Asaduddin Owaisi news: महज 21 दिनों में राजनीतिक विरोधियों ही नहीं बल्कि पूरे देश की आंखों का तारा और राष्ट्रवाद के नए शुभंकर बने ओवैसी ने एक इंटरव्यू के दौरान पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए समां बांध दिया. ओवैसी ने जो भी कहा, लोग उसे बस टकटकी लगाकर देखते-सुनते रह गए.
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Asaduddin Owaisi Political Loner To India Mascot: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के दो दिन बाद 24 अप्रैल को AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद ने केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में शामिल न किए जाने के विरोध में X का सहारा लिया. उस मीटिंग में केंद्र ने सभी दलों को इस जघन्य आतंकी हमले का जवाब देने की अपनी योजनाओं के बारे में जानकारी देने के लिए बुलाया था. उसके बाद ओवैसी ने सैकड़ों बार पाकिस्तानी हुक्मरानों को उनकी औकात बताते हुए करोड़ों नए लोगों को अपना मुरीद बना लिया. ओवैसी पढ़े लिखे राजनेता हैं. बैरिस्टर हैं. सांसद हैं. साफगोई से बिना किसी लागलपेट के अपनी बात रखने वाले ओवैसी आज अपने फायरब्रांड भाषणों की वजह से पाकिस्तानियों की आंख की किरकरी और करोड़ों धुर-विरोधियों की आंखों का तारा बन गए हैं.
21 दिन की अनसुनी कहानी
बीते तीन हफ्तों में ओवैसी की फैन फॉलोविंग में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है. वो अब उन लोगों के भी पसंदीदा नेता बन गए हैं जिन्हें वो कभी फूटी आंख नहीं सुहाते थे. ओवैसी आजकल पाकिस्तानी ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. ओवैसी के दिल में हिंदुस्तान को लेकर भावनाओं को जो उबाल मार रहा है उसे चंद पंक्तियों में समझना हो तो वो ये होंगी- हर करम अपमा करेंगे ऐ वतन तेरे लिए... दिल दिया है जां भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए.'
एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में ओवैसी ने अपने सीने में मची हलचल की जानकारी देते हुए बताया, 'संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने उन्हें बताया था कि केंद्र ने बैठक में केवल कम से कम पांच सांसदों वाले दलों को आमंत्रित करने की योजना बनाई है. तब मैंने कहा यह भाजपा या किसी अन्य पार्टी की आंतरिक बैठक नहीं है, यह आतंकवाद और आतंकवादियों को पनाह देने वाले देशों के खिलाफ एक मजबूत और एकजुट संदेश भेजने के लिए एक सर्वदलीय बैठक है. चाहे वह एक सांसद वाली पार्टी हो या 100, वे दोनों भारतीयों द्वारा चुनी गई हैं और इस तरह के महत्वपूर्ण मामले पर उनकी बात सुनी जानी चाहिए. यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है. सभी की बात सुनी जानी चाहिए. मैने प्रधानमंत्री से एक सांसद वाली पार्टियों को भी आमंत्रित करने का आग्रह किया था'.
जवाब ने जीता दिल
ओवैसी ने कहा कि वह किसी से मान्यता या प्रमाण पत्र लेने के लिए कुछ नहीं कह रहे हैं. यह सब उद्गार उनके अंदर से ह्रदय की गहराइयों के भीतर से आ रहे हैं. यह मेरे माता-पिता द्वारा सिखाया गया राष्ट्र प्रेम है. मैं कोई महान काम नहीं कर रहा हूं. अगर ऐसे समय में नहीं तो हम अपनी भावनाओं को कब व्यक्त करेंगे? क्या मुझे चुप रहना चाहिए क्योंकि पीड़ित हिंदू हैं? नहीं वो इंसान हैं. अगर हमारे देश में कुछ हो रहा है, तो मैं एक सांसद, एक इंसान, एक पिता के रूप में कैसे चुप रह सकता हूं?'
एक पोस्ट ने बदला माहौल
ओवैसी ने ये तमाम बातें अपने एक्स अकाउंट पर की गई एक पोस्ट में लिखीं उसके बाद परिष्थितियां तेजी से बदलीं. उनकी पोस्ट लिखने के चंद घंटों बाद हैदराबाद के सांसद ओवैसी के पास सीधे गृह मंत्री अमित शाह का फोन आता है. उन्हें बैठक में शामिल होने के लिए कहा जाता है. आगे ओवैसी ने सर्वदलीय बैठक में भाग लेते हुए अपनी बात रखी.
पाकिस्तान पर लगातार हमलावर हैं ओवैसी
उसके बाद से पाकिस्तान पर लगातार हमलावर रहे एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी 17 मई को बने उन सात भारतीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक का हिस्सा हैं जो आतंकवाद से पाकिस्तान के संबंधों को उजागर करने और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की स्थिति को सामने रखने के लिए विदेश यात्रा पर रवाना होने वाले हैं. ओवैसी, अपनी पार्टी के एकमात्र सांसद होने और सरकार की आलोचना करने वाले प्रमुख लोगों में से एक होने के बावजूद, इस बड़े आउटरीच में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे.
तीन हफ्ते में आए इस बदलाव के पीछे ओवैसी का वो स्पष्ट नजरिया लोगों को बेहद पसंद आया. खासकर पाकिस्तानी नेताओं की भड़काऊ टिप्पणियों पर उनकी सटीक प्रतिक्रिया और उनके दो टूक संदेश ने बताया कि भले ही घरेलू मुद्दों पर वो सरकार से असहमत हों, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में वो अपने देश के साथ हैं.
संकट के समय देश की एकता के उनके भाषणों ने उन्हें उनके सबसे कटु आलोचकों के बीच भी लोकप्रिय बना दिया है और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा चित्रित उस कट्टरपंथी छवि को तोड़ दिया जिसके तहत उन्हें केवल मुसलमानों यानी अपनी कौम का नेता कहा जाता था. फिलहाल तो पांच बार के सांसद ने अपने धुर-विरोधियों का दिल भी जीत लिया है, यहां तक कि उन दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों का भी जिन्होंने उनकी कभी जमकर आलोचना की थी.