह है कि नरसिम्हा राव का परिवार अब ये मांग कर रहा है कि इस अन्याय और अपमान के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए. 


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आपने देखा होगा अक्सर हमारे देश के विद्वान आर्थिक उदारीकरण के लिए नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह को क्रेडिट देते हैं. लेकिन ये विद्वान कभी भी नरसिम्हा राव का नाम नहीं लेते हैं. जिन्होंने मनमोहन सिंह की प्रतिभा को पहचाना और उनको वित्त मंत्री बनाया. नरसिम्हा राव के साथ ये अन्याय इसलिए किया गया क्योंकि वो गांधी परिवार के चहेते नहीं थे. क्योंकि गांधी परिवार ये नहीं चाहता था कि कांग्रेस पार्टी में गांधी खानदान के अलावा किसी और नेता का गुणगान हो. 


राजनीतिक मामलों के लेखक विनय सीतापति ने नरसिम्हा राव पर एक किताब लिखी है Half-Lion: How P.V. Narasimha Rao Transformed India. इस किताब में उन्होंने बताया कि सुबह 11 बजे AIIMS में नरसिम्हा राव का निधन हुआ. जिसके बाद राव के पार्थिव शरीर को उनके सरकारी आवास 9, मोतीलाल नेहरू मार्ग लाया गया. कांग्रेस के एक नेता आए और उन्होंने नरसिम्हा राव के छोटे बेटे प्रभाकर से कहा कि नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाना चाहिए . हालांकि नरसिम्हा राव के परिवार वालों का तर्क था कि दिल्ली नरसिम्हा राव की कर्मभूमि थी . इसलिए अंतिम संस्कार दिल्ली में ही किया जाना चाहिए .


इसके बाद सोनिया गांधी के करीबी गुलाम नबी आजाद ने भी परिवार वालों को हैदराबाद जाने की सलाह दी. शाम करीब सात बजे, सोनिया गांधी के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी भी नरसिम्हा राव के सरकारी आवास पर गए. परिवार वालों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी अपनी वही मांग दोहराई . इसके बाद आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री Y S राजशेखर रेड्डी ने नरसिम्हा राव के परिवार वालों को मनाना शुरू किया.


कांग्रेस के बड़े नेताओं के दबाव के बाद परिवारवालों ने हैदराबाद जाना स्वीकार कर लिया.  24 दिसंबर 2004 को यानी उनकी मृत्यु के अगले दिन नरसिम्हा राव के अंतिम दर्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता आए. इसके बाद सुबह 10 बजे राव के पार्थिव शरीर को गाड़ी में रखा गया. एयरपोर्ट जाते हुए उनके पार्थिव शरीर को 24 अकबर रोड यानी कांग्रेस दफ्तर में ले जाने की योजना थी. 


लेकिन जब उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के सामने ले जाया गया तो वहां गेट बंद था . उनके पार्थिव शरीर को अंदर नहीं ले जाया गया. कांग्रेस दफ्तर के सामने ही एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था . सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस के कई बड़े नेता वहां मौजूद थे . लेकिन दुख की बात है कि ये श्रद्धांजलि समारोह कांग्रेस दफ्तर के बाहर चल रहा था . 


नरसिम्हा राव के जीवन पर आधारित किताब Half-Lion में ये भी लिखा गया है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों के पार्थिव शरीर को पार्टी दफ्तर में रखने की परंपरा थी. ताकि कार्यकर्ता उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें. लेकिन नरसिम्हा राव के मामले में ये नहीं किया गया. एक कांग्रेस नेता ने साफ कहा था कि कांग्रेस के दफ्तर का गेट खोलने का आदेश सिर्फ सोनिया गांधी ही दे सकती थीं. और उन्होंने आदेश नहीं दिया था. नरसिम्हा राव के निधन से कुछ वर्ष पहले माधवराव सिंधिया का निधन हुआ था. और उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के अंदर लाया गया था.


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