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श्रीनगर में पुलिस ने जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत के ठिकानों पर मारा छापा, जानें क्या-क्या मिला?

Srinagar Police Conduct Raids: श्रीनगर पुलिस ने आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी की है. यूएपीए के तहत चले इस अभियान में प्रतिबंधित साहित्य, तस्वीरें और अन्य सामग्री जब्त की गई हैं. जानें पूरी खबर.

 

 श्रीनगर में पुलिस ने जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत के ठिकानों पर मारा छापा, जानें क्या-क्या मिला?

Srinagar Police Conduct Raids Banned JeI and Hurriyat Associates: कश्मीर घाटी में इन दिनों आतंकवाद के खिलाफ जंग तेज हो गई है. श्रीनगर पुलिस ने अलगाववादियों और आतंकियों के सपोर्ट नेटवर्क को नेस्तनाबूद करने के लिए बड़ा एक्शन लिया है. प्रतिबंधित संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) और हुर्रियत एसोसिएट्स से जुड़े लोगों के घरों पर छापेमारी की गई. ये कार्रवाई गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत चली. पुलिस का मकसद साफ है कि घाटी में आतंक के जड़ों को काटना और आम लोगों को सुरक्षित रखना.

छापे में कौन-कौन फंसे?
पुलिस ने चार मुख्य ठिकानों पर तलाशी ली. पहला नाम है मुश्ताक अहमद भट उर्फ गोगा शाहिब उर्फ मुश्ताकुल इस्लाम. ये काशी मोहल्ला, बटमालू के रहने वाले हैं. दूसरा, अशरफ सेहराई, जो बघाट में रहते हैं. तीसरा, मेहराजुद्दीन कलवाल उर्फ राज कलवाल - ये रैनावारी कलवाल मोहल्ला, हमजा कॉलोनी, केनिहामा के हैं और अभी एनआईए की कस्टडी में हैं. चौथा, जमीर अहमद शेख, गुलशन नगर, नौगाम का निवासी. ये सब लोग कथित तौर पर इन बैन ग्रुप्स से जुड़े बताए जाते हैं.

छापे में क्या-क्या मिला?
श्रीनगर पुलिस के स्पोक्सपर्सन ने बताया कि दौरान इन रेड्स में प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ी किताबें, साहित्य, तस्वीरें और दूसरी सामान जब्त की गई. ये चीजें आतंक फैलाने और लोगों को भड़काने के लिए इस्तेमाल होती थीं. पुलिस ने कहा, "ये सामग्री अलगाववादी आंदोलन को बढ़ावा देने वाली है."

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आतंक नेटवर्क को क्यों निशाना?
ये सिर्फ एक छापा नहीं, बल्कि बड़ा अभियान का हिस्सा है. कश्मीर में आतंकवाद सालों से समस्या बना हुआ है. हुर्रियत और जेईआई जैसे ग्रुप्स लोगों को गुमराह करते रहे हैं. पुलिस का कहना है कि इनके सपोर्टरों को बेनकाब करके ही घाटी में असली शांति आ सकती है. यूएपीए कानून के तहत ये एक्शन लेना जरूरी है, ताकि आतंक के फंडिंग और प्रोपगैंडा रुक जाए.पिछले कुछ महीनों में ऐसी कई कार्रवाइयां हुई हैं. नतीजा ये है कि आतंकी घटनाएं कम हुई हैं. लेकिन चुनौती अभी बाकी है. स्थानीय लोग भी अब इन ग्रुप्स से दूरी बना रहे हैं. सरकार और पुलिस का फोकस युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ना है, न कि हिंसा की राह पर धकेलना.

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